गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक
गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक
घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा
पंच : गाँव के मानिन्द आदमी
गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक आदि
- समाजी (चौपाई )
सिरी गनेस पद सीस नवाऊँ। गबरघिचोरन के गुन गाऊँ ॥ बहरा से गलीज घर अइलन मुदित भइल ना दाम कमइलन ॥ मेहर के ना भइलन साथी झूमे जस मतवाला हाथो ॥ एही से दुआर पर आई। निरखन लगे लोग बहुताई ॥ घरनी सुनली अइलन पीया रहि रहि के हुलसत बा जीया ॥ ले थारी जल पाँव पखारे आजु जनम भये सुफल हमारे ॥
गलीज बहू - (गलीज से )
(कवित्त)
कमल उछाह जइसे सूरज प्रकास होत कुमुद उछाह जइसे चन्द्रमा परस ते। भौरन उछाह जइसे आगमन वसंत जानि मोरन उछाह जइसे बरखा बरस ते। हंसन उछाह जइसे मानसरोवर बीच, साधन उछाह इच्छा आवत अरस ते। सबको उछाह एही भाँति उर होत अहै, हमसे उछाह स्वामी तोहरे दरस ते।
गलीज - ई झंझट कइला के कुछ काम नइखे जल्दी बतावs लइका कहाँ था।
गलीज बहू – (पति से)
(गाना-पूर्वी)
सिवा-सती जी क पूत, देवन में मजगूत, गिरत बानी तोहरे चरन में हो स्वामी जी !
गवना कराके गइल घर के ना सुधि कइलs मरडतानी तोहरा वियोग में हो स्वामी जी ! हाथ-बाँहि धइला के, सादी- गवना कइला के आजु ले ना कइलs निगहवा हो स्वामी जी ! बबुआ भइलन पैदा कुछ ना मिलल फैदा सब विधि कइलs बेकँदा हो स्वामी जी! आस मत नास कर5, बेटा के रहे द घर5 पगली के प्रान के आधार मोर हो स्वामी जी! पोसत बानी बचेपन से, बबुआ के तन-मन से कसहूँ उपास आध पेट खा के हो स्वामी जी! भिखारी नाई, देहु खीस बिसराई, उजरल घर के बसा द मोर हो स्वामी जी! (अपना बेटा से) ए बबुआ ! गोड़ पर गिर5, इहे तोहार बाबू हवन ।
- समाजी (चौपाई )
गिरत पुत्र पिता पग जाई। धरि के बाँह गोद बइठाई ॥
गलीज- चलs परदेस काहे तू सहवs घरे कलेस ? बेटा हमार -
गबरघिचोर - माई के संग में लेके चलs राखऽ अपने पास। छोड़ि के गइला से करिहन सब नर नारी उपहास ॥
गलीज- एह पागल के छोड़ दो बेटा, चलो हमारे साथ। फिर ना ऐसा मोका कबहूँ, लगेगा तेरे हाथ ॥
गलीज बहू-बबुआ के हम सोझा राखब, देख के करब सबूर। सब विधि से मत कर स्वामी, हमरा कर्म के चकनाचूर ।
गलीज - (बेटा के जबरदस्ती बाँहि घर के झटकार के) चलs बेटा,
तू
चलऽ ।
समाजी (चौपाई )
तेहि अवसर गड़बड़ी तहँ आये। पुत्र मोर कहि रोब जमाये ॥ तीनों में झगड़ा भये भारी देखन लगे सकल नर-नारी ॥ पंचित करन लगे सब लोगू गबरघिचोरन केहि के जोगू ॥ (पंच आवऽतारन)
पंच-तीन आदमी में झगरा लागल बा, झगरा छूटत नइखे, जवना पंचाइत
में हम बोलावल गइल बानी (गलीज का ओर देखावत) हइहे गलीज
-
बाड़न, गलीज!
गलीज - हैं बाबा !
