लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच प कायम ना रहे, रुपया पइसा के लेन-देन पर ना-: - ओ व्यवस्था में सबकर सब प हक रहे आ केहू ओ में दखल ना दे सके बियाहे में, जनेवे में बाँसे के छितनी, बाँसे क डाल बनावे वाला धरिकार बसें अनहन के जजमानी बॅटल रहे। जवन गाँव ओनके जजमानी के रहें ऊ गाँव उनुकर गाँव हो जाय, ओही किसिम के मिल्कियत ऊ मानें एक बेर अइसन भयल कि हमरे गाँव के जजमानी वाला धरिकार हमरे लग आयल बोलल कि बाबू एक ठे कागज बनाय दे. हम ई गाँव पाँच बरिस खातिर बन्धक रखल चाहऽतानी पाँच रुपया में हमरा बड़ा किरोध आइल कि ई कवन गाँव के बंधक रखे वाला! त बोलल कि बाबू गाँव पर सबकर आपन हक होला, हम आपन हकवे नू बंधक राखतानी, दोसर आपन हक रखो, हमके कवनो गुरेज नाई वा खैर कागज बना देहनी, ऊ गाँव बन्हकी रखलें, कब छोड़वले भगवान जानें तब त हँसी आइल, आज सोचीले त मन उदास हो जाला कि का हम अपने गाँव प ओ हक के दावा क सकीले ? जवने गाँव में पैदा भइली, जवने गाँव के पानी पियलों, जवने गाँव के बयार साँसे में भरल, जवने के धूर-माटी में बड़ भइलीं, जवने के आगे के बगइचा में जेठ के लहकारत लुक्कड़ के कुच्छ नाहीं बुझलों, ओह गाँव के का हम आपन कह सकले ? बरिस क बरिस बीत जाला ओ गाँव में जाय के मौका न लागेला कइसे कहीं ऊ गाँव हमार ह आ ईहो कइसे कहीं कि ऊ गाँव हमार ना ह ओ गाँव के लोगन के जवन प्यार-दुलार आदर मिलल बा - कइसे कहीं कि ऊहे प्यार- दुलार आदर हम ना हुई।
राप्ती नदी के कछार में बसल गाँव, नगीच से नगीच सड़क-तीन कोस, आज काल्ह के नाप-जोख में १० कि०मी० लामे, नगीच से नगीच रेलवे स्टेशन- पाँच कोस माने लगभग सोरह किलोमीटर लामे, गाँव के पछिम और एक कोस प राप्ती नदी आ पुरुष और एतने दूरी पर गोर्रा, राप्तिए नदी से निकलल एक ठो शाखा बाढ़ आवे त दूनो नदिया एक हो जाय अपने गाँव के गैंड़ा नाव लागे, ऊहे सड़क ले चलि जाय। बाग-बगइचा सब पानी में डूबि जाय, बाढ़ि निकल जाय त
अइसन पानी खेतन में आवे कि खाद दिहले के जरूरते ना रहि जाय। ऊपरे ऊपरे अनाज छींट दें त ऊ छतियाफार उपजे बाढ़ तब एक साल आँतर देके आवे जवना साल ना आवे तवने साल रहर अइसन उपजे कि ओ में गाइभैंइस त लुकाइए जाय, छोट मोट हथियो लुका जाय कछारा में रहरी रहरी आदमी कोसन चल जाय, पते ना लागे गाँव के पुरुब ओर आगे के बगइचा रहल सबसे छोर प हमरे घर के बाग रहल सज्जी बिज्जू आम रहल आ बड़ा पुरान। चिनियवा आम फरे त गाड़ी के गाड़ी आमे आम, करियवा में आम कम आवे, बड़ा मोट ओकर छिलका रहे बाकिर रस बड़ा रहे। जरलहवा आम बड़वर रहे, आधा बिजली लगले से झुराइल रहे आ ओकरे नाते