shabd-logo

मछरी

9 November 2023

0 देखल गइल 0

ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे। कबहूँ झिगवा मछरी एंडी भिरी आके कुलबुलाए लागत रहीसन त सउँसे देह गनगना जात रहे। कुछ दूर पर सरपत में बेंग टरटरात रहऽसन आ कवनो कवनो जब-तब पानी में कूद जात रहसन, जेकरा से ताल में चक्करदार हल्फा उठे लागत रहे आ तरेंगन के परछाहीं लहर पर टूटे लागत रहे ।

झींगुर के अजब मनहूस झनकार हवा में भर गइल रहे। नीम के फूल के गंध से मातल बेआर ढिमिलाइल फिरत रहे। दिन भर के दबँक से अँउसाइल कुंती के मन भइल कि गते से पानी में उतर जाय आ अपना देह के पानी में बोर दे। चुहानी में साँझे से चूल्हा फूँकत फूँकत ओकर जीव उजबुजा गइल रहे। मारे पसेना के लूगा देह में सट गइल रहे। कसहूँ जीव जाँत के, सब केहू के बीजे करा के फजिरे बरतन बासन मले खातिर पानी ले आवे निकललि रहे। राते में डूभा छीपा आउर बटुआ पानी में ना फुला दिआई त बिहने जूठ अइसन खरकट जाई कि छोड़वले ना छूटी। बाको, कुंती से पानी में उतरल ना गइल। अपना देह के आउर ढील क के ऊ चुपचाप बइठल रहलि ।

बगले में दहिने ओकरा घर के दुआर लउकत रहे। निकसार में दिवरी धुंआत रहे। ढिबरी के मइलछहूँ लाल अँजोर में अपना पोंछ से मच्छड़ उड़ावत भँइस लउकति रहे। धवरा बैल कोना में बइठल पगुरात रहे कुंती के बुझाइल कि ओकर माई सूत गइल होई आ ओकर नाक फोंय-फोंय बोलत होई, बाबूजियो आँख मूँद के महटिअवले होइहें आ दम्मा के मारे उनकर साँस अदहन लेखा हनर हनर करत होई। सीतवा, गीतवा, मोतिया, गएत्रिया, अभिलखवा कइया सब एके खटिया पर गुड़मुड़ा के सूतल होइहेंसन कवनो के लात कवनो के मुँड़ी पर चढ़ल होई, कवनो के मूड़ी लटकल होई, कवनो के गोड़ खटिया के ओरचन में बाझ गइल होई। अब ओकरा जाके सबके सोझ करे के परी सब पिल्ला लेखा काँय काँय किकिअइहन स आ माई काँचे नोने जाग के अलगा कपरवाह करी- " अइसन कुलच्छन ई कुंतिया बिया, दिन-रात लइकन के डहकावत रहेले, एकर बस चले त ई सब के छछना छछना के मुआ दिही।" बाबूजी अलगे अपना खटिया पर से गुरगुरइहें "काहे रोवावत बाडिस रे, हमरा के जीए देविस कि ना? एक त हमार जीवन अपने...खों...खों..." आ ऊ सब के ओइसहीं छोड़ दे त माई लगिहें बिख बोले- "एकर रहन देख के त हमार पित्त लहर जाता काठ के करेजा हइस पत्थल ह पत्थल। एकरा कवनो दम फिकिर हइस लड़का मूअसन भा जीय सन। "

घर के इयाद आवते कुंती के जीव उदास हो गइल, जइसे खँखार पर गोड़ गइल होखे। कुंती के ना चहलो पर पहिले के इयाद ओखरा आँख के आगा पयरे लागल।

