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रजाई

9 November 2023

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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें, पानी पसारो आवेलें, करन्न आवेलें, त बाति के थाह मिलेला कि लोग काहे जुटल वा बाकी एह जनमदलिद्दर के सराध के देखे खातिर गाँव फाटि परत वा एकर कारन बिना ओहिजा पहुँचले केहू जानि नाहीं पावडता मरद मेहरारू, लड़का बच्चा, एक पर एक भहरात बाड़ें मेहरारू आँखी से अँचरा लगवले बाड़ी स दू एक ठो सुसुकत बाड़ी स मरद लोग अक्किलि दउरावत बारे केहू कुच्छू कहत वा केहू कुच्छू उपरोहित छुन्नू मिसिर मोछिये में बिहसत बाड़े। हजाम घरभरना उनुका ओर देखि-देख डहुरत बा। पिण्डा परात बा। कंगाली के बड़का लड़का मुसवा बापे के सराध करावत बा ई जवन किछु होत बा ओह में कुछु देखे लाएक नइखे, दूगो वाति के छोड़ि के एगो बाति तई बा कि कंगाली के दुआर पर आजु सगरी गाँव जुटल बा आ दुसरकी बाति ई कि सराध खातिर जवन सामान जुटावल बा ओह में एगो बड़ी सुन्दर रजाई धइल बाटे अउरी कूलि सामान दसो रुपये के नाहीं होखी, बाकी रजझ्या साठि-सत्तर रुपेया से कम के नाहीं होखी। गाँव के लोग ईहे नइखे बूझि पावत कि जवन कँगालो जीयत जिनगी पुअरा ओढ़ के पूस-माघ बितवलें, उनकी सराध में अइसन रजाई दियाति बा जेइसन राजा बाबू लोग ओढ़ेला एतने नाहीं, एइसन निम्मन रजाई तरई पर धड़लि वा, एगो सही खटिया ले नइखे सूध ईहे अजगुत देखे खातिर गाँव के लोग जुटल वा । कँगालो के घर दुआर एह लाएक नइखे कि दसो अदिमी खाड़ हो पावें बाकी वृधन मिसिर के घुरवे के लोग कँगाली के दुआर मानि के जुटि गइल बा । कंगाली के झोपड़ी के कुल्हि कराइनि सरि गइल बा एगो मजिगर आन्ही आवे त रावा रावा उधिया जाई ओकर चंडन-मंडन काहाँ जइहें, कवनो ठेकान नइखे।

बाकी एइसन झोपड़ी आ बूरा के बीच में एइसन रजाई ! अजगुत बाति ! कंगाली की रजाई के एगो लमहर खिस्सा बा ओह खिस्सा के सुनि लिहले पर आजु के अजगत फरिया जाई।

का जानी कबनी साइति में उनुके माई-बाप उनुके नाँव कँगाली धइले रहे कि जिनिगीभरि ऊ कँगाले रहि गइलें। कहाउति ह को बारह बरीस पर घुरवो के दिन बहुरेला, बाकी कँगाली के जिनिगी में ऊ कहउतिवो झूठ परि गइलि उनके जिनिगी रहने का कलि ? जब ऊ तनि रेंगराए लगलें, तब्बे उनुके महतारी बाप दूनू जने आँखि मुनि लिहल लोग एह दुआरे, ओह कोल्हुआड़े जूठ काँठ खाके कंगाली सेयान भइलें जब होसगर भइलें त उनुके मजूरी मिले लागल मजूरी कइले से खाए भरि के पावें त ई फिकिर भइल कि राती के मुँड़ी कहाँ लुकवाई। छोट रहलें त केहू के दुआर पर सूति रहें। अब का करें ? उनुके बाप के पलानी जहवाँ रहे ऊ जगहि बूधन मिसिर के बपसी ले लिहलें ओहिजा उनुके घूरा लागे लागल। कंगाली सेयान भइलें त बूधन बाबा के लगे हाथ-गोड़ जोरि के घुरवा के लगे एगो टाटी बान्हें भरि के जगही मँगलें। बूधन बाबा राजी हो गइलें। कंगाली के पलानी परि गइल।