ओकर अजबे सवाद रहे। मिठवा गोपुली एक जड़ में दू आम रहल एक ठो आम रहल जवन कच्चे मीठ रहे आ पाके त ओमें कीड़ा पर जाय आ एक ठो मुदियवा आम रहे, छोटे छोट होखे आ कठेसे होखे बाकिर बहुते मीठ कवनो के सवाद दोसरे के सवाद से ना मिले। गाँवो के ईहे हिसाब रहे। केहू के गुण दोसरे में ना मिले, गुण अलगे, चेहरो अलग, सुभावो अलगे, चलियो अलगे। ओ बगइचा के बीच में एगो पीपरे के पेड़ रहे। ओके घंटहवा पीपर कहल जाय आ ओके नीचे जात के लरिका सब डेरायें। ओही बगड़चा से होके प्राइमरी स्कूल दोसरे गाँव में रहे। ओके बीचे मरगा नाला रहे, बाढ़ में उहे नदी हो जाय। कम पानी रहे त केकरो कान्हे प ना त लकड़ी जोड़ के नाय बना के पार कइल जाय। पता ना कहाँ के जलकुंभी आ गइल कि सुखा गइल ना त तनी-मनी पानी गर्मियो में रहे। ओही मरगवा के सटले तीन-तीन गाँव रहे। दखिन सीवान प गोपलापुर, पछिम सौवान प दुलारी आ कोनाहे पछिम उत्तर दीव आ दक्खिन के और कोनाहे डुमरी ।
हमार गाँव सबके बीच में रहे आ सबसे तनी ऊँची रहे। हमरे गाँव में सबसे नीमन बात ई रहे कि सब जाति आ व्यवसाय के लोग रहल पाँच घर बढ़ई, चार घर लोहार, चार घर नाऊ, पाँच घर दखिनहवा चमार, एक घर चमड़ा के काम वाला चमार, तीन घर तेली, पाँच घर कलवार, तीन घर कोंहार, तीन घर माली, दू घर लाला, दू घर सकलदीपी बाम्हन, एक घर पुरोहित, सबसे ढेर घर अहीरन के, मलाहन के आ मुड़ेरी लोगन के मुड़ेरी लोग अधिकतर बंगाल में, असम में नाय चलावे, तिजारती बड़की बड़की नाय होली के अरीब-गरीब घरे आवें आ जतना दिन गर्मी रहे औतना दिन ओनहन के बंगाल, असाम के जादू के खीसा गाँव के बयारि में लहरात रहै। उनके घर में मेहरारू कुटनी पिसनी के काम करें। ओ में से एक मेहरारू आन्हर रहल हमरी घरे आवे आ चाकी प दाल दरै, पिसान पीसे आ कवी -कबो हमन के कथो कहनी सुनावे बिना केकरो मदद के ऊ चलि आवे । हमरे घरे हरवाह मलाह रहत रहलन भा चमार रहलन बाकी सिलवाह त सुखई रहले, उनके पहिले उनके बाप रहले दुल्हर सुखई काका के बड़ी रोब रहे। ऊ बाहर के बखार से महीने महीने खोराको में आनाज लें आ बड़ा अधिकार से हिसाब माँगे हमरे घर के पिछवारे बढ़ई के घर रहे। ओ में से हरवंस हमरा साथ पढ़तो रहले पछिम ओर कोंहारे के घर रहल ओ में से रघुनन्दन कोहार हमरा साथै रहले। उत्तर के घर सुन्नर लोहार के रहल। ओ घर के मटेल्हू के माई के हमरे घर में बड़ा दखल रहे। हर काज परोजन में ऊहें पतुकी, घड़ली, कोसा, कसरा बना के दें दिया दियारी में दिया बना के दें हमहन के, माटी के जाँता- जाँती आ छोट मोट गाड़ी बना के दें आ खूब लड़ें बियाहे उयाहे में मड़वा में हाथी रखाय ओ पे कलसा रखाय अपना पतोह के आगे क के ऊ जब हाथी कलसा ले के आवें त ओके परिछन होवे आ ओ परिछन में ओके नखरा देखे लायक रहे।
