बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंगारी, नजराना सलामी भा दही-दूध वसूल कइल त मामूली बाति रहलि । पियादा पटवारी आ तसिलदार लोग क त पाँचो हरदम घोव में डूबलि रहे। दही- दूध आ साग तरकारी खात खात मन उबियाइ जाय। साच पूछल जाय त उहे रहे कि 'दही दूध तोरा मँथान बाजे मोरा' जे एह कुल्हि का उलटा तनिको सुगबुगाय आ गरदनि ऊपर कइल चाहे, बाबू साहेब क लठइत सिपाही ओकर अइसन खातिर कइ देसु कि छव महीना हरदी गूर पीये के परे ।
सरकारी कानून का आँख में धूरि झोंकि के हाकिम लोगन के मिलावल भा कँगरेस का नेता लोग के बस में कइल त उनका बायाँ हाथ क खेलि रहे।
बाबू साहेब पूरा मालदार रहलन। उनका कवनो बाति क कमी न रहे कि वोकोली करे जासु । घरही धन-दउलति क गंगा-जमुना बहति रहली कवना दुखे वोकोली करे जइतन ? ऊ त अपना जमींदारी के काम सम्हारे का सवख से एतना पढ़ले रहलन। पचीसो नोकर उनका इशारा प एक गोड़ पर नाचे वाला रहलन। सयकड़न रुपया मोर, मोता, बुलबुल भा बिलाइती कुक्कुरन का पोसला में लागे। उनकरा कुक्कुर तक खातिर नेवार क पलंगरी आ तोसक तकिया रहल रोज अनगुती खरमेंटाव खातिर चानी का कटोरी में दूध-बदाम आ मिसिरी दिहल जाय। सात दिन पर डाकदर आइ के देखसु जे कवनो किसिम के बेमारी त नइखे भइलि ।
बाबू साहेब के दरबार वाजिदअली साह का नवाबी दरबार ले कवनो बाति में कम ना रहे। दरबार में अंतर के पोचारा होखे आ गुलाब जल से पयखाना धोवल जाय बाबू साहेब का रंडिन क मोजरा आ भाँड़ के नाच के काफी सवख रहल।
आज लखनऊ के रंडी आइलि वा त काल्हि बनारस क भाँड़, रोज इहे रोजगार लागल रहे। बाबू साहेब का ओर से हाकिमन के दावति दियाइ रहलि बा, दुवार पर दरोगा, निसपेटर आ मंजिस्टर नियर अफसरन के महफिल लागलि बा । बोतल पर बोतल दरि रहल बा। कहे के मतलब कि रुपया पानी नियर बहावल जाय। कहीं कँगरेसी नेता लोग क थइली भरि के काम निकालल जात बा त केनियो संघ आ हिन्दू सभा के सयकड़न रुपया चंदा दियाइ रहल बा बातियो ठीके रहलि । दूसरा का जांगर के कमायी खरच करे में उनकरा मोह दरदि कइसन ?
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जमींदार के लइका जब पेट में रहेला तबहिए जाल फरेब रचे आ लूटे मारे सीखि लेला बाबू साहेब साधारन मायावी जीव ना रहलन। एक ओर त सरकारी हाकिम आ कंगरेसियन के दरबार लगावसु दूसरा और धरम के चोंगा पहिरि के हिन्दू- सभा, आ संघ का लोग के खुश राखसु उनकरा फुलवारी में हरदम एगो न एगो साधु-फकीर आइले रहसु । साधु लोग भागि भगवान आ करम तकदीर का कबीर कथनी क जालि
बीनि के उनका जमींदारी का किसानन क मति फेरत रहसु धरम आ परलोक का बेकूफी क अइसन निसा होला कि अफीम भा भाँगि ओतना नशा न कर सके। देहाति क सोझिया किसान-मजूर भाई एकरा मोह में अन्हराघोड़ भइल फिरलेन । उनकरा का पता वा कि गरीबन के भुलवावे खातिर दुनिया में किसिम-किसिम क जालि बिछावल बा। एगो से निकलबो करी त दूसरा में बाझी, दूसरो से निकली त तीसर बनलि वा बेपल लिखल आदिमी पशु ले बेहज होला ओकरा आपन
अकिलि थोरे बा, जे जवने कही ऊहे माने पर तइयार हो जाई । "करम विपाक में लिखल बा', 'पुरुष जनम के कमाई ह5' 'सनतोख राख, दान- पूनि करs', 'ओह जनम के पाप कटे जे आगा खातिर राह साफ होखे।'
किसान का एतना पूछे क अकिलि कहँवा बा कि भगवान, जे कोढ़ि बनि के बइठल रहेला ओही के पूछ करेलन ? जे आपन खून सुखाइ के जेठ का लूह में जरि के गेहूँ, बासमती आ मेवा मलाई उपराजत बा, बासमती उपराजे में ओकर हाथगोड़ सरि जात बा, बाकी अपना खातिर खुद्दी छोड़ि के दूसर नइखे मीलत, किसान सात पेवन का चिथरा पहिरि के दिन बिताइ रहल बा, जाड़ का दिन में जाँवा कुक्कुर रजाई ओढ़त बा ओइजा किसान पुवरा में घुसरि के आपन राति बिताइ रहल बा, एही खातिर भगवान किसानन पर नाराज बाड़न ?