कुंती नौ बरिस के रहे तवे ओकर माई मू गइल रहे ओकरा अपना माई के मउअत सोझा लउके लागल। माई मउराइल बैगन लेखा हो गइल रहे। ढकना में लाल मिरचाई जरा के टहल ओझा बेंत पटक-पटक के ओझाई करत रहन, फिर माई के मूड़ी एक देने लटक गइल आ बुढ़िया मेहरारू सब सियार लेखा फेंकरे लगली स, आजी हमरा के करेजा में जाँत के माई के गुन रो-रो के गावे लागल रहे। कुछ दिन बाद बाबूजी आ चाचा मूड़ी छिलवा लेलन, खूब भोज-भंडारा भइल आ छौ महीना बाद नयकी माई आइल पहिले दिन ओठ बिजुका के हमरा के देखत पुछलस 'तूही हमरा सवत के बेटी हऊ ?' हम मूड़ी हिला के कहली- हूँ। तहिया से आज ले ऊ हमार जेतना साँसत कइलस ओतना कवनो दुसमनो केहू के ना कइले होई। के जाने ओह जनम के कवना कमाई से हम दस बरिस में जीयते, छछात नरक के भोग भोग लेलों माई के नरमाएने लड़का भइल। पाँच गो तमू गइले स ओकरो पाप माई हमरे कपार पर थोपेले कि इहे साखिन मुअवलस। बाबूजी के दम्मा हो गइल। माई रोज कवनो ना कवनो रोग कछलहों रहेलें। चाचा माइए से आजीज आके अलगा हो गइलन लइका देखीं त हम, खेका बनाई त हम, अँइस गोरू के सानी पानी भरों, गवत लगाई त हम माई अपना हाथे खरी ना टारे दस वरिस से दिन रात चंग पर चढ़ल रहींला, मिजाज चरखा भइल रहेला, अपनी साँस ना मिले कि अएना में सुबहित मुँह देखीं। सांचत-सांचत कुंती के बुझाइल कि हजारन चिउँटी ओकरा सउँसे देह में रेंगे लगलौसन। ओकरा बुझाइल कि ओकरा देह में देहे नइखे।' 1

अटमी के चनरम्य सरल तरबूजा के फाँक लेखा बाँस के फुलुंगी में अझुराइल रहे फीका, उदास, सकुचाइल मारे धूर के असमान सिलेट लेखा साँवर लागत रहे। पानी में डुअल-डूबल कुंती के गोड़ कठुआ गइल रहे। पेंडुरी चढ़े लागल रहे ऊ गत से आपन गोड़ पानी से बाहर निकाल लेलस एक मन कइल कि घइला भर के घर चलीं। ढेर रात बीत गइल बाकिर ओकरा से टकसल ना गइल, आलस ओकर गतर गतर बान्ह देले रहे। कुंती गते से एगो खपड़ा टकटोर के अपना ऐड़ी के महल छोड़ावे लागल। चिता के टूटल धागा फिर जोड़ा गड़ल एने तीन साल से त हमरा अपने चुपचाप बइठे के मन ना करे जहाँ अकेले भइल, मन में किसिम-किसिम के विचार उठे लागेला । ई सभ सोचला से फैदा ? बाकिर जहाँ इचिको सँवस लागल कि फिर बैताल ओही डाढ़ पर मनवा खरावे बात देने झुकेला एही से जान-बूझ के हरदम अपना के काम में बझवले रहींला। जेतना हमउमरिया सखी रहीसन सभके बिआह कहिए भइल । के गो त लरकोरिओ हो गइलीसन जहाँ ऊ सब बइठहऽसन खाली सास-ससुर के बात अपना मरद के बात खोद-खोद के दोसरा से पूछिहऽसन आ रस ले लेके कहिह ऽसन हमरा त ई सुनल इचिको नीमन ना लागे, बाकिर केहू सुनडबे करे त का कान मूँद लिहों ? झूठ काहे के कहीं जहिया ई सब सुनौला नींद ना लागे, सउँसे रात करवटे बदलत बीतेला मनेमने हमहूँ सपना देखे लगींला कि कइसन हमार ससुरा होई, कइसन सास के सुभाव होई, सवाँग खिसियाह मिलिहें कि मिठबोलिया ? उह कइसनो मिलस! आपन आपन भाग है। नइहर में सौतेली मतारी के दिन-रात के किचकिच से त नीमने होई माई के बोली हइस! बुझाला कि चइली से मारत होखे। बाबूओजी के मत फेर देले विया परियार साल बाबूजी एक जगे ठीक-ठाक कइलन त माई ठेन बेसाह देलस कि एह साल बैल किनाई बँटइया पर खेती ना होई, अपने हर चली। सब रोपेया बैल में उठ गइल हमार तिलक कहाँ से दियाव? परसाल फिर बाबूजी एक जगे बात चलवलन लइकवा दोआह रहे। डाकपीन के काम करत रहे एक तरे से सब कुछ पक्के रहे। सखी सहेली में केहू हमरा के मनीआर्डर वाली कह के चिढ़ावे, केहू लिफाफा पोसकाट वाली कह के चडल करे। हमहूँ मने-मने गाजत रहीं कि दोआह वा त का ह? करकसा मतारी से त जान बाँची। बाकिर माई बेंड़ देली कि हम अपना जीयत जिनगी कुंती के बिआह दोआह बर से त ना होखे देव, नाहीं त सब केहू मेहना मारी कि सवत के बेटी रहइन एही से दोआह के गले मढ़ देली, जिनगी भर के अकलंक के अपना माथे लिही ? बाबूजी त हर बात में माई के मुँह जोहत रहेलन लागल बात कट गइल। भितरिया बात त हम जनवे करौंला। माई सोचली कि कुन्ती चल जाई त लइका के खेलाई ?