पंच-इंहे गलोज हवन वियाह कके घर में जनाना बड़ठा देलन अपने चल गइलन बहरा कमाये। बाहर से ना कवहीं खत भेजलन, ना खबर भेजलन, ना पाँच रोपेया मनिआडर भेजलन एहिजा इसवरी माया गलीज बो हेने आउ ईहे 1 गलीज बो ह। एकरा लड़का पैदा लेले बाड़न बबुआ गबरघिचोर हेने आवऽ । गाँव नगर से बाहर में जाके केहू कहल हा कि गलीज तोहरा बेटा भइल बा । गलीज बहरा से आइल बाड़न, कहत बाड़न कि छँवड़ा के हम अपना जवरे बहरा लिया जाइब गलीज वो कहऽतिया कि कहऽ हम असरा लगा के जनमवलों, पोसलों- पलली, छँवड़ा के काहे लिया जडवs ? हमरो के लिया चलऽ । एही बात के दूनों बेकत में झगरा वा एही बीच में हुई गड़बड़ी कहत बाड्न कि हमार बेटा है। गड़बड़ी तू ई बतावs कि घिचोरवा में के हो के दावा कइले बाड़s ?
गड़बड़ी - घिचोरवा हमार बेटा नू ह, महाराज!
गड़बड़ी - ना।
पंच- माड़ी गाड़ि के ? बाजा बजा के ? नेवता नेवति के ?
गड़बड़ी ना महाराज !
पंच- तब तोर बेटा कइसे भइल रे बउराह लेके ?
गड़बड़ी - ए बाबा, हम जवन रउरा से कहत बानीं से सुनीं। हम रास्ता धइले जात रहाँ, ओने से लरिकवा के मतरिया चलल आवत रहे। हमरा से कुछ गलती हो गइल।
पंच-अइसे खाली 'गलती बा' ना वोले के राह में गलती हो जाई तेसे
का बेटी हो जाई ? कवनो सबूत बा ?
गड़बड़ी हैं, बइठल जाव, हम सबूत देत बानी !
राह में पवलों खाली जाली खोजत अइलन एगो कुचाली ॥
रोपेया धडलों लेलों निकाल ले जास आपन खलिहा जाली ॥ पंच-गड़बड़ी, हम तोहरा से ममिला पूछतानी, तू लगल गीत गावे ? गड़बड़ी- -हम गीत नइखीं गावत, आपन ममिले कहलों हाँ रावाँ से।
पंच बाकिर हमरा ना बुझाइल हा, ए बबुआ ।
गड़बड़ी-हेने आईं, दू डंग बढ़ आई, हम राव के समुझा दे तानों हम रास्ता धइले चल जात रहीं रास्ता में हमरा जाली मिलल अथवा डोंड़ा मिलल अथवा मनोवेग मिलल ओहमें हम आपन रोपये पइसा धइलीं। कुछ दिन बाद में जाली आ मनीबंग वाला आपन चीन्ह गइल त आपन मनीबेग ले जाई कि हमरा रोपेया- देबुआ सहते लेले चल जाई ?
पंच-तई बात तोहरा पहिले नृ हमरा से कहल चाहत रहल हा (दर्शक का और देखत) एह गरीब के राह में जाली मिलल अथवा डोंड़ा मिलल अथवा मनोवेग मिलल आहमें ई आपन रोपेया पइसा धइलस कुछ दिन का बाद में मनोवेग वाला आपन मनोवेग चीन्ह गइल त खाली आपन ऊ मनोवेग ले जइहन कि रोपेया डेबुआ सहीते लेले चल जइहन ? बबुआ गवरविचार, तू चल जो गड़बड़ी में ।
गबरघिचोर- ए बाबा, हम कुछ कहब ।
पंच- - का कहवा ? कहे के बा से कहऽ बाकी जाये के होई गड़बड़िये में।
पंच- बेटा ले जो गड़बड़ी।
गलीज - हमार बेटा है, गड़बड़ो कइसे लेके चल जइहन ?
पंच- जननवाँ नू तोर ह बउराह लेके । गलीज-ए, छँवड़ा ह हमरा लेके ।
पंच-मउगी के नू बाजा बजा के ले आइल बाड़ऽ । छँवड़ा के बाजा बजा के नइखऽ नू जनमवले ? ई बतावs कि कतना दिन में छँवड़ा भइल आ कतना दिन पर तू बहरा से आइल बाड़s ?