जहिए गरीब का ई भेद क पता चली कि पंडा, पुजारी या जटाधारी लोग रंगलसियार बनि के जमीन्दार आ पूंजीपतिन का खुफिया क काम करत बाड़न, तहिए ओकर गरीबी भागि जाई आ देस का असली सुराज देखे के मिली।
O कुछ दिन ले बाबू साहेब का जिमिदारी में एह बाति के बड़ा शोर मचल रहे कि एह इलाका में एक जाना बड़ा जगता साधु आइल बाड़न ई साधु बड़ा किरियामान बाड़न लोग सुनल कि किरियामन दंडी हउवनि ।
मामी जी का तेज के शोर सुनि के लोग कले कले दरसन करे खातिर पहुँचे लगलन। सामाजी, बाबू साहेब का डेवढ़ी ले तीन कोस फरका, पिपरदहा नांव का गाँव का बहरा टाट पर फूस का पलानी में रहसु
बाबू साहेब का इलाका का हर गाँव में सॉझि का बेरा जब किसान लोग अपना कामधंधा से छुट्टी पाइ जासु त सामिए जी के बतकही छिड़लि रहे। केहू कहि रहल बा - "सुन ए काका, मीठ लागे चाहे मरिचा, बाति कहींला फरिछा, सामीजी हमन के गरदनि काटे खातिर बाबू साहेब के खुफिया बनि के आइल बाड़न भागि- भगवान, करम तकदीर आ सन्तांख करे का नाँव पर हमन का मुड़ाइबि जा अब समय बदलि रहल बा, हमन का साधु, गुरु- उपरोहित सभके जाँच के त ओकरा पर विसवास करे के चाही।"
अपना भतीजा का मुँह से सामी जी का बारे में अइसन रुक्खर बाति सुनि के बड़ा दुख लागल आ वीगन सिंह बड़ा जोर से फटकार के बोललन- " बचवा अब इसकूल में चारि अछरि रंगरेजी न पढ़त बाड़5। जब इसकूल छोड़ि के दुनिया का वेवहार में अइब तब पता चली। जे रंगरेजी पढ़ल ओकरा साधु उपरोहित आ धरम से कवनो मतलव नइखे रहते हमन क पुरखा पुरनिया जेकरा के मानि आइल बाड़न ओकरा पर सक-सुबहा कइल आपन राह बिगारल बा । ऊ लोग मुरुख रहल ह जे सधुन के मानत रहल ह ?"
"बोगन काका, पुरुखन के गँवार त हमहूँ नइखीं कहत, बाकी हमार कहे क मतलब वा कि आजु क साधु त पहिले नियर होतो नइखन न आज क साधु-फकीर त गिरहतो ले बेहज बाड़न गेरुवा आ टीका का आड़ में ई लोग रंगल सियार बा। एह लोग के खाये खातिर हलुवा पूड़ा आ राबड़ी चाही ओढ़े खातिर दुशाला, अंडी आ पहिरे के सेनगुपुत धोती ऊन क कोटि या मिरजई ले रहित त एगो बातियो रहल ह सेवा करे खातिर दास आ दासी क जरूरत पड़ति बा।
हमन के पुरखा पुरनिया लोग का बेर समाज का भलाई खातिर आपन परान देवं वाला साधु होत रहलन है। आजु नियर मुसमातिन के कान फूँकि के खेत लिखवा लेबे वाला ना दधीचि क नाँव सुनल होइब5 जनता का भलाई खातिर अपना देहि क हड्डी तक दे दिहलन ।
महाभारथ नियर धरम का किताब में धरम क इहे अरथ बतावल बा। तुलाधार बस से जाजले नाँव के रिसी धरम के माने पुछलन त उनकरा कहे के परल कि जे सभकरा के आपन इयार समुझे आ एक नजरि से देखे, आ मन, बचन, करम तीनों से जनता के भलाई करे ऊहे असली धरमातमा भा साधु ह आदिमी जब बजारि में एक पइसा क नादी लेबे जात बा त बजाइ के देखत
वा कि फूल है कि नीमन एइजा त आपन आ पलिवार का जिनिगी के सउदा क
सवाल वा फेर जब जंकर वाति मानि के जिनगी भर दुख भोगे खातिर तइयार बानी त ओकरा के जाँचल-वृझल आ आँच में तपाइ के देखल कवन खराब वा ? जे मोमि क बनि ठगे आइल होई ऊ त गलि जाई आ जे इसपात के बनल होई क ओइसही रहो।"
चचा-भतीजा के सवाल जवाब कइल सुनि के मुसाफिर अहिर आ सामरथी महतो से ना रहि गइल। कही लोग जवन सुनले रहे ओकरा के कहल जरूरी जनाइल-
"चउधरी बीगन राय, राउर भतीज कहत बाड़न तवन ठीक बा हम आ मुसाफिर भइया एक दिन सामी जी के दरसन करे गइल रहलीं जा, ऊहो इहे कुल्हि बात कहत समुझावत रहलन इनकरा में आ अउरी साधुन में बड़ा फरक वा सामी जी गाँजा भौगि भा कवनो किसिम के नशा नइखन खात खद्दर पहिरले बाड़न आ पता चलत वा कि सुराज का लड़ाई में दुइ तीन बेर जेहलो गइल बाड़न सासतर- पुरान, बेद आ पोथी-प - पतरा के एतहत बड़ पंडित हम आज ले ना सुनले रहली है। ई त कहत बाड़न कि किसान-मजूर ले बढ़ि के महातमा केहू नइखे। मनु महराज लिखते बाड़न कि बरम्हचारी, गिरहत, बानपरस्थ आ संन्यासी ए चारों में गिरहते सभकरा ले ऊँचा ठहरल किसान-मजूर परिथिमी के सेसनाग ठहरलन इनहीं का पीठि पर दुनिया ठहरलि बा जहिया ई सेसनाग करवट बदलिहन ओह दिन दुनिया में परलय हो जाई किसान दुनिया के बासमती मलाई खियाई के अपने भूखे लंगटे रहत बाहुन तोहन लोग एगो दधीचि का बारे में सुनि के अचरज करत बाड़s जा एइजा त देस के करोड़ो किसान मजूर दधीचि ले बढ़ि के बाड़न साँच पूछल जाय त इहे दुनिया के कामधेनु ठहरलन आज का दुनिया के लोग एह कामधेनु के भूसा- खरी आ घासि का बदला लाठी-डंटा, लात मूका आ गारी से खातिर करत बाड़न ई अनेति क दिन चली ? सुन लों चउधुरी, इहे त सामीजी के उपदेश बा।"
सामरथी महतो का बाति के मुसाफिर भगत पूरा-पूरा समरथन कइलन। आखिर में ऊ अपनो राइ कहलन कि हमरा जाने में त सामी जी अबे नया नया एह इलाका में आइल बाड़न अबे उनकरा दलसिंगार राय का जुलुम क बाति तनिको नइखे मालुम महीना दू महीना रहि जइहन त कुल्हि पोल खुलि जाई । उनकरा बाबू साहेब का माया क पता चलि जाई आ हमन का सामी जी क असली चालि मालुम हो जाई ओही घरी कहल जा सकेला कि सामी जी किसान-मजूर क एतना बड़ाई कइ के गरीब जनता के पच्छ करत बाड़न, कि बाबू साहेब आ उनका इयार हाकिम अमलन क
एक दुइ महीना ले इलाका का हर गाँव में सामी मनोगानंद जी का बारे में अइसने सवाल-जबाब शुरू भइल रहे। हरवाँही, भुँइसि-गाइ चरति बाड़ी सतहवा, भा घरे अइला पर, कउड़ा आ दलानि में इहे बहस सुनाय जमाना बदलला से किसानो-मजूर क आँखि कुछ-कुछ खुले लागलि ।
बाबू साहेब के पियादा बसगित सिंह पिपरदाहां का पैंजरे खखंड़हीं गाँव का एगो गरीब किसान कुबेर अहिर का दुवार पर पहुँचलन कुबेर घासि गढ़े गइल रहलन। उनकर मेहरारू दलानि में से एगो मचिया निकालि के बसगित सिंह के बइठे खातिर देइ के एगो कोना में खड़ा भइलि ।
"अरे सिगलनी! कुबेरवा कहाँ गइल बा ?'
