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गबरघिचोर

8 November 2023

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गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक

गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक

घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा

पंच : गाँव के मानिन्द आदमी 

गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक आदि

- समाजी (चौपाई )

सिरी गनेस पद सीस नवाऊँ। गबरघिचोरन के गुन गाऊँ ॥ बहरा से गलीज घर अइलन मुदित भइल ना दाम कमइलन ॥ मेहर के ना भइलन साथी झूमे जस मतवाला हाथो ॥ एही से दुआर पर आई। निरखन लगे लोग बहुताई ॥ घरनी सुनली अइलन पीया रहि रहि के हुलसत बा जीया ॥ ले थारी जल पाँव पखारे आजु जनम भये सुफल हमारे ॥

गलीज बहू - (गलीज से )

(कवित्त)

कमल उछाह जइसे सूरज प्रकास होत कुमुद उछाह जइसे चन्द्रमा परस ते। भौरन उछाह जइसे आगमन वसंत जानि मोरन उछाह जइसे बरखा बरस ते। हंसन उछाह जइसे मानसरोवर बीच, साधन उछाह इच्छा आवत अरस ते। सबको उछाह एही भाँति उर होत अहै, हमसे उछाह स्वामी तोहरे दरस ते।

गलीज - ई झंझट कइला के कुछ काम नइखे जल्दी बतावs लइका कहाँ था।

गलीज बहू – (पति से)

(गाना-पूर्वी)

सिवा-सती जी क पूत, देवन में मजगूत, गिरत बानी तोहरे चरन में हो स्वामी जी !

गवना कराके गइल घर के ना सुधि कइलs मरडतानी तोहरा वियोग में हो स्वामी जी ! हाथ-बाँहि धइला के, सादी- गवना कइला के आजु ले ना कइलs निगहवा हो स्वामी जी ! बबुआ भइलन पैदा कुछ ना मिलल फैदा सब विधि कइलs बेकँदा हो स्वामी जी! आस मत नास कर5, बेटा के रहे द घर5 पगली के प्रान के आधार मोर हो स्वामी जी! पोसत बानी बचेपन से, बबुआ के तन-मन से कसहूँ उपास आध पेट खा के हो स्वामी जी! भिखारी नाई, देहु खीस बिसराई, उजरल घर के बसा द मोर हो स्वामी जी! (अपना बेटा से) ए बबुआ ! गोड़ पर गिर5, इहे तोहार बाबू हवन ।

- समाजी (चौपाई )

गिरत पुत्र पिता पग जाई। धरि के बाँह गोद बइठाई ॥

गलीज- चलs परदेस काहे तू सहवs घरे कलेस ? बेटा हमार -

गबरघिचोर - माई के संग में लेके चलs राखऽ अपने पास। छोड़ि के गइला से करिहन सब नर नारी उपहास ॥

गलीज- एह पागल के छोड़ दो बेटा, चलो हमारे साथ। फिर ना ऐसा मोका कबहूँ, लगेगा तेरे हाथ ॥

गलीज बहू-बबुआ के हम सोझा राखब, देख के करब सबूर। सब विधि से मत कर स्वामी, हमरा कर्म के चकनाचूर ।

गलीज - (बेटा के जबरदस्ती बाँहि घर के झटकार के) चलs बेटा,

तू

चलऽ ।

समाजी (चौपाई )

तेहि अवसर गड़बड़ी तहँ आये। पुत्र मोर कहि रोब जमाये ॥ तीनों में झगड़ा भये भारी देखन लगे सकल नर-नारी ॥ पंचित करन लगे सब लोगू गबरघिचोरन केहि के जोगू ॥ (पंच आवऽतारन)

पंच-तीन आदमी में झगरा लागल बा, झगरा छूटत नइखे, जवना पंचाइत

में हम बोलावल गइल बानी (गलीज का ओर देखावत) हइहे गलीज

-

बाड़न, गलीज! 

गलीज - हैं बाबा !