गलीज- पन्दरह बरिस भइल परदेस, ओहिजे लागल उमिर के सेस । बेटा ले के बहरा जाइब फिर ना घर में लात लगाइब।
तेरह बरिस के बवुआ भइलन । बेटा के खोजत बाबू अइलन ॥ लागत नइखे तनिको लाज । हँसत बाटे सकल गलीज बहू- समाज ॥
गलीज- हट, लाजवाली!
पंच- अइसन बेलज आदमी दुनिया में हम ना देखलीं। लजाये के जगहा कहीं ना मिले त जाके समैना का चोप में मुँह लगा द
गलीज- ए बाबा, रउरा बइठीं, हम सबूत दे तानी- गाछ लगवलीं कोहड़ा के लतर गइल पछुआर । फरल परोसिया के छप्पर पर से ह माल हमार ॥
पंच-गलीज हम तोहरा से ममिला पूछ तानी, तू लगलऽ ध्रुपद गावे ? गलीज हम आपन ममिलवे कहलीं ह ए बाबा !
पंच-सही में लपेट लपेट कहल5 हा बाकी हमरा ना बुझाइल हा ए बबुआ !
गलीज- ए बाबा ने आई. हम रावा के समुझा दे तानी हमरा कहूँ कोहड़ा के एगो थाला मिल गइल। ओकरा के हम ले अइलीं। अपना अंगना में रोप देलीं। ओकर सेवा सजम कइलीं ओकर लत्तर बढ़त बढ़त हमरा छप्पर से परोसिया के छप्पर पर चल गइल। एगो कोहड़ा जाके फर गइल। त ऊ कोहड़वा हमार ह महराज कि परोसिया के ?
पंच-त ई बात पहिले नू हमरा के कहेला (दर्शक का ओर देखत) एह गरीब का कहीं से कोहड़ा के थाला मिलल अपना अंगना में ले आके रोपलस । सेवा-सजम कइलस । लत्तर पसरत पसरत परोसिया के छप्पर पर जाके कोहड़ा फर गइल । त का छप्पर के बदौलत एकर कोहड़ा तूर लीहन ? जेकर थान तेकर कोहड़ा। बबुआ गवरघिचोर, तू चल जो गलीजवा में।
गबरघिचोर - ए बाबा, हम कुछ कहब।
पंच-ले जो गलीज, बेटा ले जो रे।
(तोनो में हल्ला-गुल्ला होता- 'बेटा हमार बा', 'बेटा हमार बा') गलीज बहू – (पंच से) ए बाबूजी, हमरा बबुआ के बाँह उखाड़ल लोग हो दादा !
पंच-चुप रह । केकर मजाल वा कि तोरा बबुआ के बाँह उखाड़ी लोग रे? मारब मृका जे पाताल में धँस जाई लोग।
गलीज बहू-बढ़नी मारो तोरा पंचाइत कइला के। पंच-तें अनेरे नृ हमरा पर लाल-पियर हो तारिस.....
गलीज बहू -लाल-पियर होखों ना ? कूदि के रावाँ हिनका के देतानों, कृदि के हुनका के तानों हमार बबुआ आ हमरा से कुछ पूछते नइखीं।
पंच-नाक चुअवलू त मारब मूका जे...। तवे से नाक चुअवले बाड़ी कि पूछते नइखीं, पूछते नइखीं तू केकरा से पूछके ई सब कइले बाडू ? हेने आवs हेने आवऽ तोरी से पूछब, हेने आवऽ ई बतावs कि हुई गड़बड़िया तोरा साथ झूठो के लंद फेंद बन्हले बा कि तीरा गड़बड़िया साधे कुछ बाटे ?
- जब रावाँ पूछत वानी त हम कहत बानी हइहे गड़बड़ी गलीज बहू
बाइन, ए बाबूजी! सौंझया-बिहनिया रोज आवस, ए बाबूजी! पंच- दुपहरियो में आवत होई। कतनो गोड़ जरत होई बाकी मानत ना होई ।
गलीज बहू - कवो दुआरी पर बइठस ए बाबूजी, कवो केवारी के पाला
धके खड़ा होखस आ कइसन दोनी मुँह कइले राखस रोज दिन के ईहे दासा हम देखों त एक दिन हम अपना मन में विचार कइलीं आ सोचलों कि हमरा पाले चीज बा त हमरा छिपावल पार ना लागल, ए बाबूजी।
पंच- तोरा पाले कवनी साबूत बा ?
