आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें, पानी पसारो आवेलें, करन्न आवेलें, त बाति के थाह मिलेला कि लोग काहे जुटल वा बाकी एह जनमदलिद्दर के सराध के देखे खातिर गाँव फाटि परत वा एकर कारन बिना ओहिजा पहुँचले केहू जानि नाहीं पावडता मरद मेहरारू, लड़का बच्चा, एक पर एक भहरात बाड़ें मेहरारू आँखी से अँचरा लगवले बाड़ी स दू एक ठो सुसुकत बाड़ी स मरद लोग अक्किलि दउरावत बारे केहू कुच्छू कहत वा केहू कुच्छू उपरोहित छुन्नू मिसिर मोछिये में बिहसत बाड़े। हजाम घरभरना उनुका ओर देखि-देख डहुरत बा। पिण्डा परात बा। कंगाली के बड़का लड़का मुसवा बापे के सराध करावत बा ई जवन किछु होत बा ओह में कुछु देखे लाएक नइखे, दूगो वाति के छोड़ि के एगो बाति तई बा कि कंगाली के दुआर पर आजु सगरी गाँव जुटल बा आ दुसरकी बाति ई कि सराध खातिर जवन सामान जुटावल बा ओह में एगो बड़ी सुन्दर रजाई धइल बाटे अउरी कूलि सामान दसो रुपये के नाहीं होखी, बाकी रजझ्या साठि-सत्तर रुपेया से कम के नाहीं होखी। गाँव के लोग ईहे नइखे बूझि पावत कि जवन कँगालो जीयत जिनगी पुअरा ओढ़ के पूस-माघ बितवलें, उनकी सराध में अइसन रजाई दियाति बा जेइसन राजा बाबू लोग ओढ़ेला एतने नाहीं, एइसन निम्मन रजाई तरई पर धड़लि वा, एगो सही खटिया ले नइखे सूध ईहे अजगुत देखे खातिर गाँव के लोग जुटल वा । कँगालो के घर दुआर एह लाएक नइखे कि दसो अदिमी खाड़ हो पावें बाकी वृधन मिसिर के घुरवे के लोग कँगाली के दुआर मानि के जुटि गइल बा । कंगाली के झोपड़ी के कुल्हि कराइनि सरि गइल बा एगो मजिगर आन्ही आवे त रावा रावा उधिया जाई ओकर चंडन-मंडन काहाँ जइहें, कवनो ठेकान नइखे।
बाकी एइसन झोपड़ी आ बूरा के बीच में एइसन रजाई ! अजगुत बाति ! कंगाली की रजाई के एगो लमहर खिस्सा बा ओह खिस्सा के सुनि लिहले पर आजु के अजगत फरिया जाई।
का जानी कबनी साइति में उनुके माई-बाप उनुके नाँव कँगाली धइले रहे कि जिनिगीभरि ऊ कँगाले रहि गइलें। कहाउति ह को बारह बरीस पर घुरवो के दिन बहुरेला, बाकी कँगाली के जिनिगी में ऊ कहउतिवो झूठ परि गइलि उनके जिनिगी रहने का कलि ? जब ऊ तनि रेंगराए लगलें, तब्बे उनुके महतारी बाप दूनू जने आँखि मुनि लिहल लोग एह दुआरे, ओह कोल्हुआड़े जूठ काँठ खाके कंगाली सेयान भइलें जब होसगर भइलें त उनुके मजूरी मिले लागल मजूरी कइले से खाए भरि के पावें त ई फिकिर भइल कि राती के मुँड़ी कहाँ लुकवाई। छोट रहलें त केहू के दुआर पर सूति रहें। अब का करें ? उनुके बाप के पलानी जहवाँ रहे ऊ जगहि बूधन मिसिर के बपसी ले लिहलें ओहिजा उनुके घूरा लागे लागल। कंगाली सेयान भइलें त बूधन बाबा के लगे हाथ-गोड़ जोरि के घुरवा के लगे एगो टाटी बान्हें भरि के जगही मँगलें। बूधन बाबा राजी हो गइलें। कंगाली के पलानी परि गइल।
कँगाली के एगो घर हो गइल । अब ऊ अउरी जोर लगाके खटे लगलें। दू चारि पइसा बचा के टाटे में खोंसे लगलें जब तनी चिकना गइले त एगो अरधी से बियाही हो गइल एगो लरिकनी ओकरी कोरा पहिलहीं से रहलि कंगाली से हरि सलिए एगो लइका होखे लागल कँगाली आ कंगाली बो दूनो परानी मजूरी करे लागल लोग वोट के जबाना आइल त कँगाली के एगो कमरा मिलि गइल। अब ऊहो दुख छुटि गइल। बाकी कुल्हि जने के जाड़ एगो कमरा से कइसे जाव ? कँगाली दुआरे पर कउड़ा के के ओही के अलम्मे राति काटे लगलें। उनुके लड़का गराए लगले स दूनू परानी इहे देखि के तीहा धरे लोग की लइकवा सेयान हो जइहें स त कुल्ही मिलि के मजूरी करिहें स तब सगरी दुख छूटि जाई।