पंच-इंहे गलोज हवन वियाह कके घर में जनाना बड़ठा देलन अपने चल गइलन बहरा कमाये। बाहर से ना कवहीं खत भेजलन, ना खबर भेजलन, ना पाँच रोपेया मनिआडर भेजलन एहिजा इसवरी माया गलीज बो हेने आउ ईहे 1 गलीज बो ह। एकरा लड़का पैदा लेले बाड़न बबुआ गबरघिचोर हेने आवऽ । गाँव नगर से बाहर में जाके केहू कहल हा कि गलीज तोहरा बेटा भइल बा । गलीज बहरा से आइल बाड़न, कहत बाड़न कि छँवड़ा के हम अपना जवरे बहरा लिया जाइब गलीज वो कहऽतिया कि कहऽ हम असरा लगा के जनमवलों, पोसलों- पलली, छँवड़ा के काहे लिया जडवs ? हमरो के लिया चलऽ । एही बात के दूनों बेकत में झगरा वा एही बीच में हुई गड़बड़ी कहत बाड्न कि हमार बेटा है। गड़बड़ी तू ई बतावs कि घिचोरवा में के हो के दावा कइले बाड़s ?

गड़बड़ी - घिचोरवा हमार बेटा नू ह, महाराज!

गड़बड़ी - ना।

पंच- माड़ी गाड़ि के ? बाजा बजा के ? नेवता नेवति के ?

गड़बड़ी ना महाराज !

पंच- तब तोर बेटा कइसे भइल रे बउराह लेके ?

गड़बड़ी - ए बाबा, हम जवन रउरा से कहत बानीं से सुनीं। हम रास्ता धइले जात रहाँ, ओने से लरिकवा के मतरिया चलल आवत रहे। हमरा से कुछ गलती हो गइल।

पंच-अइसे खाली 'गलती बा' ना वोले के राह में गलती हो जाई तेसे

का बेटी हो जाई ? कवनो सबूत बा ?

गड़बड़ी हैं, बइठल जाव, हम सबूत देत बानी !

राह में पवलों खाली जाली खोजत अइलन एगो कुचाली ॥

रोपेया धडलों लेलों निकाल ले जास आपन खलिहा जाली ॥ पंच-गड़बड़ी, हम तोहरा से ममिला पूछतानी, तू लगल गीत गावे ? गड़बड़ी- -हम गीत नइखीं गावत, आपन ममिले कहलों हाँ रावाँ से।

पंच बाकिर हमरा ना बुझाइल हा, ए बबुआ ।

गड़बड़ी-हेने आईं, दू डंग बढ़ आई, हम राव के समुझा दे तानों हम रास्ता धइले चल जात रहीं रास्ता में हमरा जाली मिलल अथवा डोंड़ा मिलल अथवा मनोवेग मिलल ओहमें हम आपन रोपये पइसा धइलीं। कुछ दिन बाद में जाली आ मनीबंग वाला आपन चीन्ह गइल त आपन मनीबेग ले जाई कि हमरा रोपेया- देबुआ सहते लेले चल जाई ? 

पंच-तई बात तोहरा पहिले नृ हमरा से कहल चाहत रहल हा (दर्शक का और देखत) एह गरीब के राह में जाली मिलल अथवा डोंड़ा मिलल अथवा मनोवेग मिलल आहमें ई आपन रोपेया पइसा धइलस कुछ दिन का बाद में मनोवेग वाला आपन मनोवेग चीन्ह गइल त खाली आपन ऊ मनोवेग ले जइहन कि रोपेया डेबुआ सहीते लेले चल जइहन ? बबुआ गवरविचार, तू चल जो गड़बड़ी में ।

गबरघिचोर- ए बाबा, हम कुछ कहब ।

पंच- - का कहवा ? कहे के बा से कहऽ बाकी जाये के होई गड़बड़िये में।

पंच- बेटा ले जो गड़बड़ी।

गलीज - हमार बेटा है, गड़बड़ो कइसे लेके चल जइहन ?