गलीज बहू - बइठों, साबूत हम देत हई-
घर में रहे दूध पाँच सेर, केहू जोरन दिहल एक धार का पंचाइत होखत बा, घीठ साफे भइल हमार ॥
पंच-गलौज बो हम तोरा से ममिला पूछ तानी आ तें लगले झुमर गावे ? गलीज बहू- हम झूमर ना गवलीं हा, ए बाबूजी हम आपन ममिला कहली हा रावाँ नइखे समुझ में आवत त हेने दू डेंग बढ़ि आई, हम समुझा दे तानीं।
पंच-कह-कह, ममिला में ना लजाये के ( दर्शक का ओर देखत) गलिजवा बो लाद के साफा आदमी ह
गलीज बहू - ए बाबूजी! पाँच सेर दुधवा अपना देहिया के मोकर्रर कर5 तानी बाकिर जोरनवों के कहे में लाज लागऽता।
पंच- कहऽ, कह, ममिला में ना लजाये के कह5 अबगे त ममिला मोहड़ा पर आइल बा ।
गलीज बहू - ( गड़बड़ी का ओर इसारा करत) जोरनवाँ हिनके नू पसेनवा ह, बाबूजी!
पंच-ई बात तोरा पहिले नू हमरा से कहेला मनलीं कि केहू के घर में दू सेर चार सेर दूध धइल बा ओकरा के अँवटलस, पकवलस, टोला-महल्ला से तनीएसा जोरन ले आके ओकरा में लगा देलस त का जोरन के बदौलत ओकर
सँउसे करने उठवले चल जइहें जेकर दूध तेकर घीव । गलीज बहू- जेकर दूध तेकर घीव काहे ना ए बाबूजी हतने भर जोरनवाँ खातिर हमरा बबुआ पर दावा कइले बाड़न ।
पंच- अरे बबुआ, तू चल जो अपना मतरिया में। गबरघिचोर - बाबा! हमहूँ कुछ कहब ।
पंच- कहब का ? कहे के बा से कह ल बाकी जाये के बा मतरिये में। गबरघिचोर साँच बात कहली मइया से हमरे मनमान
झूठो झंझट लागल बा सुनहु पंच सज्ञान ॥ पंच-ले जो गलीज बो ! बेटा ले जो रे ! (तीनों में फेर झगरा सुरु हो जाता। पंच के बेइमान बनावत बा लोग। )
गलीज - (उटि के पंच के धसोरत) चलल हा पंचाइत करे कि हमनी में खून करावे ?
पंच- -हम का करों ? जेकर हक बा. सुपत होता. तेकरा के हम दे तानों गड़बड़ी- ए बाबा, एने आई सुनीं।
पंच-कहे के बा से कह उठ बइठ के ममिला ना होखे। जे देखी से कही कि बाबा बेइमान हवन ।
गड़बड़ी-हेने आई, बेइमान केहू ना कही।
पंच का कहवा से कहऽ ।
गड़बड़ी- हम रावाँ से कहतानी कि छँवड़ा के हमरा में रखवा देतों त रावों के हम दू सौ रोपया देतीं।
पंच- कहऽ हो गड़बड़ी, आज ले बाबा का रोपेया के लोभ ना भइल त आज तोहरा दू गो रुपली से बाबा के दिन जाये के बा ?
पंच- दू सौ कह, चार सौ कह5 ए रोपेया का ओर ताके वाला बाबा के जीव हवन ?