'बाबू साहेब, घासि के गइल बाड़न, आवते होइन। तनिकी देर बेलमी बस भेंट हो जाई।'
"बाबू साहेब, पाव लगीं ला केने दया कइल गइल ह ? का हुकुम बा ?" खीसी का मारे बाबू बसगति सिंह लाल भइल रहलन।
"बदमासी बतियावत बाड़े ? हमरा के तसिलदार साहेब एही बाति के पूछे खातिर भेजलन है कि कुक्कुर के जवन दूध रोज उठवना जात रहल ह ऊ तीनि दिन ले बंद काहे बा? तोरा कपार में कीरा नइखे न परल ?"
बसंगित सिंह के बाति सुनि के कुबेर क टॅगरी काँपे लागलि । ऊ दाँति चियारि के बोललन-"सरकार, हमरा घरे चारि चारि गो पाहुन जुटि गइल रहलनि ह। अब काल्हि ले जाई।"
"तोहरा छोकड़ि..., तोहरा ई ना मालुम रहल कि कुक्कुर बेमार परल बा ! आकर दवाई होति वा, तू बेमारी में दूध बंद कइ दिहले ह? हीत पाहुन आइलि रहलनि ह त अपना लड़कियन के काहे ना... ऊहो त बियाइले बाड़ी स... "
बाबू साहेब के बाति सूनि के कुबेर का एड़ी कपार ले आगि लागि गइलि जे गरीब वा ओकरो अपना इज्जति आवरू क ओतने लाज बा जेतना एगो बाभन, छतिरी भा राजा का। खीसी का मारे आँख लाल-लाल कइले कुबेर बोललन। उनकर मेहरारू रोकति रहलि बाकी ना मनलन-"देखऽ बसगित सिंह, एतना देर ले हम तोहके बाबू साहब कहली है। अब दूसर बेबहार करबि तोहरा बेटी बहिन नइखे का जे अइसन खराब जवानि निकालत बाड़s ? आपन जवानि ना सम्हरबड़ त एह लूरि से एक दिन लात खाए के परी।"
कुवैर अहिर के बाति सुनि के बसगित सिंह के आगि ना कि जरसु खीसि ले आँखि लाल-पियर कइले आ गारी देत ऊ मचिया पर ले उठि के छावनी का बसगित सिंह खीसि से मातल चलि जात रहलन। उनकरा टेढ़ सोझ भा काँट-कुस कुछ ना लउकत रहे।
पिपरादाहा छावनी पर पहुँचि के बसंगित सिंह आपन मुरेठा तसिलदार का आगा धड़ दिहलन। "तहसिलदार साहेब हमरा से राउर पियदगिरी कइल ना संपरी रउवा आपन इनतिजाम करो। "
तसिलदार साहेब अखबार पढ़त रहलन। एक व एक अपना दुलरुआ पियादा बसगित सिंह के अइसन वाति सुनि के दंग हो गइलन।
"बसंगित सिंह का बाति ह, कुछ कहवो करब कि गूंगी सधले रहबs! एह तरे हम का जानत वानी कि तोहरा कवना बाति के दुख बा ? केहू तोहरा के कुछ कहल है कि खिसियाइल बाड़s आकि तलवि तनखाह बढ़वावल चाहत बाड़।"
" बाति ई वा कि सामी जी के बाति सुनि के रउवा इलाका का असामिन क मन बिगरि गइल बा। अब हमन के इज्जति बाँचल कठिन वा अब असामिन क गारी फजिहति सहि के राउर नोकरी कइल हमरा मंजूर नइखे जे रहल चाहे रउवा ओकरा के राखी रउरे भेजला से हम आज खखंडही का कुबेरवा अहिर किहें पूछे गइल रहली कि दूध के उठवना काहे बंद कइले बा एकर नतीजा भइल है कि गारी सुने के परल ह। चलाँकि कइके सरकल ना रहतों त जवन बाकी बाँचल रहल ह ऊहो पूरा होइ जाइत। "
तसिलदार साहेब बासगित सिंह के बहुत समुझाइ बुझाइ के ठंढा कइलन कि घबरा मति कुबेर क दवाई होई। एतना कहि के तसिलदार साहेब, लाठी-भाला सहित दस गो नवहा चपरासिन के भेजलन कि जाइ के कुबेरवा के जहँवा होखे मुसुक बान्हि के धड़ ले आव स
O कुबेर अपना दलानि में भँइसि के सानी गोतत रहलन। एतने में एगो चपरासी पाछहीं ले पीठि पर घोंड़ से एक लउरि मरलसि। कुबेर आहि कइके चरनी पर ले भुँइया गीरि परलन दूइ गो चपरासी ऊपर ले दू-दू लात अउरी मारि के मुसुक चढ़वले घिसियाइ ले चललन से आठगो जवान लाठी भाला भाँजत आ चारो ओर ले घेर के गारी मारि से समाचार पूछत संगे चललन । -
सउसे गाँव के हजारन किसान भेंड़ि बनि के अपना आँखि का सामने एह जुलुम क तमासा देखत रहलन लोग का ई ना बुझात रहे कि जमींदार मालदार, रंडी, ओकील-मुखतार केहू के हित ना हो सकसु ई लोग गरीब क खून पीये वाला जीव ठहरलन, ओहू में जमींदार त सबका ले बड़ जोंकि ठहरल।