पंच- जननवाँ नू तोर ह बउराह लेके । गलीज-ए, छँवड़ा ह हमरा लेके ।

पंच-मउगी के नू बाजा बजा के ले आइल बाड़ऽ । छँवड़ा के बाजा बजा के नइखऽ नू जनमवले ? ई बतावs कि कतना दिन में छँवड़ा भइल आ कतना दिन पर तू बहरा से आइल बाड़s ?

गलीज- पन्दरह बरिस भइल परदेस, ओहिजे लागल उमिर के सेस । बेटा ले के बहरा जाइब फिर ना घर में लात लगाइब।

तेरह बरिस के बवुआ भइलन । बेटा के खोजत बाबू अइलन ॥ लागत नइखे तनिको लाज । हँसत बाटे सकल गलीज बहू- समाज ॥

गलीज- हट, लाजवाली!

पंच- अइसन बेलज आदमी दुनिया में हम ना देखलीं। लजाये के जगहा कहीं ना मिले त जाके समैना का चोप में मुँह लगा द

गलीज- ए बाबा, रउरा बइठीं, हम सबूत दे तानी- गाछ लगवलीं कोहड़ा के लतर गइल पछुआर । फरल परोसिया के छप्पर पर से ह माल हमार ॥

पंच-गलीज हम तोहरा से ममिला पूछ तानी, तू लगलऽ ध्रुपद गावे ? गलीज हम आपन ममिलवे कहलीं ह ए बाबा ! 

पंच-सही में लपेट लपेट कहल5 हा बाकी हमरा ना बुझाइल हा ए बबुआ !

गलीज- ए बाबा ने आई. हम रावा के समुझा दे तानी हमरा कहूँ कोहड़ा के एगो थाला मिल गइल। ओकरा के हम ले अइलीं। अपना अंगना में रोप देलीं। ओकर सेवा सजम कइलीं ओकर लत्तर बढ़त बढ़त हमरा छप्पर से परोसिया के छप्पर पर चल गइल। एगो कोहड़ा जाके फर गइल। त ऊ कोहड़वा हमार ह महराज कि परोसिया के ?

पंच-त ई बात पहिले नू हमरा के कहेला (दर्शक का ओर देखत) एह गरीब का कहीं से कोहड़ा के थाला मिलल अपना अंगना में ले आके रोपलस । सेवा-सजम कइलस । लत्तर पसरत पसरत परोसिया के छप्पर पर जाके कोहड़ा फर गइल । त का छप्पर के बदौलत एकर कोहड़ा तूर लीहन ? जेकर थान तेकर कोहड़ा। बबुआ गवरघिचोर, तू चल जो गलीजवा में।

गबरघिचोर - ए बाबा, हम कुछ कहब।

पंच-ले जो गलीज, बेटा ले जो रे।

(तोनो में हल्ला-गुल्ला होता- 'बेटा हमार बा', 'बेटा हमार बा') गलीज बहू – (पंच से) ए बाबूजी, हमरा बबुआ के बाँह उखाड़ल लोग हो दादा !

पंच-चुप रह । केकर मजाल वा कि तोरा बबुआ के बाँह उखाड़ी लोग रे? मारब मृका जे पाताल में धँस जाई लोग।

गलीज बहू-बढ़नी मारो तोरा पंचाइत कइला के। पंच-तें अनेरे नृ हमरा पर लाल-पियर हो तारिस.....

गलीज बहू -लाल-पियर होखों ना ? कूदि के रावाँ हिनका के देतानों, कृदि के हुनका के तानों हमार बबुआ आ हमरा से कुछ पूछते नइखीं।

पंच-नाक चुअवलू त मारब मूका जे...। तवे से नाक चुअवले बाड़ी कि पूछते नइखीं, पूछते नइखीं तू केकरा से पूछके ई सब कइले बाडू ? हेने आवs हेने आवऽ तोरी से पूछब, हेने आवऽ ई बतावs कि हुई गड़बड़िया तोरा साथ झूठो के लंद फेंद बन्हले बा कि तीरा गड़बड़िया साधे कुछ बाटे ?