कुन्ती के बुझाइल कि ओकरा कंठ में कुछ अँटकल बा आ दुखाता। पैंजरी आ हँसुली के हाड़ में जइसे टभक अमा गइल होखे, सउँसे देह जइसे घवदाह हो गइल होखे, माथा के नस के जइसे केहू ताँत लेखा तान देले होखे आ ऊ टन टन बाजत होखे। कुन्ती के साँस तेज चले लागल आ गरम साँस के धार ओकर ओठ पर साफ बुझात रहे। गदराइल देह समुन्दर के हल्फा लेखा साँस के ताल पर उभरत रहे, डूबत रहे, ओठ रह-रह के ओइसहीं काँप जात रहे जइसे भोरहरी के हवा में बबूर के पतई काँप जाला। बहुत दूर पर मनियारा साँप के कतार लेखा छोटी लाइन छकछकात चलल जात रहे। मधिम अँजोरिया बेरमिया लेखा बेदम होक गते गते हाँफत रहे। कुन्ती के एगो लमहर ठंढा साँस निकल गइल आ ओकर ससे देह लुक में परल मोजराइल आम के गाछ लेखा सिहरे लागल |

"अइसे कबतक चली? डंग-डंग खाई खंधक बा ओह दिन अछेवट सिंह के छत पर गेहूँ सुखावे गइल रहाँ त उनकर भगिना गते से आके हमार नाँव पूछे लागल। सुनीला जे पटना पढ़ेला मन त भइल कि खूब सुना दिहों कि बहरकू तोरा हमरा नाँव से मतलब ? बाकिर पित्त घोट के रह गइलीं। हमार खिसिआइल मुँह देख के ऊ अपने लवट गइल। विरीछ काका के बेटवो के उहे हाल, जहाँ हम ताल में नहाए अइलों कि केवाड़ी का दोवा में लुका के अपना दलान पर से घंटन निहारल करो मउगा कहीं का मन त करेला कि कान के जरी मारौं दू धप्पर । सांक अइसन त वाइन, एको थप्पर के मउआर ना होइहें आ रसिया बने के सवख या आ वंसियों का कम आफत कइले बा, सिलिक मिरजई पेन्ह के दिन भर में चार भाँवर हमरा गली में फेरा लगावेला हम का ओकर रंग-ढंग ना चीन्हीं ? बाकिर बोले- उले ना....... बाकिर कब तक ? अइसे कहिया ले चली ?"

कुन्ती के बुझात रहे कि साँप के बिख के लहर ओकरा देह में उठ रहल बा गोइठा के धुआँ में जइसे ओकर दम घोंट रहल बा आ ओकर गत्तर-गत्तर अब पारा लेखा चारो देने छितरा जाई गाँव के दखिन सिवान पर कुकुर भूँकत रहलन। खेत में सियार फेंकरत रहऽसन! काली माई के मंदिल से पाठ क के चरितर काका लवटल आवत रहन। उनका खड़ाऊँ के खटर खटर साफ सुनात रहे। कुन्ती सांचलस कि एह रात के चरितर काका ओकरा के ताल किनारे बइठल देखिहें त का सांचिहें ? झप्प से बड़ला बुड़का के घरे चलल निकसार के बगल में तनी दहिने हट के नेनुआ के लत्तर चढ़ावल रहे। ओहिजा कुछ आहट बुझाइल कुन्ती चिहा के पुछलस के ह? बंसी के काँपत, खखन से भरल आवाज आइल- "हमार किरिया, तनी एगो बात सुन जा" मारे घबराहट के कुन्ती के हाथ-गोड़ काँपे लागल। ऊ धड़ से निकसार के भीतर जाके केवाड़ी के पल्ला भिड़ा लेलस। एह समय ओकरा अपना करेजा के धड़कन साफ सुनाई देत रहे। ओकरा माथा पर पसेना चुहचुहा आइल रहे आ साँस बहुत तेज हो गइल रहे। धइला थवना भिरी रख के ऊ मने मन बंसी के खुब गरिअवलस।