गड़बड़ी- दू गो ना कहली हैं, दू सौ देव
पंच- हमरा दुइये गो बुझाइल ह, ए बबुआ दू सइ कहल ह ? गड़बड़ी हैं, ए बाबा । --
पंच – जो होने बइठ । ममिला में ना घबड़ाये के ह। गलीज सलौज बेटा ले जइहन तनी मनी सर्वांगन के खवर दे दीं त इनकर चाम खींच लीहन स
गलीज- ए बाबा, तनी हेने आईं।
पंच-कहे के वा से ओनहीं से कह5, ए बबुआ।
गलीजना, तनो टू डेग बढ़ आई, ए बाबा! रउरा से तनी एगो भितरिया बात कह के वा
पंच- कहे के वा से कह5, ए बबुआ जानते बाड़ कि हम कतना भक्त आदमी ठहरलीं। बिना भोजन भइले स्नान ना होखे।
गलीज - वड़ा के कह सुनके हमरा में रखवा देतीं ते रावाँ के हम पाँच सौ रोपया देतीं। पंच- तोहरा अइसन लोभी आदमी से हमरा दुख हो जाला पाँच गो
रुपली से बाबा के दिन जाए के बा? गलीज - पाँच गां ना कहली हैं, ए बाबा ।
पंच- पाँच गो ना तूं पाँच सइ कहऽ, पाँच हजार कह5, पाँच लाख कहऽ, रोपेया का और ताके वाला बाबा ना हवन गलीज - पाँच सौ नू कहतानीं ।
पंच-पाँच सइ ? हमरा बुझाइल है कि पाँच गो कहल है। सुन बबुआ ! रोपेया पइसा कवनो चीज ना ह ई त हाथ के मडल है। आज बाटे बिहने नइखे। बाकी तोहरा घर से आ हमरा घर से तोहरा दाद का वेरा से निअराह चल आवत वा, ए बबुआ ई निवाहे के या पाँच सह नू कहल देव के ?
गड़बड़ी हैं, ए बाबा !
पंच- जो वइट ग गड़बड़ो कादो बेटा ले जइहन! ममिला में ना हड़बड़ाये के (गलीज बो से) गलोज बो रे ?
गलीजबहू का ए बाबूजी ?
पंच-तोर ममिला फेर से देखाई।
गलीज बहू - पहिले का देखाइल है, ए बाबूजी ?
(गाना-पद)
ओदर से हउअन बेटा हमार ओदर से साँच बात में आँख लागत वा पूछीं बोला के नाऊ चमार ओदर से...... पुत्र भइल जीभ स्वाद गइल सभ. तनिको ना खड़ली बेकार ओदर से.. अभ आगा पर दागा होखत बा, घेरलस बटमार । ओदर से.... कहत भिखारी तइयारी भइल पिअला से दूध के धार ओदर से... ठग जब,
(चौपाई)
चारो तरफ से उठल हावा एह में नइखे केहू के दावा ॥ बबुआ हउवन बेटा हमार पूछों बोला के नाउ-चमार ॥ नव महीना पेट के भीतर रहसु त पूजलों देवता-पीतर ॥ जनम के समय में दुख भइल । इहे बुझाय जे अब जीवन गइल ॥ होखत रहे राम से बात। असहीं बोला जीवन के घात ॥ लालच में ना लउके जान बेटा दिया द हे भगवान ॥ बबुआ भइल आसरा लागल अब घेरले बा दू गो पागल ॥ दूनों ओर से जोर बा भारी राम राम कहि रहे भिखारी ॥ अब अबला कछुओ ना जानी। पंच गोसइयाँ राखऽ पानी ॥ झगड़ा के ना जानो भेद होखत बा करेज में छेद ॥ रो रो कहे भिखारी नाई बेटा दिया द काली माई ॥
कुतुबपुर में बाटे घर । जर ॥ बा आस ॥ हमहीं हई बेटा के जिला छपरा हउए खास बबुआ में लागल
(बेटा से विलाप गान)
सिवसती गनपति, हरहु बेकार मति चरन के चेरी के इयाद राखड़ हो बबुआ ! पेटवा भीतर माही, राम कुछ रहे नाहीं तवहीं से आसरा लगवली हो बबुआ ! वनि के तोहार कुली, लालच में गइलीं भूलि नव मास ढोअलों, मोटरिया हो बबुआ ! दिन-रात हूल आवे, घर ना आँगन भावे, चलत में गोड़ भहरात रहे हो बबुआ ! जब होखे लागल पोरा, दुखवा समुझs हीरा ! सुन दुलरू! कहीले से, चार दिन पहिले से, सउरी में दाँत लागि जात रहे हो बबुआ ! केहू कहे हठवे दूत, केहू कहे हवे पूत केहू कहे भीतरे मुअल बा हो बबुआ ! केहू कहे मरि जाई, चुरइल धइले बा माई साँड़ासा सँघरनी के खइलसि हो बबुआ घरी रहे. ईहे सभ केहू कहे, हाथ लाके कढ़लसि हो बबुआ नया भइल जनम मोर, असहीं ह पैदा तोर, तेलवा लगाइ के अबटलीं हो बबुआ ! सुधि कर5 भइला के गृह मूत कइला के माई मत जान हमें दाई जानऽ हो बबुआ ! भिखारी नाई, करों उपाई मुँहवा के तोहरे दुलरवा हो बबुआ । कुतुबपुर हउवे ग्राम, रामजी सँवार5 काम जाति के हजाम जिला छपरा हो बबुआ । पंच-रे बबुआ तें मतरिया का रोअला से मतरिये में रहने ? गवरधिचोर-रावा जंकरे में कहव तेकरे में रहब । अब तब चमइन कहल कवन
पंच- वाह, वाह, रहे के वा तोहरा बाबा काहे आपन ईमान खराब क
इस बाबा कहिहन कि तू इनरा में कूद जा, त कूद जइबs ?