- जब रावाँ पूछत वानी त हम कहत बानी हइहे गड़बड़ी गलीज बहू

बाइन, ए बाबूजी! सौंझया-बिहनिया रोज आवस, ए बाबूजी! पंच- दुपहरियो में आवत होई। कतनो गोड़ जरत होई बाकी मानत ना होई । 

गलीज बहू - कवो दुआरी पर बइठस ए बाबूजी, कवो केवारी के पाला

धके खड़ा होखस आ कइसन दोनी मुँह कइले राखस रोज दिन के ईहे दासा हम देखों त एक दिन हम अपना मन में विचार कइलीं आ सोचलों कि हमरा पाले चीज बा त हमरा छिपावल पार ना लागल, ए बाबूजी।

पंच- तोरा पाले कवनी साबूत बा ?

गलीज बहू - बइठों, साबूत हम देत हई-

घर में रहे दूध पाँच सेर, केहू जोरन दिहल एक धार का पंचाइत होखत बा, घीठ साफे भइल हमार ॥

पंच-गलौज बो हम तोरा से ममिला पूछ तानी आ तें लगले झुमर गावे ? गलीज बहू- हम झूमर ना गवलीं हा, ए बाबूजी हम आपन ममिला कहली हा रावाँ नइखे समुझ में आवत त हेने दू डेंग बढ़ि आई, हम समुझा दे तानीं।

पंच-कह-कह, ममिला में ना लजाये के ( दर्शक का ओर देखत) गलिजवा बो लाद के साफा आदमी ह

गलीज बहू - ए बाबूजी! पाँच सेर दुधवा अपना देहिया के मोकर्रर कर5 तानी बाकिर जोरनवों के कहे में लाज लागऽता।

पंच- कहऽ, कह, ममिला में ना लजाये के कह5 अबगे त ममिला मोहड़ा पर आइल बा ।

गलीज बहू - ( गड़बड़ी का ओर इसारा करत) जोरनवाँ हिनके नू पसेनवा ह, बाबूजी!

पंच-ई बात तोरा पहिले नू हमरा से कहेला मनलीं कि केहू के घर में दू सेर चार सेर दूध धइल बा ओकरा के अँवटलस, पकवलस, टोला-महल्ला से तनीएसा जोरन ले आके ओकरा में लगा देलस त का जोरन के बदौलत ओकर

सँउसे करने उठवले चल जइहें जेकर दूध तेकर घीव । गलीज बहू- जेकर दूध तेकर घीव काहे ना ए बाबूजी हतने भर जोरनवाँ खातिर हमरा बबुआ पर दावा कइले बाड़न ।

पंच- अरे बबुआ, तू चल जो अपना मतरिया में। गबरघिचोर - बाबा! हमहूँ कुछ कहब ।

पंच- कहब का ? कहे के बा से कह ल बाकी जाये के बा मतरिये में। गबरघिचोर साँच बात कहली मइया से हमरे मनमान

झूठो झंझट लागल बा सुनहु पंच सज्ञान ॥ पंच-ले जो गलीज बो ! बेटा ले जो रे ! (तीनों में फेर झगरा सुरु हो जाता। पंच के बेइमान बनावत बा लोग। ) 

गलीज - (उटि के पंच के धसोरत) चलल हा पंचाइत करे कि हमनी में खून करावे ?

पंच- -हम का करों ? जेकर हक बा. सुपत होता. तेकरा के हम दे तानों गड़बड़ी- ए बाबा, एने आई सुनीं।

पंच-कहे के बा से कह उठ बइठ के ममिला ना होखे। जे देखी से कही कि बाबा बेइमान हवन ।

गड़बड़ी-हेने आई, बेइमान केहू ना कही।

पंच का कहवा से कहऽ ।

गड़बड़ी- हम रावाँ से कहतानी कि छँवड़ा के हमरा में रखवा देतों त रावों के हम दू सौ रोपया देतीं।

पंच- कहऽ हो गड़बड़ी, आज ले बाबा का रोपेया के लोभ ना भइल त आज तोहरा दू गो रुपली से बाबा के दिन जाये के बा ?