कुबेर क बेइज्जती गाँव का सउँसे किसानन के बेइज्जती रहे। आजु जो किसान सजग आ जमाति बनाइ के एक रहितन त जमींदार भा कवनो जुलुम करे वालन के उनकरा पर चोंच गड़ल कठिन होइत एकता का आगा सभका आपन माथ नवावे के परित एह एकता का बल से किसान आपन रइछा बढ़ती आ जुलुम के विरोध कुल्हि करितन जमींदार आ मालदार त एतना धुरुत बाड़न से कि जाति आ करम तकदीर के झूठ-मूठ का पचड़ा खड़ा कइके किसिम-किसिम क जाल बीनत बाड़न कि जाँगर चलावे वाला लोग आपस में लड़त कटत रहसु एह लोग का आपसे का लड़ला से फुरसति ना होई, जमींदार का ओर तिकवल त दूर हो
बतियो ठीके वा । जाँगर चवाले वालन में फूट डालि के ओही दल का आदमिन से ओह लोग के सर करावल जात बा लोहा के टांगा केतनो तेज आ बरियार होखे जवले ओकरा लकड़ी का बेंट के साथ न मिले तवले एगो पातर डाढ़ि तक ना काटल जा सके।
गरीब का जाँगर से कमाइल गेंहू, बासमती आ राबड़ी मलाई खाइ का ओही का छाती पर जुलुम क जाँत चलावे वाला जमींदारन के पाप देखि के सुरुज भगवान आपन मुँह लुकवाई के अकास का नीचे चलि गइल रहलन। उनकर जगही लेबे खातिर राति क राछछिनि पूतना नियर आपन मुँह फइलवले चलि आवति रहे। तसिलदार साहेब नेवार का पलंगरी पर मखमल के गद्दी मसनद लगाइ के गुड़गुड़ी पुड़पुड़ावत रहलन।
एही घरी चपरासी लोग कुबेर के मुसुक चढ़ाई के डुभुकी का रस्सा में बन्हले तसिलदार साहेब का आगा ले आइ के हाजिर कइलन जा हरिनी जइसे बाघ के देखि के काँपति होखे ओइसहीं तसिलदार देवनाथ सिंह के देखि के कुबेर काँपत रहलन। ऊ जानत रहलन कि जमराज का दरबार में पहुँचि के आज हमार पूरा हजामति बनि जाई ।
कुबेर के देखते तसिलदार साहेब आँखि लाल-लाल कइले खीसी से जरल करेजा ठंडा करे खातिर, हाथ में बेंत लिहले, खटिया ले नीचे उतरि परलन आ बाझ जइसे चिरई पर टूटि परे ओइसही पीपर में बान्हल कुबेर पर टूटि परलन।
"का रे साला माधड़... सोरहो आना सनकि गइल बाड़े ? तोरा ई पता बा कि ना, जे जेकरा सनक चढ़े ला ओह असामी के टेकुवा नियर सोझ करेवाला हमहीं हुई? अबे जमींदारी उठलि नइखे तोहरी जेकाहू का बाँस... जमींदारी त देर से उठी एकरा ले पहिलहीं हम तोहन लोग के एह दुनिया से उठाइ देव।"
बाबू देवनाथ सिंह तसिलदार इहे कहि कहि, बिना मोह छोह क कुबेर का देहिं पर आपन बॅत, छोड़त गइलन पाँच बेंत मारि के त एक बेर गीनसु । छनभर में कुबेर के देहि खून से फच फचाइ गइलि । जेनिए बेंत परे देहिं क चाम छोड़ाइ
के खून बहाइ दे।
नियरा - पास खड़ा होनेवाला वोसो नोकर आ असामिन का एतनो हिम्मत ना भइल कि जाइ के धरहरि करसु । जाँगर चलावे वाला क इहे कमजोरी आ बउराही त ओकरा के खाति वा किसान-मजूर मुरदा बनि के गहिरी नीनी में सूतल वाइन, फेर ओह लोग के अइसन दुरदसा भइल कवन अचरज बा ? केह आजले मुरदा के फिकिर ना कडल है। सभ जानते या कि हिंदू अपना मुरदा के जरा देलन आ मुसलमान नव मन माटी लादिलादि के ठेहुनभर गहिर गड़हा में गाड़ि देलन जमींदारी करिया नागिन है जेकरा देहि में एकर दाँत गड़ल ओकर बाँचल कठिन वा जाँगर चलावे वाला का छाती पर कोदो दरे खातिर देस में पहिले पहिल पहुँचला पर आपन दखल जमाइ के देस का दउलति के मलाई सरहोथे खातिर, रंगरेज जाति के दलाल आ विलायत के एगो जमींदार लाट करनवालिस १७९३ ई० में एह पूतना पापिनी के पयदा कइलसि । कलमि का नोख से एक सोत में देश के सर्व॑से जमीन कमायेवालन का हाथ में ले छोनि के देस का उलटा चलि के रंगरेज जाति के मदति आ दलाली करे वाला टुकड़खोरन का हाथ में दियाइल।
जे किसान जंगल काटि के कुस, राढ़ी आ मोंधा कबारि के, जमीन के पयदवार बनवलनि, जेकर तीनि चारि पुहुत एकरा के सोझ भा चिक्कन बनावे में गलि गइल आज उहे विरान समझल जात बाड़न, कहाँ के नेयाव ह ?