कँगाली के एगो घर हो गइल । अब ऊ अउरी जोर लगाके खटे लगलें। दू चारि पइसा बचा के टाटे में खोंसे लगलें जब तनी चिकना गइले त एगो अरधी से बियाही हो गइल एगो लरिकनी ओकरी कोरा पहिलहीं से रहलि कंगाली से हरि सलिए एगो लइका होखे लागल कँगाली आ कंगाली बो दूनो परानी मजूरी करे लागल लोग वोट के जबाना आइल त कँगाली के एगो कमरा मिलि गइल। अब ऊहो दुख छुटि गइल। बाकी कुल्हि जने के जाड़ एगो कमरा से कइसे जाव ? कँगाली दुआरे पर कउड़ा के के ओही के अलम्मे राति काटे लगलें। उनुके लड़का गराए लगले स दूनू परानी इहे देखि के तीहा धरे लोग की लइकवा सेयान हो जइहें स त कुल्ही मिलि के मजूरी करिहें स तब सगरी दुख छूटि जाई।

कँगाली के बड़का लइकवा एगारहे बरीस के जवने सालि भइल ओही सालि उनुकी गाँव के लगे ईंटा के चिमनी चले लागल ई दूनू परानी ईंटा ढोवे लागल लोग एहू लोगन से अधिक ऊ लरिकवा ढोवे। छोटकी लरिकनियों कुलि एकहक ईंटा उठावें सो पहिलकी लरिकनिया के बियाह पहिलहों क दिहले रहलें असतें बड़ा सुतार आइल हफ्ता में कबो आठ रुपेया कबो नव रुपेया मिले लागल। कँगाली बो घूँची में कुछु पइसा बचावे लगली। जेठ में जब चिमनी में ईंटा के पथाई ढोआई बन्न भइल त कंगाली की झोपड़ी में कुछ भूसी आ कुछ मालमत्ता बचि गइल तबे से आगे सालि कातिक के जोताई करे लगले कँगाली। जब अगिला कातिक में चिमनी चालू भइल त पहिलहीं दिन से कंगाली के घर भरि जुटि गइल। कातिक, अगहन, पूस तीनि महीना खटले के बादि माघ चढ़ते कँगाली मलिकाइनि से कहले कि हो, सुनऽ ताडू, कहतू त एगो बाति कहतीं । कँगाली बो एइसन नरम आ मीठ बाति कँगाली से कब्बो नाहीं सुनले रहली। उनके जियरा जुड़ा गइल। हुलसि के कहली कहीं न कवन बाति है। कँगाली उनके काने में कहलें कि बहुत दिन में ऊ एगो चीजु के सपना देखत रहले हैं। एगो रजाई बनवावे के असों भगवान हाथे पर दस पइसा दिहले बाड़े। माघ आ गइल कहतू त एगो रजाई बनवा लेतीं कंगाली बो का बाति बहुत नीक लागलि, बाकी मनेमने ऊ खरचा के हिसाब लगावे लगली आ डेराये लगली। कई दिन के गनले गुथले के बादि दूनू परानी रजाई बनवावे खातिर तइयार हो गइल लोग ।

कंगाली बजारे गइलें छींट कीनि के सियववलें रूई किनलें। धुनवा के भरववलें । तागे खातिर पुछलसि मसोनि वाला, त कहलें नाहीं हो, हमरा तागे वाला लोग घरहीं बा धुनाई भराई देके रजाई के चपोति के अंगोछा में रसरी जोरि के बन्हले आ घरे ले अइलें । ओह राति कुल्हि लड़का रजाई के छू के देखलें कुलि । हाथ से सुहरा सुहरा के जीउ समुझवलें कुलि परोसिया किहाँ से जाँता माँगि के ओही से दावि के रजाई धरा गइलि दुसरे दिन कँगाली बो चिमनी पर नाहीं गइली दिन्न भरि में ओह रजाई के तगली डोरा घटि गइल त जाके कीनि के ले