आँगन में माई न रहे। लड़का सभ दवरी लेखा खटिया पर पटाइल रहऽसन। बाबुजी के घर में दिया बरत रहे पल्ला ओठघावल रहे आ बुदुर बुदुर के आवाज आवत रहे। आपन नाँव सुन के कुंती गोड़ जाँत के गते से जाके केवाड़ी में कान लगा के सुने लागल। माई बाबूजी के समझावत रहे "एह साल कुंती के बिआह के नाँव लेल त ठीक ना होई तोहार बेरामी एह साल बहुत उखड़ गइल बा । चलs बनारस रह के दवाई करावs हमहूँ ओहिजा डाक्टर से जाँच कराइब" बाबूजी कहलन —' से त बड़ले बा, बाकिर लोग-बाग अब अँगुरी उठावडता । जवान- जहान बेटी के कबले कुँआर रखबू ?" माई तड़प के बोलली "वाह रे, लोग-बाग कही त कुँइयो में कूद जाइब ? एह साल ना सही, पर साल सही, कवनो मछरी ह जे सड़त जात बिया।" बाबूजी मान गइलन "ई त ठोके कहत बाडू, कवनो मछरी त ह ना जे सड़ जाई परे साल सही।"

कुंती के बुझाइल कि पचासौ बिच्छू एक साथ डंक मार देलन बेहोसी में अपना खटिया देने बढ़ल बाकिर अचक्के ओकर गोड़ एगो जूठ थरिया में पर गइल। झन्न से आवाज भइल माई भितरे से चिचिया के पुछलस - "काहे रे कुंतिया, का भइल।" कुंती के फफक-फफक के रोए के जीव करत रहे। मन करत रहे कि

लाज-लिहाज के छोड़के बाबूजी से अभी जा कह दे कि बेटी मछरी ह बाबूजी,

पानी के बाहर कब तक जिही? सड़ी ना त बिलाई ले भागी। कसहूँ रोआई जाँत के कहलस "कुछ ना रे माई, बिलार रहे एगो।... भाग .... बिल-बिल..."

35
लेख
पुरइन-पात
0.0
भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
1

स्वस्ती श्री

4 November 2023
1
0
0

भोजपुरी क्षेत्र की यह विशेषता है कि वह क्षेत्रीयता या संकीर्णता के दायरे में बँध कर कभी नहीं देखता, वह मनुष्य, समाज और देश को पहले देखता है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में भोजपुरी भाषी लोगों का अ

2

कविता-खण्ड गोरखनाथ

4 November 2023
0
0
0

अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जप

3

भरथरी - बारहमासा

4 November 2023
0
0
0

चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥ भादो रयनि भयावनि हो, ग

4

कबीरदास

4 November 2023
1
0
0

झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे

5

धरमदास

4 November 2023
0
0
0

सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

6

पलटू साहेब

4 November 2023
0
0
0

कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

7

लक्ष्मी सखी

4 November 2023
0
0
0

चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

8

बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
1
0
0

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

9

हीरा डोम

4 November 2023
0
0
0

हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

10

महेन्दर मिसिर

4 November 2023
0
0
0

एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

11

मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
0
0
0

दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

12

कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

6 November 2023
0
0
0

भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

13

महुआबारी में बहार

6 November 2023
0
0
0

असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

14

राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
0
0
0

गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

15

सपना

6 November 2023
0
0
0

सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

16

इमली के बीया

6 November 2023
0
0
0

लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

17

कोजागरी

6 November 2023
0
0
0

भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

18

पकड़ी के पेड़

7 November 2023
0
0
0

हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

19

मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023
0
0
0

बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

20

हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
0
0
0

अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

21

भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
0
0
0

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

22

आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
0
0
0

महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

23

नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
0
0
0

जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

24

गबरघिचोर

8 November 2023
0
0
0

गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

25

किसान- भगवान

8 November 2023
1
0
0

बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

26

मछरी

9 November 2023
0
0
0

ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

27

भँड़ेहरि

9 November 2023
0
0
0

रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

28

रजाई

9 November 2023
0
0
0

आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

29

तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
0
0
0

दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

30

पोसुआ

9 November 2023
0
0
0

दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

31

तिसरका कुल्ला

10 November 2023
0
0
0

एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

32

यैन्कियन के देश से बहुरि के

10 November 2023
0
0
0

बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

33

गहमर : एगो बोधिवृक्ष

10 November 2023
1
0
0

केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

34

त्रेता के नाव

10 November 2023
0
0
0

आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

35

डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

10 November 2023
1
0
0

आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

---

एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

english| hindi| assamese| bangla| bhojpuri| bodo| dogri| gujarati| kannada| konkani| maithili| malayalam| marathi| nepali| odia| punjabi| sanskrit| sindhi| tamil| telugu| urdu|