एक ओर त ई हालि रहे, दूसरा ओर गरीब के गरदन काटेवाला दलाल, पंडापुजारी आ उपरोहित भी दूसर चुगुला बाबू दलसिंगार राय का दरवार में पहुँचि के, सामी मनोगानंद जी का सिकाइति से उनकर कान भरसु जुलुमी जमींदारन का कान होखेला आँखि आ अकिलि ना होले पहिले कुछ दिन ले त बाबू साहेब बातिन पर धियान ना दिहलन।
उनकर खेयाल रहल कि दउलति का मोहिनी से जेकरा के चाहबि फँसाइ लेबि सामी जी के बझावे खातिर किसिम-किसिम का माया क जालि बिछावल गइल बाकी ई जादू बेकार जनाय लागल।
कबे-कबे बाबू साहेब का सुबहा होखे कि हमार दसा रेसम का कीड़ा क जनि होखे। हम त एह गेरुवा बाला के अपना जाति के बिदमान साधु जानि के लियाइ अइली जे हमार रइछा करी बाकी ई त उलटे हमार जरि खोदत बा एकरा के अपना जमींदारी में ले हटवावे क उपाइ लगावे के चाहीं ।
बाबू साहेब पढ़ल लिखल त जरूर रहलन बाकी मतलब का छोपनी से उनका आँख बंद रहली स उनकरा जमाना क अँजोर आ हवा क रोख बदलल ना जनाय । लछिमी आ सुरसती में एह बाति के लेइ के हरदम झगरा रहेला। लोग सुनले होई कि सुरसती क सवारी हंस पर होले आ लछिमी क उरुवा पर एकर मतलब कि बिमान हरदम नेयाव चाहेला दूध क दूध, आ पानी के पानी कइल ओकर काम ह । ऊ दुनिया का मानसरोवर में डुबकी लगाइ के मोती नियर पदारथ बीनेला आ जनता का आगा धड़ देला दूसरी बहिन उरुवा पर चढ़ेली, एकर मतलब कि उरुवा का जइसे अँजोर में ना लउके ओइसहों जेकरा पास दउलति बा ओकरा मतलब छोड़ि के दूसर कुछ ना सूझे दुनिया में चमचम दिन होइ के का करी जे ओकरा अन्हरिया रतिए से मतलब बा
सामी जी विमान रहलन ओहू में साचो क लँगोटाबाज साधु । आजु ले दुनिया में, केहू साधु के मन आ नदी का बेग के बान्हि के ना राखि सकल दूइ- तीन महीना बाबू साहेब का इलाका में घूमि फिरि के उनकरा सभ बाति क अन्दाज मीलि चुकल रहे दरबार के कवनो भेद उनका से छोपल कठिन रहल।
कंगरेस पर मालदारन के कब्जा दखल होत देखि के एकरा ले ढेर दिन पहिलहीं सामी जी गरीब क संगठन करे क बाति मन में सोचि चुकल रहलन। बेद- पुरान, गीता आ सासतर क पोथी चटला का बाद हजारों तीरथ में घूमि के सामी जी का भगवान के पता लागि चुकल रहे अब त सभ जंजाल छोड़ि के उनकरा जनता क सेवा करे के रहल जमींदारन क राछछी जुलुम देखि के उनकर ई राइ अउरी पक्का हो गइलि। ऊ अपना मन में पक्का कइ लिहलन कि जमींदारी के जरि खोदि के किसानराज कायम कइ लेवि तहिए दम लेबि ।
राति भर कुबेर ओही पीपर का फेंड़ में बान्हल रहलन। तसिलदार क हुकुम रहल कि हम सवेरे दरबार में जाइवि एकरा के साँझ का बेरा ले अइहs स बाबू साहेब का आगा हाजिर कइ के त छोड्ल जाई।' इहे कहि के अनगुतहाँ दस बजे खाइ पो के तसिलदार साहेब क घोड़ा कसाइल आ ऊ दरबार के राह लिहलन।
बाबू साहेब खइला का बाद बोतल चढ़ाई के दिनही पतुरिया लेइके अपना कोठरी में सूतल रहलन। घरी भर दिन रहल त उनकर उँधाई टूटलि जलखई कइला का बाद बहरा निकलि के दरबार में बइठलन इलाका का पाँच-सात गाँवन पारा पारी आपन काम ओरियावे लागल। आखिर में देवनाथ सिंह क पारी आइलि कहां आपन हर हिसाब के बुझारथ का बाद इलाका में फइलल बेमारी क बयान पूरा नमक मरिचि लगाइ के सुनवलन ।
ई कहनी होति रहलि ओही घरी पिपरादाहा छावनी के चपरासी कुबेर के मुसुक बान्हि के मारत पीटत दरवार में हाजिर कइ दिहलन।
गदहवेरि हांति रहलि गरमी के दिन, बाबू साहेब बइठका छोड़ि के अपना फुलावरी में बडटल हवा खात आ इलाका के बयान सुनत रहलन। कतहीं बेइला फुललि रहे त कतहों जौनपुरी गुलाब अपना बेदी पर बाबू साहेब बइठल रहलन ओकरा चारो और मखमली रंग का दूवि पर फुहेरन क सोभा देखहीं लायक बनति रहे।
एक त गरमी के दिन, खीसी के गरमी कुबेर के सामने लडकल आगि में घोव के काम कइलसि बाबू साहेब हाथ में कोड़ा लिहले कुरसी छोड़ि के खड़ा
हो गइलन। दूइ साँझ क वे खइले कुबेर, लात-मूका आ तसिलदार साहेब के बेंत पाइ के पूरा अघाइ गइल रहलन। पान कसइली के खातिरदारी में जवन कमी रहे ऊ बाबू साहेब का दूइ चार कोड़न से पूरा हो गइल। कुबेर लहूलुहान होइ के अँवरा का गाँछ में बान्हल बेहोश परल रहलन। बाबू साहेब के हुकुम भइल कि एकरा सभ बेकतिन के पकड़ मँगावल जाय तसिलदार बाबू साहेब के चालि जानि के इशारा कर चुकल रहलन कि एकरा दूई गो बड़ा सुघर लड़की बाड़ी से उन्हन का रूप का आगा पतुरिया झूठ बाड़ी स