अइली । साँझ ले रजाई तइयार हो गइल । राति भइलि त कँगाली का ई बुझाइल कि आजुए उनके गवना भइल ह । मने-मने दूनू परानी रजाई में गरमाए लागल लोग ओहर कुलि लइका आपन दाव लगवले रहलें। जब सूते के भइल त कँगाली बो कुलि लइकन के पुअरा पर सुता के उप्पर से रजाई ओढ़ा दिहली अपने दूनू जने कमरा ओढ़ि के सूति रहल लोग। कंगाली के जाड़ त चलि गइल बाकी रजइया के फिकिर लागल रहल का जने लइकन रजइया के कवन गति करिहें स। आधी राति के कंगाली उठले उठि के लइकन के ओर जाके देखलें। उनुका ई बुझाइल कि कुल्हि लइकवा रजइया के अपनी ओर खींच के तनले बाड़े स पुअरा से रजइया अलगे मइल होति रहे। कँगाली रजइया खींचि लिहले। लइकवा कोकियाए लगले स ऊ बहरा से एक पाँजा पुअरा ले आके हो कुल्हिनि के ओढ़ा दिहलें आ रजइया के चपोति के कोने में ध दिहलें छन भरि खड़ा होके रजइया के निहरले आ एक बेरि त अकवारी में चाँति के कुछ देरी ले गरमइलें। ओकरा बादि रजाई के ध दिहलें। जँतवा से फेरू दाबि दिहलें कि रुइया ठीक से बइठि जाई त लइकन की खिचले से गुल्टियाई नाहीं । दावि के झोपड़ी के बहरे निकसलें। मलिकाइनि कमरा में गरमा के सूतल रहली उनके नाहीं जगवलें दुआरे पर रोज कउड़ा करत रहलें। ओहि दिन सँझवे से रजाई के फेर में परल रहलें एसे कउड़वो नाही कइले रहलें। पछिली राति के राखी रहे। ओही के खोर खार कइलें आ ओही कउड़ा के लगे एक मुठी पुअरा डारि के अंगोछा आदि के सुति रहलें।

ओह राति कंगाली वो अइसन निनिअइली कि एक्के बेर भिनसहरे आँखि खुललि उठली त लइकन के पुअरा ओढले देखली धक् से परान हो गइल। तवले रजाई पर नजरि परलि देखली की जाँते से चाँतलि बा जीव में जीव परल। बहरा निकसली त देखली कि कंगाली कउड़ा तर घट्टो मुट्टी मरले अँगोछा आदि के सुतल बाड़े। भित्तर से कमरा ले आके ओढ़ावे गइली त देखली कि कँगालो हलहल काँपऽ ताड़े। छुअली त देंहि जरत रहे। कवनो तरे उठवली आ भित्तर ले गइली लइकन के जगवली कंगाली के देहि अँइठाए लागल। जवले एहर ओहर से दू एक जने आवें तबले कँगाली के देहि कण्डा अस हो गइल । बिहान होत- होत कंगाली मरि गइलें।

ओहि दिन से कँगाली बो रजाई की ओर तकबो ना कइली लइकनो के ना ताके दिहली। कहली, रजाई हमरा नइखे सहति । आजु कँगाली के कामे में ऊहे रजाई सेजिया पर दे दिहले बाड़ी उपरोहित मगन बाड़ें। गाँव के लोग तमासा 1 देखत बाड़ें। कँगाली बो रजाई की ओर तकतो नाहीं बाड़ी।

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लेख
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भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
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स्वस्ती श्री

4 November 2023
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भोजपुरी क्षेत्र की यह विशेषता है कि वह क्षेत्रीयता या संकीर्णता के दायरे में बँध कर कभी नहीं देखता, वह मनुष्य, समाज और देश को पहले देखता है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में भोजपुरी भाषी लोगों का अ

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कविता-खण्ड गोरखनाथ

4 November 2023
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अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जप

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भरथरी - बारहमासा

4 November 2023
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चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥ भादो रयनि भयावनि हो, ग

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कबीरदास

4 November 2023
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झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे

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धरमदास

4 November 2023
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सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

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पलटू साहेब

4 November 2023
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कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

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लक्ष्मी सखी

4 November 2023
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चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

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बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
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सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

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हीरा डोम

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हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

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महेन्दर मिसिर

4 November 2023
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एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

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मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
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दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

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कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

6 November 2023
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भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

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महुआबारी में बहार

6 November 2023
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असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

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राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
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गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

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सपना

6 November 2023
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सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

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इमली के बीया

6 November 2023
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लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

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कोजागरी

6 November 2023
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भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

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पकड़ी के पेड़

7 November 2023
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हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

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मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023
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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

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हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
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अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

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भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
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अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

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आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
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महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

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नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
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जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

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गबरघिचोर

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गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

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किसान- भगवान

8 November 2023
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बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

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मछरी

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ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

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भँड़ेहरि

9 November 2023
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रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

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रजाई

9 November 2023
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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

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तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
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दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

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पोसुआ

9 November 2023
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दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

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तिसरका कुल्ला

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एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

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यैन्कियन के देश से बहुरि के

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बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

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गहमर : एगो बोधिवृक्ष

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केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

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त्रेता के नाव

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आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

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डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

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आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

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एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

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