हमरे घरे के उत्तर और बिरजू अहीर के भाई बंद रहें। एक कोना में सरनाम- बिसराम रहले ओकरा सटले मलाहे के घर रहे। ओमे एगो सोखा रहले बिरजू । कहो हमार हरवाह उनकर चार भाई में एगो टहल रहले टहल बहू आ बिसराम बहू में दिन में आँतर भले पर जाय बाकी सबेरे-सबेरे संवाद शुरू होखे त दतुअन मुँह में रह जाय आ गारी सराप के कवनो कोटि वाकी न रह जाय। दूनो जने अपने- अपने घर के छोर तक आ जायें ना कबो हथापाई भइल ना झोंटा जोंटउअल, खाली गारी संग्राम होखों आ जब दूनो थक जाय तब उनुकर दतुअन पूरा होखे। हमार दादा पूजा करें बइठें आ महाभारत शुरू होय त कहैं कि अब शास्त्रार्थ शुरू हो गयल । बिरजू अहीर के एक लड़िका बलराज आ फिर दू लड़का दिलराज, लखराज। दिलराज कुछ दिन ले हमरे घरे नौकरो रहलें आ लालटेन बुतावे के होखे त ऊ बजाय बाती नीचे करे के मुँह से फूँक के बतावल चाहें। ऊ रंगून कमाये गइलें आ ओहिजे अलोप हो गइलें। एसै उनुकर माई लखराज के माई के नाँव से जानल जाय लगली। ऊ हमरा मतारी के सखी रहली लखराजो संसार से चल गइलें। उनके एक ठे बेटी रहल ऊ हमरा दीदी के सखी रहे। लखराज के माई के नियम रहें कि हम छुट्टी पे आई त बढ़िया दही जमा के ले आवें काजो परोजन में ऊहे दही जमावें। उनुकर हथौटी दही जमावे में मशहूर रहल। उनुकर जमावल दही के सवाद अबहीं ले जीभे में लागल बा कवनो दही ओकरे आगे नीक ना लागे। हमरे घर के पुरुष शिवधनी अहीर के घर रहे आ दूनो के बीच में डीह बाबा रहलें जिन कर पूजा दुखहरन चमार करें । उनुकर डफली आ तासा के बिना कवनो शुभकार्य होये ना उनके बेटा हमरे ईहाँ बाद में हर चलावत रहलें आ उनके घर के रमेश बहू सउरी में धगड़िन के काम करत रहली। हमार जनम उनहीं का हाथ भइल। तब छट्ठी ले त ऊहे चमाइन सउर सम्हारै ओकरे बाद नाउन सम्हारें हमार नाऊ रहले जगरोपन बड़ा सोझवा ऊ जतने सोझवा, उनुकर मेहरारू ओतने मुँह के तेज आ रोअनी हमार जनम खिचड़ी के दिने भइल रहे आ ओ साल बाढ़ अइले के नाते तनी मनी अकाले के स्थिति रहल। आधा गाँव खिचड़ी बनल- हमरे जनम में जवन पइसा लुटावल गइल ओही से। गाँव में लोग के हमरे ऊपर प्यार बहुत रहल। गाँव भर में हम बाबू कहल जाईं। अधिक उमर वाली लरिका मानें आ उनुकर पतोह चाहे कतनो सेयान होखें देवरे मानें। हम साते आठ वरिस के रहली तवे देवर मानके अइसे चुहुल करें कि हम लजा जाई ओमे कई ठे त बहुत ढीठ रहली। हम चार साल के रहलीं कि नागपंचया के दिने शिवधनी बहू पंचरंगो पहिर के निकलली। हम बाबा से कहलीं कि एही से आपन बियाह करब