गबरघिचोर कूद जाइब
पंच- बाबा कहिहन कि तू आपन जान दे द त तू दे देवs ?
गबरघिचोर दे देव
- गबरघिचोर हैं बाबा! कबूल बा।
- पंच- - जल्लाद के बोलाव रे !
पंच- हम कहब कि तोहरा में तीनों के हक बराबर वा तोहरा देह नापि के काटि के तीन गो टुकड़ा कइल जाइ। तीनों में गोटी परी, तोरा कबूल वा ?
पंच-कबूल बा नू ?
गबरघिचोर-कबूल बा ।
समाजी- देहु खबर जल्लाद के जाई सुनत बात आवत हरखाई ॥ कर हथियार धार बनवाई। सभा मध्य में पहुँचे आई ॥
पंच-बबुआ सूत रह5
गबरघिचोर - हम कुछ कहब ।
पंच- (गबरघिचोर से) अच्छा कहऽ । ( जल्लाद फरका बइठत बाड़े)
गबरघिचोर - ( रो-रो के)
अइसन लिखलन करम में विधाता । सुंदर नरतन बिमल पाइ के टूटल जगत से नाता ॥ हीत -मित्र केहू काम ना आइल बैरी भइलन पितु माता ॥ सभा-मध्य में बध होखत बानी सुनहु राम सुखदाता॥ बड़ उपहास भइल घिचोर के, एको ना भिखारी से कहाता ॥
समाजी-
(चौपाई)
तीन जना में झगड़ा भइल । गबरघिचोरन के जीवन गइल ॥ जेकर हिस्सा जहाँ से होई काटि के बाँट लेहु सब कोई ॥ करनी के फल परल कपारा तन पर चक्कर चढ़ल हमारा ॥ बड़का दुख परल जगबन्दन। भइल अकाल मृत्यु रघुनन्दन ॥ जरिये चलली मइया कुचाली छुड़ी का हाथे भइलि हलाली ॥ रामचन्द्र अवधेस कुमारा। बहे चाहत बा खून के धारा ॥ लखन, भरत, सतरूधन भइया भँवरा से पार करहु मोर नइया ॥. धनुस बान धरि चारो भाई एह अवसर पर होख5 सहाई॥ ना कइलीं तीरथ व्रत-दान। बालकपन भगवान ॥ माई बाप के सेवा नाहीं नाहक नर भइलीं जग माहीं ॥ सिर पर पहुँचल तुरते काल। देरी भइल दसरथ के लाल ॥ बइल सिकाइत जग में भारी दूगो बाप एक महतारी ॥ एह जीवन ले मूअल बेस सुभ गति दे द सिरी अवधेस ॥
जयति जयति जय कोसल-किसोरा नइखे आवत करे निहोरा ॥ तोर मोर अग्याना । पराना पेयाना ॥ कुतुबपुर के कहे भिखारी । जइसन मरजी होय तहारी ॥
(गाना)
धन-धन मालिक माया तेरा, लोक बेद सब गाता है। तीन लोक के बीच में एगो लिखनेवाला विधाता है। ऊँच-नीच करनी जैसा करता, वैसा फल पाता है। माई भाई- बाबू कवीला झूठा जगत के नाता है। गबरघिचोर आज जगत से जमपुर को चल जाता है। सभा-मध्य जल्लाद का हाथ छुड़ी गला से खाता है। सूर्य उदय जब तक जीवन अब तुरत रात चलि आता है अंधकार का डर से मनुआ रोकर के पछताता है कुतुबपुर के नाई भिखारी तीनों झगड़ा गाता है। महादेव के पारवती के चरन में सोस नवाता है पंच-बस बस बस सूतऽ हेने
