कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डार। सपने कै सुख संपति हो, ऐसा घने बाँस का पिजरा हो, तेहि बिच दस द्वार पंछी पवन बसेरू हो, लावै उड़त न वार ॥ आतसबाजी यह तन हो, हाथे काल के आग। पलदास उड़ि जैबहु हो, जब देहि दाग ॥ संसार ॥
१
२
मितऊ देहला न जगाय, निदिया बैरिन भैली ॥ की तो जागे रोगी भोगी, की चाकर को चोर। की तो जारौं संत बिरहिया, भजन गुरू के होय ॥ स्वारथ लाय सधै मिलि जागें, बिन स्वारथ ना कोय । परस्वारथ को वह नर जागै जापै किरपा गुरू की होय ।। जागे से परलोक बनतु है, सोये बड़ दुख होय। ज्ञान खरग लिये पलटू जागें, होनी होय सो होय ॥
३
बनिया समुझि के लादु लदनियाँ । ई सब मीत काम ना अइहें, संग ना जइहें करधनियाँ ॥ पाँच मने के पूँजी लदले, अतने में गरत गुमनियाँ । कर ले भजन साधु के सेवा, नाम से लाउ लगनियाँ ॥ सउदा चाहसि त इहवें करिले, आगे न हाट दुकनियाँ । पलटू दास गोहराइ के कहेले, अगवा देस निरपनियाँ ।।
४
काहे के लगावले सनेहिया हो, अब तुरल न जाय ॥
जब हम रहलों लरिकवा हो पियवा आवहि जाय।
अब हम भइलों सयनिया हो, पियवा ठेकलें बिदेस ॥ पियवा के भेजलों सनेसवा हो, अइहें पियवा मोर हम धनि पइयाँ उठि लागवि हो, जिया भइल भरोस । सोने के धरिअवा जेवनवा हो, हम दिहल परोस । हम धनि बेनिया डोलाइब हो, जेवेले पियवा मोर ॥ रतन जड़ल एकझरिया हो, जब भरल अकास। मोरा तोरा बीच परमेसर हो, ए कहले पलटू दास ॥
मन बनिया बान छोड़े ॥ पूरा बाट तरे खिसकावै, घटिया को टकटोरे । पसंगा माहँ करि चतुराई, पूरा कबहूँ न तोलें ॥ घर में वाके कुमति बनियाइन, सबहिन को झकझौरे। लड़िका वा का महाहरामी, इमरित में विष घोरें ॥ पाँच तत्त का जामा पहिरें, ऐंठा गुइँठा डोलें। जनम जनम का है अपराधी, कबहूँ साँच न बोलें ॥ जल में बनिया थल में बनिया, घट घट बनिया बोलै । पलटू के गुरू समरथ साई, कपट गाँठि जो खोलै ॥