बाबा कहलें कि कुजात हो जइबs हम जिद पकड़लों त शिवधनी कहले कि अच्छा भाई आज से ई तहरे मेहरारू भइल। ऊ मेहरारू का भइल आफत हो गइल। हम पढ़े जाई ओही रास्ता से त उ अपना लइकन के ललकार देखऽ तहार दादा जा तारें हम तेजी से भाग जाई ओ लरिकाई के भूल के खामियाजा जले हम पढ़त रहली- हाई स्कूल, इण्टर में तले भरलीं। हम ए गोपी- प्रसंग के गोपन रखल चाहीं जवना के ऊ उधार दे। हम के बड़ा संकोच होखे। हमार बियाह भइल त शिवधनी वहू दही लेके अइली हमरा पत्नी से भेंट भइल त कहली कि देखों रउए हमार लहुरी सौतिन हुई। फेर लाज-संकोच चल गइल आ एक सहज हँसी- -मजाक बन गइल ।
गाँव के नाँव काहे पकड़डीहा पड़ल एकर हमरा कवनो जानकारी त ना बा बाकिर गाँव के दखिन एगो पकड़ी के पेड़ रहल। कबो शायद बड़वर रहल होई। आंही जा हमार खरिहान रहल, ओकरे दखिन काली माई के थान रहल। जइसन सरजी जगह होला आहिजो कवनो मूर्ति ना रहल खाली माटी के हाथी-घोड़ा बदलल जाले साले साल, जवन उनके सवारी के बोध करावे ले। कुआर चइत में फूले के रथ चढ़ावल जाला। मालिए लोग के काम ह ई केहू के बियाह शादी पड़े त काली के थाने गइल जरूरी काली माई, डीह बाबा, बरम बाबा हर गाँव में रहेलें आ उनुकर थाने के पूजा होला ओइजा कवनो मूर्ति ना होखे। हमरे गाँव में कवनी जमाने में बौर बाबा रहलें। माने यक्ष के पूजा होत रहल-हमार एगो खेत रहे बरे तर नाम के उहाँ एगो बरगद के पेड़ रहे। ओही बरगद के नीचे बीर बाबा के थान रहे। खीसा-कहानी में लोग उनके नाम इयाद करे। बाकिर ऊ पेड़ हमरा बचपने में खाली यादगार बन गइल रहे।
जवने घर में हमार पैदाइस भइल ऊ कच्चा रहे। ओकर बहुत सपना अइसन इयाद रह गइल बा खाली एक प्रसंग अवहाँ ले इयाद बा। शायद हमरे मन प परल पहली छाप ह ऊ हम ढाई-तीन वरिस के रहल होब पच्छिम ओर दलान रहे। ओही दलान में भाई बहिन अधपाकल फरुही (इमली) खइलीं हमसे ओकर बीया घोंटा गइल। हमरे दीदी के चिन्ता भइल कि इमलो खइले सब रोकेला, एके बतवलो ना जा सकेला आ ई वियवा जामी त का होई। कई महीना ले ओ बियवा के अंखुअइले के अनेसा बनल रहल। वियवा नाई जामल कहीं भितरे भीतर ऊ अइसने किसिम के पेड़ बन गइल जेके बारे में बतावल बहुत मुश्किल वा । हम गाँव में ना रहीलें बाकिर ओही पेड़वा के करने गाँव हमरे भीतर रहेला ओ पेड़वा के सोर बहुत नीचे चल गइल बा. भीतर बहुत गहिरे चल गइल बा ।
आज लोग कहले प पतियाई नाइ कि पिछड़लो कहायेवाला गाँव अइसन
मेल-जोल के गाँव हो सकेला जइसन हम देखले हई ई नाई के राग-द्वेष ना होखे,
आपस में कलह ना होखे, एक दूसरे के बारे में एहर-ओहर के बात ना होखे, गाहे-
बेगाहे झोटा झोंटउअल ना होखे, गारी सराप ना होखे-सज्जी रहल, अइसन
