दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दूनों पर करहा चढ़ल रहे। एगो में रस खउलत रहे, दुसरका में सिमसिमात रहे।
रस फफाइल देखि के चनरी पतई झोकल कम क देले रहे। ओकर नौ बरिस के लरिका भिखारिया इनारा का जगत पर बइठि के लवाही चूसत रहे। चनरी के लड़की अपना बाप बटेसरा का पाछा पतई सरकावत रहे। चनरी अपना कराह में खउलत रस के तजविजलस, फेर बोलल, "का हो, बरधमहिया ना मराई ?" बटेसरा टीन आ छनौटा लेके, करहा का किनारा खाड़ हो गइल। चार पाँच हाली छनौटा खउलत रस पर छलकवलस आ रस का किनारा फेंकत मइल महिया मारे लागल।
टीन पर छनौटा ओठंगाई के ऊ ताबरतार खइनी ठोंकलस आ ओठे दाबि के फेरु पतई झोंके लागल। ओकरा कराह के रस अब साँसियात रहे। आजु फजिरही से ऊ मरद मेहरारू ऊखि काटे, छोले, ढोवे आ पेरे में लागल बाड़न स दुपहर में त घुघुरी- 1-रस पर काम चलि गउवे, बाकी गते गते कुल्हुरे लगुए।
- का रे, अभी महिया ना आइल ?' छोटक राय के चिल्हिकल सुनते सवितरी धीरे से हुनकल, 'ए बाबू हमहूँ महिया लेब ! ' -'जो रे भिखरिया। मलिकार के घर ले बल्टी माँग लियाउ ।' चनरी
दुभकुए। बाँचल-खुचल लवाही बीगि के भिखरिया ओसारा का ओरि दउर गउए । - ए माई सुपेली लियाई ? हमहूँ महिया खाइब!' सवितरी माई का पाछा आके हुनुकुए।
-'चुप मटिलगवनी! पिटवइवे ? पहिले मालिक के घरे जाई। जो, तले सवारी में से सुपेली ओकाच लियाउ' जनरी लड़की का चेहरा के उतार-चढ़ाव नापत बोलुए। तबले भिखारिया बटेसरा का पाछा बल्टी ध के बहिन का पाछा सुपेली ओकाचे सवारि का ओर भगुए। "हरे रेसारे तोरी... आके पतई झोंकु, पाग उतर जाई ओनिया का अपना
अठराजी किहाँ जात बाड़े ?' कहि के बटेसरा बल्टी लेके चनरी का कराह में से महिया फरियावे लगुए।
"तनी सवित्तरी के पतइया पर दे दिह । चनरी के गिड़गिड़ाइल बटेसरा जइसे सुनवे ना कइलस मुड़ियो ले घुमा के ना तकलस। 'कइसन कठकरेज हउवऽ हो तू ? लड़की दुपहरे से संगे सती भइल बिया आ तोहरा रचिको मोह माया नइखे ?' बटेसरा छनौटा टीन पर धइलस आ बल्टी लेले मलिकार के घरे चल दिहलस चनरी खोसिन गुड़ेरत रहि गइल भिखरिया चोर आँखी देखत आ सुनत रहे ऊ चूल्हि झॉकल छोड़ि के उठल आ छनौटा से खउलत सीरा उठा के सबितरी का सुपेली में चुवा देहलस।
'भाग मरकिलांना! तोर दुसमन बाप आवते होई!' चनरी पाछा ताकत ओके धिरवलस। भिखरिया फेरू जाके चूल्हि झोंके लागल।
'हरे भिखरिया, सुन हेने!' छोटक राय के आवाज सुनते सुनरी के छाती धड़के लागल, आ सुरसतिया के महिया लागल अँगुरी मुँह ले जाके रूकि गइल । भिखरिया रोऔं गिरवले उठल आ ओसारा का ओर चल दिहलस
' 'अरे बेहूदा, जो तें आपन काम करु. एके हम बोलवली हैं।' ओके डाँटत छोटक राय ओकरा लइका भिखरिया से बोललें घरे जाके चाह बनावे के कहि आउ । बबुआ आइल होइहें त उनहूँ के बोला लिहे, आ सुन, तेहूँ अपना के रोटी ओटी माँगि लिहे, जो ! भिखरिया जब मूड़ी हिला के घर का ओरी चलल त कनखी से ताकत
का रे स्सारे, चुल्हिया से काहे उठले हा रे?' बटेसरा बोलल
चनरी के जीउ में जीउ परल। ऊ सोचे लागल कि हाय रे अभाग, अब रात ले गूर बनी तबले सबितरी सूते लागी कब घरे जाइब आ खाएक पकाइब ? एकर बाप राती खा गोहूँ में पानी बरावे जाई आ हम अन्हारे बगइचा का मड़ई में कई दिन से इहे होत आवत बा।
भिखारिया लवटि आइल रे सवितरी ले रोटी से खो!' सबितरी सुपेली छोड़ के हहास बन्हले दउरल। आउ
"जा हो हमार बाछी, तहरो करमे जरल रहे जे मुसहर का घरे जनमलू।' चनरी बुदबुदाइल
'का रे कुछ कहले हा?' बटेसरा पुछलस।
'कुछु ना! गुर बनावत ढेर रात हो जाई कब घरे जाइब आ कब खयका पकाइब ?'