पंच- दू सौ कह, चार सौ कह5 ए रोपेया का ओर ताके वाला बाबा के जीव हवन ?

गड़बड़ी- दू गो ना कहली हैं, दू सौ देव

पंच- हमरा दुइये गो बुझाइल ह, ए बबुआ दू सइ कहल ह ? गड़बड़ी हैं, ए बाबा । --

पंच – जो होने बइठ । ममिला में ना घबड़ाये के ह। गलीज सलौज बेटा ले जइहन तनी मनी सर्वांगन के खवर दे दीं त इनकर चाम खींच लीहन स

गलीज- ए बाबा, तनी हेने आईं।

पंच-कहे के वा से ओनहीं से कह5, ए बबुआ।

गलीजना, तनो टू डेग बढ़ आई, ए बाबा! रउरा से तनी एगो भितरिया बात कह के वा

पंच- कहे के वा से कह5, ए बबुआ जानते बाड़ कि हम कतना भक्त आदमी ठहरलीं। बिना भोजन भइले स्नान ना होखे।

गलीज - वड़ा के कह सुनके हमरा में रखवा देतीं ते रावाँ के हम पाँच सौ रोपया देतीं। पंच- तोहरा अइसन लोभी आदमी से हमरा दुख हो जाला पाँच गो

रुपली से बाबा के दिन जाए के बा? गलीज - पाँच गां ना कहली हैं, ए बाबा ।

पंच- पाँच गो ना तूं पाँच सइ कहऽ, पाँच हजार कह5, पाँच लाख कहऽ, रोपेया का और ताके वाला बाबा ना हवन गलीज - पाँच सौ नू कहतानीं । 

पंच-पाँच सइ ? हमरा बुझाइल है कि पाँच गो कहल है। सुन बबुआ ! रोपेया पइसा कवनो चीज ना ह ई त हाथ के मडल है। आज बाटे बिहने नइखे। बाकी तोहरा घर से आ हमरा घर से तोहरा दाद का वेरा से निअराह चल आवत वा, ए बबुआ ई निवाहे के या पाँच सह नू कहल देव के ?

गड़बड़ी हैं, ए बाबा !

पंच- जो वइट ग गड़बड़ो कादो बेटा ले जइहन! ममिला में ना हड़बड़ाये के (गलीज बो से) गलोज बो रे ?

गलीजबहू का ए बाबूजी ?

पंच-तोर ममिला फेर से देखाई।

गलीज बहू - पहिले का देखाइल है, ए बाबूजी ?

(गाना-पद)

ओदर से हउअन बेटा हमार ओदर से साँच बात में आँख लागत वा पूछीं बोला के नाऊ चमार ओदर से...... पुत्र भइल जीभ स्वाद गइल सभ. तनिको ना खड़ली बेकार ओदर से.. अभ आगा पर दागा होखत बा, घेरलस बटमार । ओदर से.... कहत भिखारी तइयारी भइल पिअला से दूध के धार ओदर से... ठग जब,

(चौपाई)

चारो तरफ से उठल हावा एह में नइखे केहू के दावा ॥ बबुआ हउवन बेटा हमार पूछों बोला के नाउ-चमार ॥ नव महीना पेट के भीतर रहसु त पूजलों देवता-पीतर ॥ जनम के समय में दुख भइल । इहे बुझाय जे अब जीवन गइल ॥ होखत रहे राम से बात। असहीं बोला जीवन के घात ॥ लालच में ना लउके जान बेटा दिया द हे भगवान ॥ बबुआ भइल आसरा लागल अब घेरले बा दू गो पागल ॥ दूनों ओर से जोर बा भारी राम राम कहि रहे भिखारी ॥ अब अबला कछुओ ना जानी। पंच गोसइयाँ राखऽ पानी ॥ झगड़ा के ना जानो भेद होखत बा करेज में छेद ॥ रो रो कहे भिखारी नाई बेटा दिया द काली माई ॥ 