अइसन पंचाइत हमरे बाबा के सामने आवे जवने के गवाह ए दुनिया में मौजूदे ना
होखे-केहू कहे कि फलनी अपने नइहरे के भूत हमरे ऊपर चला देले वाटिन, केहू
कहे कि ई हमरे ऊपर टोना क दिहले बा। तब टोनहिन के नाम एक ठो आतंक रहे।
संजोग से हमरे गाँव में कवनो टोनहिन ना रहल बाकिर माई ओई दोसरे गाँवे के
टोनहिन के बारे में चेतावें कि ओनके नजरन में मत परिह5 ओसही एक
धोकरहवा के भय रहे कि बड़वार झोरा में ऊ लस्किन के उठा के चल देला जवने
बगइचा से होके स्कूल जाई ओ बगइचे के बारे में हजारन किस्सा रहे। ई सब रहल।
पुराने जमाने के त जुलुम के किस्सा रहने कइल, अपना सामनहूँ हम जमींदारी के
जुलुम कुछ-कुछ देखले रहीं। ई अच्छा रहल कि हमनी के ओ गाँव में जमींदार नाई
रहलीं। बाकी के जाने कतना पुश्त से हमरे घर के बूढ़ मुखिया रहलें आ हमरे बाबा
के दावा रहे कि हमरे गाँव कवनो के रपट थाना में नइखे गइल। झगड़ा-फसाद के
निपटारा गाँवे में हो जाय। बाबा घंटो लाग के भूत प्रेतन के पंचाइत निपटा दें। ई
जरूर रहे कि हमन के ओ गाँव में इज्जत रहे, आसोपास के गाँव में भी धन-दौलत
के नाते ना, ना अउरो कवनो अधिकार के नाते खाली एसे जे अइसन पण्डितन के
घर रहे जे केहूके दुआरे गइले ना, कवनो रजो के नेवता ना खइले, जे के कवनो
धरम-करम के बारे में पूछे के होखे ऊ हमरे घरे आवे। आ ईहे नाहीं, पटवारी के
कागज में कुछ गलती होय हमरे बाबा के याददाश्त में गाँव के धूर-धूर के नक्शा
अइसन साफ रहल आ सात-सात पुश्त के कुर्सीनामा अतना साफ रहल कि लोग
उनके बात के यकीन करें। नेम रहल कि बाबा सबेरे दिशा-मैदान जायँ त एक फेरा
अपने सज्जी खेत के त लगाइए लें, पूरा गाँव के खेती के हिसाब लगा लें आ कहाँ
का करे के बा, कवन कमी वा एकर हिदायत हरवाहे के दे दें। उनुके साथे हम बहुत
हिलगल रहली। उन्ही के साथे जागीं सूर्ती, ऊहे हमके महाभारत रामायण के
किस्सा सुनवल आ गाँव भर के कुर्सीनामा तक सुनइबे कइले गाँव के आस-पास के लोगन के पूरा इतिहास, ५७ के बदअमली के इतिहास, जे लोग के जमींदारी रहल, सगर के बड़का घर के इतिहास पूरा सिलसिलेवार बतवले हम काफी सेयान हो गइलो त जनलों कि हमार सग बाबा ना हवें, हमरे बाबा के बड़का भाई हवन ।
ओ समय हमरे गाँव में बजार ना लागत रहे। बाजार सोमारे सोमार बगल के गाँव बिसुनपुरा लागत रहे आ सोमार के बाजार कइले के नजारो एगो नजारा रहे। जगह-जगह देखे में आवे कि ओ गाँव के मेहरारू गाँव के मेहरारू से अँकवार लेके भेंटत बाड़ी आ तनिके में गोहरी के आग मतिन सुनगत बाटिन। दुई चार बून आँसू गिरा के फेर हँस-हँसा के इनके उनके बारे में नीमन बाठर