(घिचोर सूत जात बाड़न पंच देह नापके चीह्न लगावत तारन जल्लाद के काटे के हुकुम दिआता।)
गड़बड़ी - देखिes बाबा, ठीक से नपिहs, एने-ओने ना होखे पावे।
गलीज हैं, बाबा, ठीक से नापव।
पंच-रे बउराह सभ, जहाँ बबे बाड़न तहाँ एने ओने होई ( जल्लाद से) रे एक छंवा एहिजा से काट, एक छेवा एहिजा से काट -
जल्लाद- जैगो टुकड़ा कर ब हम । फी चवन्नी से लेहब ना कम ॥
पंच- कटइया त तोर मोनासिब बा। द हो गड़बड़ी, चार आना पडसाद |
गड़बड़ी - लीं बाबा। पंच-गलीज, चार आना पइसा द
गलीज -ली सरकार।
पंत्र - गलीज बो रे !
गलीज बहू का ए बाबूजी ?
पंच- चार आना पइसा दे तेहूँ ।
गलीज बहू चार आना पइसा का होई ए बाबूजी ?
पंच- तोरा छँवड़ा के कटाई देबे के बा। गलीज बहू - ए बाबूजी जिअते दूनो जना में केहू के दे दीं, बाकी हमरा
-लइका के मत कटवाई।
पंच-जिअते इनका के आउनुको के दे दो आ तें हिस्सा ना लेबे ?
पंच- देख तौरा बुझात नइखे, हम पुरान हो के तोरा के समुझा दे तानीं । तोर जनमल ह तोरो एक टुकड़ा हिस्सा मिल जाई त तोर मन के अरमान रह जाई।
गड़बड़ी - ए महाराज! दुइये टुकड़ा करवाई, ई झगरा छूटे ना दीही।
गलीज - ए महराज ! दुइये टुकड़ा करवाई।
जल्लाद -ए महराज ! दुइये टुकड़ा करवाई।
जल्लाद - काहीं ?
पंच- (हाथ से रोकत) रह हड़ गड़बड़ी कहत बाड़न-दू टुकड़ा हो जाय, हऊ गलीज कहऽताड़न-दू टुकड़ा हो जाव। जेकरा अपना बेटा के दाह नइखे तेकर बेटा कइसन ? बेटा के दाह वा मतरिया के उठाव बेटा ले जो गलीज बो ! (गलीज बो बेटो ले जा तारी)
समाजी- ज्यों बेटा माता के संग जाये। त्यों गलीज गड़बड़ी लजाये ॥
पंच-गाना उहे ह जेह से मालिक के नाम होय। नकल तमासा उहे चीज जेह में धर्म के चर्चा होय। गबरघिचोर नाटक में धर्म इहे समुझे के चाहीं जे गबरघिचोर के मतारी कइसन दुख कहि के रोवल बाड़ी गाना में चौपाई में आ पूर्वी में जइसन लड़िका होखे में मतारी के दुख होला, जवना दुख में मतारी लोग के प्रान छूटि जाला से सब बरनन करत बाड़ी ई बाड़े त दुनिया से आपन प्रान दे देबे के तइयार बाड़न ईश्वर से विनय करत बाड़न जे हम मतारी बाप के कुछ सेवा ना कइलीं। एह बात के बेटा का मोह बा। आजकल के जे बेटा असल बा से कह देता जे पंच के बात ना मानब खास करके उनुकरा अपने जान के फिकिर बा। माता-पिता के सेवा के फिकिर तनिको नइखे। सभा के अन्दर गबरघिचोर कइसन चौपाई कहत बाड़न- -
मातु पिता के सेवा नाहीं । नाहक नर भइलीं जग माहीं ॥