कुतुबपुर में बाटे घर । जर ॥ बा आस ॥ हमहीं हई बेटा के जिला छपरा हउए खास बबुआ में लागल

(बेटा से विलाप गान)

सिवसती गनपति, हरहु बेकार मति चरन के चेरी के इयाद राखड़ हो बबुआ ! पेटवा भीतर माही, राम कुछ रहे नाहीं तवहीं से आसरा लगवली हो बबुआ ! वनि के तोहार कुली, लालच में गइलीं भूलि नव मास ढोअलों, मोटरिया हो बबुआ ! दिन-रात हूल आवे, घर ना आँगन भावे, चलत में गोड़ भहरात रहे हो बबुआ ! जब होखे लागल पोरा, दुखवा समुझs हीरा ! सुन दुलरू! कहीले से, चार दिन पहिले से, सउरी में दाँत लागि जात रहे हो बबुआ ! केहू कहे हठवे दूत, केहू कहे हवे पूत केहू कहे भीतरे मुअल बा हो बबुआ ! केहू कहे मरि जाई, चुरइल धइले बा माई साँड़ासा सँघरनी के खइलसि हो बबुआ घरी रहे. ईहे सभ केहू कहे, हाथ लाके कढ़लसि हो बबुआ नया भइल जनम मोर, असहीं ह पैदा तोर, तेलवा लगाइ के अबटलीं हो बबुआ ! सुधि कर5 भइला के गृह मूत कइला के माई मत जान हमें दाई जानऽ हो बबुआ ! भिखारी नाई, करों उपाई मुँहवा के तोहरे दुलरवा हो बबुआ । कुतुबपुर हउवे ग्राम, रामजी सँवार5 काम जाति के हजाम जिला छपरा हो बबुआ । पंच-रे बबुआ तें मतरिया का रोअला से मतरिये में रहने ? गवरधिचोर-रावा जंकरे में कहव तेकरे में रहब । अब तब चमइन कहल कवन

पंच- वाह, वाह, रहे के वा तोहरा बाबा काहे आपन ईमान खराब क

इस बाबा कहिहन कि तू इनरा में कूद जा, त कूद जइबs ?

गबरघिचोर कूद जाइब

पंच- बाबा कहिहन कि तू आपन जान दे द त तू दे देवs ? 

गबरघिचोर दे देव

- गबरघिचोर हैं बाबा! कबूल बा।

- पंच- - जल्लाद के बोलाव रे !

पंच- हम कहब कि तोहरा में तीनों के हक बराबर वा तोहरा देह नापि के काटि के तीन गो टुकड़ा कइल जाइ। तीनों में गोटी परी, तोरा कबूल वा ?

पंच-कबूल बा नू ?

गबरघिचोर-कबूल बा ।

समाजी- देहु खबर जल्लाद के जाई सुनत बात आवत हरखाई ॥ कर हथियार धार बनवाई। सभा मध्य में पहुँचे आई ॥

पंच-बबुआ सूत रह5

गबरघिचोर - हम कुछ कहब ।

पंच- (गबरघिचोर से) अच्छा कहऽ । ( जल्लाद फरका बइठत बाड़े)

गबरघिचोर - ( रो-रो के)

अइसन लिखलन करम में विधाता । सुंदर नरतन बिमल पाइ के टूटल जगत से नाता ॥ हीत -मित्र केहू काम ना आइल बैरी भइलन पितु माता ॥ सभा-मध्य में बध होखत बानी सुनहु राम सुखदाता॥ बड़ उपहास भइल घिचोर के, एको ना भिखारी से कहाता ॥

समाजी-

(चौपाई)