बतिआवत बाटिन । बाजार गइले के एगो उमंगे अलग रहे। अपने छोटके दादा के साथ बाजारे जाई आ धुंधी गाँव के हलुआई मिठाई बेचे आवे। उनसे गुड़ के बतासा लेई ऊ गुड़ के बतासा हम फेर अब कहीं गाँव में देखलो नाई। बड़े-बड़े शहरन में गुड़ के फैशन आवडता बाकिर गुड़ के बतासा के सोन्हाई अब केहू का जानी, गाँवे के सोन्हाई अब केहू का जानी ई सोन्हाई तक आवेला मनई के हाथ के कवनो परस से ऊ परस अब गायब हो गइल, मनई मन से अगर मटियो छूवे त ऊ सोना हो जाई आ अगर कुभाव से सोनवो छुए त माटी हो जाई गँउओ त बटले बा, भूगोलो में बा, सन ९७ के इतिहासों में वा बाकिर गाँव में जवन रिश्ता के पारस परस रहल ऊ नाई बा हालांकि, चाहे हमार भरमे होखे, हम आठ-दस साल पहिले गया जाय के पहिले गाँवे गइल रहीं, गाँव के पितरन के नेवते के रहल कि चल सभे गया, त गाँव में कवनो घर ना बचल जहाँ के लोग अछत देवे ना आइल होखें। देखलीं कि जवन चेहरा फूले मतिन खिलल रहल तवन मुरझा गइल, जहाँ बतीसी झलकत रहल उहाँ गाल पंचक गइल, जवना हाथ में पछेला रहल ऊ हाथ सून हो गइल। शिवधनी बहू आधा पागल हो गइल रहली, नया-नया लड़िका अइलें जिनके चेहरा से उनके बापे के चेहरा याद आइल आ उनके बापे के नौवे से बोलवल। गाँव के लोग के अजगुत लागे कि हमके सवकर नाँव इयाद बा नाँव कइसे न इयाद रहो। हर नाँव के साथ कवनो न कवनो खट-मीठ-तीत बात टॅकल वा ।
एक बेर हम कोशिश कइलीं कि गाँव में अपने प्रयत्न से पंचायती व्यवस्था विध-विधान से हो जाय आठ-नौ गाँव के बड़ पंचायत बनवली, बिना कवनो सरकारी सहायता के पंचायत के चुनाव आ कार-बार दुइ साल चलवलीं लेकिन ऊ सपना अस टूट गइल हम अपने जवानी के जोश में ई ना समझलों कि जवन ऊपरी ठाट-बाट से हेल-मेल से, विधान बनेला ओ में कवनो सत नाई रहेला। जवन पुश्त दर पुश्त से चल आइल बा आ जेकरे पोछे कवनो कानून के चलावे वाला नाई वा ऊ अबी कवनी ना कवनो रूप में चलत वा मण्डल के नगाड़ा के बावजूद। काहे से ओकरे बिना कुछ नाई चली। अइसन नाई होत त अतना घरे क अच्छत हमरे अंजुरी में कइसे आवत आखिर सबके भरोस रहल कि हम पुरान
मनइन के अबो इयाद रखीलें, चाहे ऊ शिवभजन बढ़ई हों, गंगादीन अहीर हो,
मुंशी बलराम लाल हों, शिवशरण हजाम हों, अपने बौड़मपन बदे अलग छाप
लिहले राजा हों, कानून छोटे वाला लोचन मलाह हों, दुकानदारी में उस्ताद
रामदास हों, रघुबीर आ दुधई के बहिर जोड़ी हो, अपना खड़ले के अनुपात में भार
ढोवे वाला अहीर हों-सवकर कहीं अलग-अलग रूप आ सबकर कहीं अलग-
अलग रिश्ता मन में टाँकल बा ओही तरे लखराज के माई, रामअवध के माई,
लाला बिहारी के माई, दुनमुन फुआ, भनमतिया के माई, राम प्रसाद कोंहार के