हुकुम क देरी रहे। गाँव देवढ़ी ले डेढ़ कोस पर परत रहल। मूसरचंद सिपाही लाठी भाला भाँजत कुबेर अहिर का घर पर पहुँचि गइलन ।
कुबेर के मेहरारू बोरसी में गोइठा सुनगाइ के घर का दुवारि पर बइठल रोवत रहलि ओकरा उमेदि ना रहल कि कुबेर लवटिहन। काहे से जे इहे बाबू- साहेब केतने असामिन के दिन दुपहिया बोरा में बंद कराइ के जियते आणि में जवाई दिहलन आ कुछ ना भइल। चानी के छड़ी सभके मोहि लिहलसि ।
बाबू साहेब क चपरासी गाँव का गोड़इत के मिलाइ के लियाइ अइलन गोड़इत कुबेर बो के कुछ बतियाइ के भुलवावे का बहाना से फरका हटाइ ले गइल। एतने में चपरासी निकलि के कुबेर का घर के भीतर पइठि गइलन स कुबेर बो बतियावे में बाझल रहली आ एने त चपरासी लड़किनि का मुँह में लुगा कोंचि के भाला से जान मारि देबे क धमकी देत गाँव ले बहरा पहुँचलन स
अन्हरिया राति आठ बजत रहे लोग एह बाति के ना जानि सकल गाँव का बहरी बाबू साहेब क तेज टमटम खड़ा रहे। लइकनि के बइठाइ के मुँह में क लुग्गा निकालि दियाइल आ टमटम नव दू एगारह भइल हजरिया घोड़ा दूध, चना खियाइ के पालल रहे रासि पकड़ते पवन से बात करे लागल आधा घंटा का बाद दूनो लइकी बाबू साहेब का सेवा में हाजिर कइल गइली स ।
तसिलदार आ अमला लोग बेरा दूसर जानि के जहाँ-तहाँ चलि गइल। बाबू साहेब खाइ पी के बोतल ढारत रहलन। पलंग बिछल रहे। बोतल का बाद जवना मसाला क जरूरत होला ऊहो पहुँचिए गइल रहे अब देरी कइल बाबू साहेब का ठीक ना जनाइल लोग लड़कनि के आगा कइ के चलता भइलन जा
सामी जी पटना से लवटि के कुबेर का पिटइला आ लइकनि का बेइज्जत भइला क रोवाँ खड़ा करे वाली कहनी सुनि के कॉपि गइलन जुलुम का अइसन पाप भरलि कहनी से उनकरा नियर धीर आ बिमान महातमा के मुँह लाल हो गइल। पटना में किसान सभा के नेंइ त पड़िए चुकलि रहलि सामी जी सबसे पहिले एही इलाका से जुलुम बंद करे आ जाँगर चलावे वाला गरीब किसान मजूर का काम के सिरिगनेस कइलन पहिले उनकरा किसिम-किसिम का कठिनाई आ विधिन से दाँत खट कइ देवे वाली लड़ाई करे के परलि, बाकी सामी जी तनिको ना कचकलन अउरी नेता लोग नियर उनकर करेजा मोमि क ना बनल रहे सामी जी का हिम्मत का आगा इसपात के मजबूती कुछ ना रहलि ऊ गाँव-गाँव घूमि के किसान सभा के बरियार करे आ लोगन के समुझावे लगलन ।
ई बात के नइखे जानत कि रगर अइसन चीज ह जे पत्थल पर जेंवरि का अडला - गडला से दाग बनि जाला, आदिमी के समुझावल जाई त ऊ काहे ना समझी।
कवनो बाति क हद होला। छाती पर दिन राति जुलुम क जाँत चलला से बाबू साहेब का इलाका क किसान उबियाइ के एह नरक ले बहरा निकले क जगहि आ मोका खोजत रहलन।
बाबू साहेब का आँखि में चरबी छवले रहलि गरीब के खून उनकरा कपार पर चढ़ि के नाचत रहल। जाँगर चलावे वाली जनता क जवन हजारो मन लोहू नगीना वनि के उनकरा दरबार के शोभा बढ़वले रहल समय पाइ के उनकरा नाश क कारनो ऊहे भइल। कहीं हाथी हथियार में बान्हले मरि गइल त कहीं घोड़ा बेमार परल, बेमारी का तीसरा दिन घोड़ो मरि गइल।
बाबू साहेब का एक ही लइका रहल ऊ पटना कालेज का बी०ए० दरजा में पढ़त रहल। बाबू साहेब उदास होइ के अपना फुलवारी में बइठल जमींदारी बचावे क बाति सोचत रहलन। एतने में डकपिउन तार के कागज ले जाइ के उनकरा हाथ में दिहलन।
तार पढ़ते बाबू साहेब के कपार टनके लागल। उनकरा चेहरा क रंग उड़ि गइल। बेमार होइ के उनकार बेटा पटना अस्पताल में परल रहे। बाबू साहेब फसिली का बेमारी का हाल सुनि के जल्दी से जल्दी पटना पहुँचे के तइयारी कइ के इसटेसन पहुँचलन एक बजे पटना जाए वाली डाकगाड़ी में दूसरा दरजा क टिकट लेड के मुसाहेब, चपरासी आ खिजमतिया का संगे बाबू साहेब पटना खातिर रवाना हो गइलन।
इसटेसन से उतरि के बाबू साहेब फिटिन पर सवार भइलन आ बाहरे बाहर बड़ा अस्पताल पहुँचलन। एइजा बाचा जी के बेमारी डाकदर लोग का काबू ले बहरा भइलि जाति रहे। बोली बंद हो चुकलि रहल दुनिया का छोड़े में दस मिनिट क देरी रहलि ।
बेटा का ऑंख में लोर देखि के बाबू साहेब अपना के रोकि ना सकलन । उनहू के आँखि डबडबा गइली स नोकर, मुसाहिब, डाकदर सभ घेरलहीं रहे बाकी बाबू साहेब क हीरामोती बेटा के रइछा ना कइ सकलि ।