कँगाली के बड़का लइकवा एगारहे बरीस के जवने सालि भइल ओही सालि उनुकी गाँव के लगे ईंटा के चिमनी चले लागल ई दूनू परानी ईंटा ढोवे लागल लोग एहू लोगन से अधिक ऊ लरिकवा ढोवे। छोटकी लरिकनियों कुलि एकहक ईंटा उठावें सो पहिलकी लरिकनिया के बियाह पहिलहों क दिहले रहलें असतें बड़ा सुतार आइल हफ्ता में कबो आठ रुपेया कबो नव रुपेया मिले लागल। कँगाली बो घूँची में कुछु पइसा बचावे लगली। जेठ में जब चिमनी में ईंटा के पथाई ढोआई बन्न भइल त कंगाली की झोपड़ी में कुछ भूसी आ कुछ मालमत्ता बचि गइल तबे से आगे सालि कातिक के जोताई करे लगले कँगाली। जब अगिला कातिक में चिमनी चालू भइल त पहिलहीं दिन से कंगाली के घर भरि जुटि गइल। कातिक, अगहन, पूस तीनि महीना खटले के बादि माघ चढ़ते कँगाली मलिकाइनि से कहले कि हो, सुनऽ ताडू, कहतू त एगो बाति कहतीं । कँगाली बो एइसन नरम आ मीठ बाति कँगाली से कब्बो नाहीं सुनले रहली। उनके जियरा जुड़ा गइल। हुलसि के कहली कहीं न कवन बाति है। कँगाली उनके काने में कहलें कि बहुत दिन में ऊ एगो चीजु के सपना देखत रहले हैं। एगो रजाई बनवावे के असों भगवान हाथे पर दस पइसा दिहले बाड़े। माघ आ गइल कहतू त एगो रजाई बनवा लेतीं कंगाली बो का बाति बहुत नीक लागलि, बाकी मनेमने ऊ खरचा के हिसाब लगावे लगली आ डेराये लगली। कई दिन के गनले गुथले के बादि दूनू परानी रजाई बनवावे खातिर तइयार हो गइल लोग ।
कंगाली बजारे गइलें छींट कीनि के सियववलें रूई किनलें। धुनवा के भरववलें । तागे खातिर पुछलसि मसोनि वाला, त कहलें नाहीं हो, हमरा तागे वाला लोग घरहीं बा धुनाई भराई देके रजाई के चपोति के अंगोछा में रसरी जोरि के बन्हले आ घरे ले अइलें । ओह राति कुल्हि लड़का रजाई के छू के देखलें कुलि । हाथ से सुहरा सुहरा के जीउ समुझवलें कुलि परोसिया किहाँ से जाँता माँगि के ओही से दावि के रजाई धरा गइलि दुसरे दिन कँगाली बो चिमनी पर नाहीं गइली दिन्न भरि में ओह रजाई के तगली डोरा घटि गइल त जाके कीनि के ले
अइली । साँझ ले रजाई तइयार हो गइल । राति भइलि त कँगाली का ई बुझाइल कि आजुए उनके गवना भइल ह । मने-मने दूनू परानी रजाई में गरमाए लागल लोग ओहर कुलि लइका आपन दाव लगवले रहलें। जब सूते के भइल त कँगाली बो कुलि लइकन के पुअरा पर सुता के उप्पर से रजाई ओढ़ा दिहली अपने दूनू जने कमरा ओढ़ि के सूति रहल लोग। कंगाली के जाड़ त चलि गइल बाकी रजइया के फिकिर लागल रहल का जने लइकन रजइया के कवन गति करिहें स। आधी राति के कंगाली उठले उठि के लइकन के ओर जाके देखलें। उनुका ई बुझाइल कि कुल्हि लइकवा रजइया के अपनी ओर खींच के तनले बाड़े स पुअरा से रजइया अलगे मइल होति रहे। कँगाली रजइया खींचि लिहले। लइकवा कोकियाए लगले स ऊ बहरा से एक पाँजा पुअरा ले आके हो कुल्हिनि के ओढ़ा दिहलें आ रजइया के चपोति के कोने में ध दिहलें छन भरि खड़ा होके रजइया के निहरले आ एक बेरि त अकवारी में चाँति के कुछ देरी ले गरमइलें। ओकरा बादि रजाई के ध दिहलें। जँतवा से फेरू दाबि दिहलें कि रुइया ठीक से बइठि जाई त लइकन की खिचले से गुल्टियाई नाहीं । दावि के झोपड़ी के बहरे निकसलें। मलिकाइनि कमरा में गरमा के सूतल रहली उनके नाहीं जगवलें दुआरे पर रोज कउड़ा करत रहलें। ओहि दिन सँझवे से रजाई के फेर में परल रहलें एसे कउड़वो नाही कइले रहलें। पछिली राति के राखी रहे। ओही के खोर खार कइलें आ ओही कउड़ा के लगे एक मुठी पुअरा डारि के अंगोछा आदि के सुति रहलें।
ओह राति कंगाली वो अइसन निनिअइली कि एक्के बेर भिनसहरे आँखि खुललि उठली त लइकन के पुअरा ओढले देखली धक् से परान हो गइल। तवले रजाई पर नजरि परलि देखली की जाँते से चाँतलि बा जीव में जीव परल। बहरा निकसली त देखली कि कंगाली कउड़ा तर घट्टो मुट्टी मरले अँगोछा आदि के सुतल बाड़े। भित्तर से कमरा ले आके ओढ़ावे गइली त देखली कि कँगालो हलहल काँपऽ ताड़े। छुअली त देंहि जरत रहे। कवनो तरे उठवली आ भित्तर ले गइली लइकन के जगवली कंगाली के देहि अँइठाए लागल। जवले एहर ओहर से दू एक जने आवें तबले कँगाली के देहि कण्डा अस हो गइल । बिहान होत- होत कंगाली मरि गइलें।
ओहि दिन से कँगाली बो रजाई की ओर तकबो ना कइली लइकनो के ना ताके दिहली। कहली, रजाई हमरा नइखे सहति । आजु कँगाली के कामे में ऊहे रजाई सेजिया पर दे दिहले बाड़ी उपरोहित मगन बाड़ें। गाँव के लोग तमासा 1 देखत बाड़ें। कँगाली बो रजाई की ओर तकतो नाहीं बाड़ी।