तीन जना में झगड़ा भइल । गबरघिचोरन के जीवन गइल ॥ जेकर हिस्सा जहाँ से होई काटि के बाँट लेहु सब कोई ॥ करनी के फल परल कपारा तन पर चक्कर चढ़ल हमारा ॥ बड़का दुख परल जगबन्दन। भइल अकाल मृत्यु रघुनन्दन ॥ जरिये चलली मइया कुचाली छुड़ी का हाथे भइलि हलाली ॥ रामचन्द्र अवधेस कुमारा। बहे चाहत बा खून के धारा ॥ लखन, भरत, सतरूधन भइया भँवरा से पार करहु मोर नइया ॥. धनुस बान धरि चारो भाई एह अवसर पर होख5 सहाई॥ ना कइलीं तीरथ व्रत-दान। बालकपन भगवान ॥ माई बाप के सेवा नाहीं नाहक नर भइलीं जग माहीं ॥ सिर पर पहुँचल तुरते काल। देरी भइल दसरथ के लाल ॥ बइल सिकाइत जग में भारी दूगो बाप एक महतारी ॥ एह जीवन ले मूअल बेस सुभ गति दे द सिरी अवधेस ॥ 

जयति जयति जय कोसल-किसोरा नइखे आवत करे निहोरा ॥ तोर मोर अग्याना । पराना पेयाना ॥ कुतुबपुर के कहे भिखारी । जइसन मरजी होय तहारी ॥

(गाना)

धन-धन मालिक माया तेरा, लोक बेद सब गाता है। तीन लोक के बीच में एगो लिखनेवाला विधाता है। ऊँच-नीच करनी जैसा करता, वैसा फल पाता है। माई भाई- बाबू कवीला झूठा जगत के नाता है। गबरघिचोर आज जगत से जमपुर को चल जाता है। सभा-मध्य जल्लाद का हाथ छुड़ी गला से खाता है। सूर्य उदय जब तक जीवन अब तुरत रात चलि आता है अंधकार का डर से मनुआ रोकर के पछताता है कुतुबपुर के नाई भिखारी तीनों झगड़ा गाता है। महादेव के पारवती के चरन में सोस नवाता है पंच-बस बस बस सूतऽ हेने

(घिचोर सूत जात बाड़न पंच देह नापके चीह्न लगावत तारन जल्लाद के काटे के हुकुम दिआता।)

गड़बड़ी - देखिes बाबा, ठीक से नपिहs, एने-ओने ना होखे पावे।

गलीज हैं, बाबा, ठीक से नापव।

पंच-रे बउराह सभ, जहाँ बबे बाड़न तहाँ एने ओने होई ( जल्लाद से) रे एक छंवा एहिजा से काट, एक छेवा एहिजा से काट -

जल्लाद- जैगो टुकड़ा कर ब हम । फी चवन्नी से लेहब ना कम ॥

पंच- कटइया त तोर मोनासिब बा। द हो गड़बड़ी, चार आना पडसाद |

गड़बड़ी - लीं बाबा। पंच-गलीज, चार आना पइसा द

गलीज -ली सरकार।

पंत्र - गलीज बो रे !

गलीज बहू का ए बाबूजी ?

पंच- चार आना पइसा दे तेहूँ ।

गलीज बहू चार आना पइसा का होई ए बाबूजी ?

पंच- तोरा छँवड़ा के कटाई देबे के बा। गलीज बहू - ए बाबूजी जिअते दूनो जना में केहू के दे दीं, बाकी हमरा 

-लइका के मत कटवाई।

पंच-जिअते इनका के आउनुको के दे दो आ तें हिस्सा ना लेबे ?

पंच- देख तौरा बुझात नइखे, हम पुरान हो के तोरा के समुझा दे तानीं । तोर जनमल ह तोरो एक टुकड़ा हिस्सा मिल जाई त तोर मन के अरमान रह जाई।

गड़बड़ी - ए महाराज! दुइये टुकड़ा करवाई, ई झगरा छूटे ना दीही।

गलीज - ए महराज ! दुइये टुकड़ा करवाई।

जल्लाद -ए महराज ! दुइये टुकड़ा करवाई।

जल्लाद - काहीं ?