माई, पारस माझी के माई, एक ओर भा दुसरी ओर चुहुल करे वाली ओ समय के
दू-दू तीन-तीन लरिकन के महतारी बाकिर गाँव के रिश्ता में भौजी लागे वालिन
के सहज स्नेह के रूप, उनके चुहल उनके एक से एक दावा- ई हे सब जोर जार
के गाँव हटे आ ओही के आपन गाँव कहि सकीं ले जहाँ छप्पर रहल उहाँ पक्का
मकान उठ गइल, जे दुब्बर रहल से जब्बर हो गइल, जे बोल नाई पावत रहे से
बड़का नेता हो गइल, ई सब गाँव के नक्शा चाहे होखे, गाँव ना ह आ गाँव होवो
करे त आपन गाँव ना ह अब सड़क हमरे बगइचा से होत अउर आगे चल गइल,
कौनो समय रहल कि दूध आ माठा बिकात ना रहल अब सितुही भर दूधे के
चाय बिकात, कवनो समय रहल कि जाति रोटी-बेटी ले रहला। आज हमरे गाँव
से उजर के दूसरे गाँव में बसल एगो पठान चाचा रहलें। एक-दूसरे के खेयाल
अइसन रहे कि ऊ हमन खातिर एक ठो अलग ओसारा में जगह भोजन बनावे के
बर्तन भाँड़ समेत रखले रहन आ हमरे घर के बियाहे में आके कार-बार सम्हारै
आ अब सुन ताटीं कि गाँव बदल गइल बा, गाँव में बिजुली पहुँचि गइल बा,
गाँव के दखिन बान्ह बन्हा गइल बा, अब बाढ़ आवे ना अब गाँव में साँवा -
कोदो टाँगुन ना होला। अब गाँव में कवनो कोल्हू ना बा, ऊख ना पेराला आ गुड़
पकावे वाला कड़ाहा में आलू भंटा ना पकावल जाला, पाक कड़ा प जवन
घिटउड़ा गुड़ देखे ओकर कहीं नाँव ना केहू जानेला दूध डेयरी में चलि जाला,
लखराज के माई के दही सपना हो गइल, गाँव में दुआरे दुआरे बहुत कम पोंछ
लडकेले, बैलगाड़ियो अब एकाध ठो टूटल पड़ल होइहें, ई हो सही बा कि अब
ओतनी भुखमरी ना होले बाकिर गाँव से अब चौपाल उठ गइल, पचइया के दंगल
उठ गइल, केहू चिक्का नइखे खेलत कबड्डी त अब राष्ट्रीय खेल में शुमार हो
गइल, गुल्ली डंडा के पता ना कवनो निशान बचल बा कि नाई, अब पटरी सेल्हा
से कहाँ चमकावत जात होई। कहाँ खड़िया के रोशनाई बा का ओ प नरकुल के
कलम से लिखत जात होई- बड़का सुन्नर-सुन्नर अच्छर-का ई सब बीत गइल,
का कबो ई सब बीती ? हमरे लेखे पकड़डीहा त अबो सदा अनंद रहे एही द्वारे के असोस बा आ कदम के गाछ चाहे कट गइल होखे झुलुहा पड़े कदम के डढ़िया में अब गाँव के रेखियाउठान उमिर जियतार गीत बनके गूँजेला। हम पकड़डीहा के निवासी हई ई कइसे कहीं. खाली घर बा, दुआर बा एसे कइसे कहीं एतना जरूर कह कि पकड़डीहा हमरे भीतर बा ओकर कब्जा ताजिन्दगी बरकरार रही। ओकरे साथ साथ उहाँ रहे वाला लोगन के हको ओइसने बनल रही। ऊ हक हम कतना दे पाइव, ना कह सक, बाकिर ओ हक के हम देनदार हई, ई समुझ के हम अपना के ओ लोग के बनिस्पत अधिका भाग वाला मानीले जेकर कवनो जर सौर नइखे रह गइल आ जंकरे ऊपर केहू के हक नाइ बनत वा।