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सामीजी का सिखवला से किसानन में नई जिनिगी आ गइलि सामी जी, किसान- मजूर के ओकरा भुलाइल बल के इयाद परावे आ बोध देवे वाला जामवन्त क काम कइलन। सामोजी क सिखावल विजुली काम कइलसि जाँगर चलावे वाला आपन हक समुझे लगलन। नतीजा भइल कि वरिस दिन में बेठ बेगारी, हरी आ सलामी कुल्हि बंद हो गइल।
जवन किसान हजारों बरिस ले गरदनि झुकाइ के जुलुम बरदास करत आवत रहलन अब ऊहे गरदनि सोझ कइके आ छाती तानि के चले क कोसिस करें लगलन। दिमाग में जनम जनम ले जवन कीट आ काई बइठलि रहे, ऊ अब सामी जी का उपदेश का साबुन से कलेकले साफ होखे लागलि केहू के मजाल ना रहे कि किसान-मजूर के आँख देखाइ सके।
जवना गाँव में सामी जी क सभा होखे, ऊ ओइजा का लोग के इहे बाति सिखावसु कि "दुनिया भर में, सच पूछल जाय त दुइये गो जाति बा। एगो त जाँगर चलावे वाला गरीब किसान-मजूर आ उनकरा इयारन क दूसरी जाति एह कमाए वाला लोगन के किसिम-किसिम का जाल में बझाइ के लूटे वाला मालदारन क ठहरलि। बीच में जवन भेद आ पचड़ा लउक बा ऊ मालदारन का दलालन के बनावल हउए। पंडा, पुजारी, साधु, गुरु आ उपरोहित लोग मालदारन के पइसा खाइ के तरह- तरह क पोथी लिखल आ मोका परला पर घरियाल का आँसू नियर लोर बहवलन कि गरीब एकरा में बाझल रहसु उनकरा ई ना पता चले पावे कि हमन का देहि में हजारों जोकि लागल बाड़ी स
करम तकदीर आ पुरुब जनम का कमाई क बाति अइसने जाल ठहरल । अब किसान-मजूर का सजग होइ के अपना देहि में क जोंकि छोड़ाड़ के ओकरा मुँह पर नीमक धरे के परी कनून आदिमी खातिर बनेला आदिमी कनून खातिर ना बने। कनून आदिमी का सुख चयन खातिर बने के चाहीं, ओकर खून चूसे आ हयवान बनावे खातिर ना दुनिया में आज ले जवन कनून बनल ह, ऊ सयकड़े पनचानबे के लूटेवाला, ओकरा के झगड़ा-झंझटि भा खतरा का नाँव पर दबावे आ सतावे वाला किसान-मजूर का जागि के अब दुनिया के बताइ देवे के समय आइल बा कि अब जमाना बदलि गइल। आज के कनून सयकड़े पनचानवे के अराम खातिर बनी अब मुट्ठी भर मालदार आ उनकर दलाल परलियामेंट में बइटि के जवन मन करी ऊहे ना कई सकसु अब त बड़ी पारलियामेंट से लेइ के सूबा का कानून-सभा आ गाँव पंचाइत तक में हर फार कुदारी के काम करेवाला किसान आ कारखानन में काम करेवाला मजूर अपने जइहन।
किसान भाई, सजग होखे में देरी कइलऽ जा त फेर उहे गुलामी के नरक भांगे के परी तोहरा से चलाक त तोहार बैल बा एक साँझ जवना बैल के खरी- भूसा भी खेसारी के दालि नइखे मिलत त ऊ हर के पल्ला फेंकि के बीच हराई में बठि जात वा ।
फउदि कचहरी, थाना सभ जगहन में किसान-मजूर क लड़का काम करत बाड़न बाकी उनकरा ई चेत नइखे कि हम केकरा पर गोली चलावत बानी, आ काहें ? जुलुम करे वाला का जाँगर चलावे वालन से हरदम हारे के परल बा। दुनिया क पोथी पतरा इहे बताइ रहल बा। बिलाइति का चारलस, फरांस का लूई आ रूस का जार के कवन गति भइलि ई तोहन लोग से छीपल नइखे।
किसान, दुनिया के गेहूँ बासमती, आ मेवा मलाई खियावे वाला भगवान ठहरल दुनिया का समझे के चाहीं जे एगो किसान मरल त हजारन के अमिरित नियर पदारथ देवे वाला देवता मरल, दूसरा ओर एगो जमींदार आ मालदार मरल त हजारन क खून पीये वाला अजगर साँप मरल ।
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पिपरदाहाँ, बाबू दलसिंगार राय का जमींदार के सबसे बड़ मउजा रहल बाबू साहेब का जमींदारी क मक्खन, सोरह सइ बिगहा बकास्त एही मउजा में रहे। बाबू साहेब अपना जाल फरेब का बल पर किसानन के किसिम-किसिम का मोकदमा में फँसाइ के लड़ावत लड़ावत एतना जमीनि लिलाम कराइ के बकास्त बनाइ चुकल रहलन। बाबू साहेब का त हर बैल रहे ना जे खेती करइतन एह से सउँसे बीस मने आ पचीस मने विगहा मनी पर किसानने के 'बंदोबस्त' करसु ।
सामी जी का संगठन से किसानन में बल आइल आ 'बकास्त जोते वाला के मिले के चाही'-क अंदोलन चले लागल बहुत दिन ले त लिखा-पढ़ी, कचहरी आ सिरिहिता के राह देखल गइल, बाकी ई राह बेकार साबित भइल। जवना दुनिया में कनून आ नेयाव पइसा का बल पर बेंचात किनात बा ओइजा किसानन के गुजर कहाँ रहे ? नतीजा भइल कि लचार होइ के पिपरदाहाँ क किसान सतियागरह के तइयारी करे लगलन ।