पंच- (हाथ से रोकत) रह हड़ गड़बड़ी कहत बाड़न-दू टुकड़ा हो जाय, हऊ गलीज कहऽताड़न-दू टुकड़ा हो जाव। जेकरा अपना बेटा के दाह नइखे तेकर बेटा कइसन ? बेटा के दाह वा मतरिया के उठाव बेटा ले जो गलीज बो ! (गलीज बो बेटो ले जा तारी)

समाजी- ज्यों बेटा माता के संग जाये। त्यों गलीज गड़बड़ी लजाये ॥

पंच-गाना उहे ह जेह से मालिक के नाम होय। नकल तमासा उहे चीज जेह में धर्म के चर्चा होय। गबरघिचोर नाटक में धर्म इहे समुझे के चाहीं जे गबरघिचोर के मतारी कइसन दुख कहि के रोवल बाड़ी गाना में चौपाई में आ पूर्वी में जइसन लड़िका होखे में मतारी के दुख होला, जवना दुख में मतारी लोग के प्रान छूटि जाला से सब बरनन करत बाड़ी ई बाड़े त दुनिया से आपन प्रान दे देबे के तइयार बाड़न ईश्वर से विनय करत बाड़न जे हम मतारी बाप के कुछ सेवा ना कइलीं। एह बात के बेटा का मोह बा। आजकल के जे बेटा असल बा से कह देता जे पंच के बात ना मानब खास करके उनुकरा अपने जान के फिकिर बा। माता-पिता के सेवा के फिकिर तनिको नइखे। सभा के अन्दर गबरघिचोर कइसन चौपाई कहत बाड़न- -

मातु पिता के सेवा नाहीं । नाहक नर भइलीं जग माहीं ॥

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भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
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स्वस्ती श्री

4 November 2023
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भोजपुरी क्षेत्र की यह विशेषता है कि वह क्षेत्रीयता या संकीर्णता के दायरे में बँध कर कभी नहीं देखता, वह मनुष्य, समाज और देश को पहले देखता है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में भोजपुरी भाषी लोगों का अ

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कविता-खण्ड गोरखनाथ

4 November 2023
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अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जप

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भरथरी - बारहमासा

4 November 2023
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चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥ भादो रयनि भयावनि हो, ग

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कबीरदास

4 November 2023
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झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे

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धरमदास

4 November 2023
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सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

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पलटू साहेब

4 November 2023
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कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

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लक्ष्मी सखी

4 November 2023
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चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

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बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
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सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

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हीरा डोम

4 November 2023
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हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

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महेन्दर मिसिर

4 November 2023
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एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

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मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
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दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

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कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

6 November 2023
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भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

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महुआबारी में बहार

6 November 2023
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असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

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राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
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गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

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सपना

6 November 2023
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सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

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इमली के बीया

6 November 2023
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लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

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कोजागरी

6 November 2023
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भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

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पकड़ी के पेड़

7 November 2023
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हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

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मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023
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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

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हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
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अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

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भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
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अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

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आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
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महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

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नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
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जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

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गबरघिचोर

8 November 2023
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गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

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किसान- भगवान

8 November 2023
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बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

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मछरी

9 November 2023
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ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

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भँड़ेहरि

9 November 2023
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रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

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रजाई

9 November 2023
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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

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तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
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दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

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पोसुआ

9 November 2023
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दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

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तिसरका कुल्ला

10 November 2023
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एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

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यैन्कियन के देश से बहुरि के

10 November 2023
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बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

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गहमर : एगो बोधिवृक्ष

10 November 2023
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केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

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त्रेता के नाव

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आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

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डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

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आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

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एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

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