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दुनिया के बेवहार बतावत वा कि आदिमी का अपना बेटा भा सर्वांग मरला ले धन चलि गइला के ढेर दुख होला। बेटा सवाँग का मरल पर त लोग जियबो करेलन बाकी धन चलि गइला भा नास होखे लगला पर त करेजा में अइसन घाव होला कि ऊ जान लेइ के त दम ले ला ।
तिब्बत देस में मुनचिन पो नाँव के एगो राजा रहलन समय पाइ के क अपना खजाना के दउलति राज का जनता में तीनि बेर बराबर-बराबर बाँट दिहलन उनकरा महतारी का एह बाति से पूरा दुख लागे। दूइ बेर ले त ऊ बरदास कइली, बाकी तीसरा बेर बैटला का बाद अब ना सहाइल त खायक में माहुर मिलाइ के खिया दिहली आ राजा मरि गइलन... ।
बाबू दलसिंगार राय के केतना नास भइल बेटा मरि गइल, हाथी-घोड़ा तक संग छोड़ि के चलि दिहलन बाकी किसान-मजूर के लूटे वाली उनकर आदति ना छूटलि। सतियागरह के नोटिस पावते बाबू साहेब का बयखरा लिहलसि । ऊ आरे- पटना दउरि के सरकार के दुआरि खट-खटावे लगलन ।
बहुत दउर धूप कइला आ हजारों क थइली चढ़वला का बाद सरकार क अरजी भइल।
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जिला का हर थाना के किसान पिपरदाहाँ सतियागरह में मदति देवे खातिर अनाज आदिमो आ नगद पइसा भेजे लगलन सामी जी जिला का हर मउजा में दउरि के एह बाति के निगरानी करत रहसु
सरकारी पलटनि आधारति का बेरा पिपरदाहाँ छावनी पर पहुँचि के डेरा डालि दिहलसि । किसान मरे मिटे खातिर तइयार रहलन त उनकरा पलटनि के कवन फिकिर रहे।
बिहान भइला पाँच सइ किसान कान्हि पर हर धड़ के ओकरा में लाल झंडा बन्हले बैल हाँकत जुलूस का रूप में बकास्त जमीन पर पहुँचि गइलन सिपाही लोग जूनि बेरा देखत रहे तवले हर नधाइ चलल ।
घरी भर दिन चढ़ल त सिपाही लोग खेत पर पहुँचि के देखत बाड़न कि गाँव-गाँव से किसानन के झुंड लाल झंडा लिहले खेत पर जुटि रहल बा। कई हजार आदिमी जमा होइ के गाना गावत बाड़न-कोटि जतन कर5, चाहे बिख खाइ मर5, अब ना बची जमींदारी जमींदरवा!' केनियो ले मेहरारुन के झुंड आवत बा त केनियो ले मूसारोई नवजवानन क लड़का फरका खड़ा होइ के गाइ रहल बाड़न स
"केकर केकर नाँव गिनाई जग में बहुत लुटेरवा रे ! मालिक लूटे, महाजन, लूटे, अउरी लूटे सरकरवा रे !!
साधु गुरु उपरोहित लूटे कइ के धरम के बहनवा रे! अमला, हाकिम, नेता लूटे, रंडी वोकिल मुखतरवा रे !!"
पुलिस किसानन के धरे पकड़े लागलि । केतने किसानन के कपार फूटल आ जेहल जाए के परल पुलिस के पूरा पूजा भइल रहल एह से ऊ मारपीट करे आ डेरवावे धमकावे खातिर उठाइ ना रखलसि ।
जेतने जुलुम होखे, किसानन क जोस बढ़त जाय। बीस आदमी पकड़ के भेजल जासु त चालीस गो तइयार रहसु । कई हजार किसान पकड़इलन बाकी सतियागरह बंद ना भइल।
आखिर में बाबू साहेब, सरकार का दरबार में पहुँचि के सामी जी के पकड़वाने क कोसिस पयरवी कइलन सरकार उनकर बाति सुनि के सामी जी के पकड़लसि त जरूर बाकी एकर नतीजा उलटे भइलि सामी जी का पकड़ाते आणि क लहरि अउरी जोर पकड़लसि ।
पचीसो जिलन के किसान-मजूर सभ काम बंद कइ के भारी हड़ताल मनवलन सामी जी जब पकड़ के पटना भेजल गइलन त दस हजार किसान रेलि लाइन छेकि के सूति रहलन।
कुल पचास दिन पिपरदाहाँ के सतियागरह चलला का बाद बाबू साहेब करिहाँइ धड़ के थसकि गइलन किसान देवता के विराट रूप देखि के उनकर रोवा काँपे लागल।
सरकार हलगुलान से फरके घबड़ाइल रहल। ओकरो मन भइल कि बाबू साहेब के दबाइ के सुलह कराइ देई।
बीस दिन जेहल में रहला का बाद सामी जी छोड़ल गइलन किसान अपना और ले सामीजी के पंच मानि चुकल रहलन। बाबू साहेब का किसान सभा का सामने माथ नवाइ के सुलह करे के परल।
D पिपरदाहों के पनरह सह विगहा जमोनि ओइजा का किसान भाइन के मिलल आ सइ विगहा बाबू साहेब का खाए-पीए के छोड़ि दियाइल सामीजी अपना मड़ई पर मालपुवा आ तरकारी के भोजन कइ के किसान सभा का काम करे वाला सेवक लोग क पूजा कइलन; कपार पर फूल चंदन चढ़ाई के सभ के मालपूवा तरकारी खियवलन ।
सामी जी अपना किसान भगवान के पूजा कइ के मन क मनोरथ पूरा कइलन उनकरा मुँह ले खुशी का मारे निकलि परल कि हमरा 'किसान भगवान' क जय!