'तोरी अठराजी मुओ, हऊ देखत नइखी दूनो रोटी खा के पानी पियत बाड़न से हम एहरे खा-पी के टीबुल पर चल जाइब।' 'हैं हैं अउर केहू थोरे बा!' चनरी रोआइन मुँह क लिहलस ।
दू घंटा रात बितला का बाद चनरी लरिकन के लिहले घरे चोहपलि । मड़ई के चाँचर में लटकल ताला में, अँचरा का खूंट में गठियावल चाभी घुसारत खा दिक बरत रहे ताला खोलत भुसुराइल, 'कूल्हि मर बिला गइल बाड़न से देख ना कइसन सत्ता परि गइल ? वाह रे देवरानी ? एकर भतार मलिकार के दुलरुआ ह कुछऊ बोलव त एही बेरा डाँक डाँक चिचियाए सुरु करी।' ऊ अन्हारे टोइ के दिया बरलस आ फुफुती में खोंसल गूर के पिड़िया मेटा में डलला का बाद बसहटा बहरा खींच लियाइल। सुरसतिया निखहरे दहि गइल त उ भिखरिया के धसोरलस, हरे मलेछवा, तू लेडवो ना बिछा सकेले! हमार रोवाइन परान हो गइल वा तोहनी से।'
भिखारिया एगो फटही कथरी लिया के बसहट का ओनचना डललस आ मुँहकुरिए ढहि गइल । थाकल-माँदल चनरी के खाएक पकावे के बेलकुल मन ना करत रहे, बाकिर होत फजिरहों लरिका खाएक माँगे सुरू करिहन स ईहे सोचि के ऊ उठल आ थरिया में दू पहँत आटा निकार के, ताबरतोर सनलस फेरू तावा सिउँठा लेले बहरा निकरि आइल फेड़ का जरी चारि गो धुवाँइल ईंटा रहे। चनरी ओके सरिया के चूल्हि बनवलस आ ऊखि के खोइया जरा के तावा चढ़ा देहलस |
आटा के बड़-बड़ लोइया काटत आ तरहत्थी पर पीटत भुसुरात रहे, "ई हरजाई सिलिया चाहित त हमरा लरिकन के दू गो रोटी ना पकाइत! हम जिनिगी भर एकरा मरद के गूह कछनी पोसनी पलनी आ अब ई भतार वाली भइल बिया! अहो मरकिलांना एक्को बेरि जो भउजी आ भइया के पूछित कब दो आई आ आड़ों लीलि दूँसि के पसरि जाई।"
.... चार-पाँच वरिस पहिले जब ऊ खेदन राय का बगइचा से खेदात रहलन स त महँगुआ सँगहों रहे राय साहब आ उनकर लड़का जब लाठी गोजी लेके ओकर छान्ह उजारे लागल त भिखरिया का बाप का संगे इहो रम्मा लेके खड़ा हो गइल। ओह घरी वटेसर छोटक राय किहाँ नोकरी ना करत रहे। भईस आ पाड़ी रखाव आ सूखल लकड़ी तूरि के दूनो भाई कस्बा में बेचे कबो-कबो चइली फरले आ छोट मोट मजूरी के के जब दू-चार रुपिया घर में आवे त बुझाव कि नियामत आइल वा । वाकि हाय रे करम ए हरजाई का आवते महँगुआ के का जाने का हो गइल.....
चनरी मोट मोट हथरोटिया सेंकि के परई में धइलस आ चूल्हि बुता के सिउँटा से तावा उठवले मड़ई में चलि आइल खायक खाँची से तोपत खा ओकरा मन परल कि लरिका बहरे वाइन से ऊ हड़बड़ाइल बहरा निकसल । उन्हनी के देहि सीति से सिमसिमा गइल रहे। दूनो के जगा के बाँहि धइले भितरी लियाइल आ पुअरा का चटाई पर ओठंगा दिहलस भिखरिया के मुँह देखि माया जागल त जोर से झकझोर के जगवलस, 'ए बबुआ, हरे हई देख तोरा के का बनवले बानी ? हइ देख जाउर आ सोहारी रे।'
भिखारिया निनियाइल आँखि उघरलस, चारू ओरि तकलस आ परई पर हथरोटिया गूर देखि के आँखि मून लेलस। चनरी भेली फोरि के रोटी पर फइलवलस आ चउँवा बना के ओकरा मुँहे डाल देहलस, 'ले रे बबुआ, लेंडुवा ! काटु, जोर से काटु !'
दू चार काटा बरियाई कटवले के बाद भिखारिया फेर सूति गइल। बाँचल रोटी के चउँवा काटत खा, चनरी के बटेसरा के खियाल आइल सभ सूतल होई आ ऊ बिहिटी लपेटले गोहूँ में पानी बरावत होई का जने कहिया ले छोटक राय क करजा उतरी ? भइँस बियाइल त उनहीं का दुआरे चलि गइल। जवन पइसा मिलल ओसे पाड़ी किना गइल सौ पचास बँचबो कइल त दवा बीरो में केहू तरे गूजर नइखे राम जाने कइसे निस्तार होई ?
आजु काहे दो चनरी के नौन नइखे आवत! भितरे भितर मन दोचित बा। आपन गरीबी आ दलिदरपन पर ओकरा भित्तर सवाल पर सवाल उठि रहल बा ! ईमानदारी के जिनिगी जीए का चलते लुटहाई आ लात-जूता, ओहू से आगा बढ़ल त जेहल। कूल्हि मुसहरने खातिर बा ।
जेहल के मन परते, ओके आपन देवर महँगुआ फेरु इयाद परल दू हाली ओकरा के पुलुस वाला घिसिरा के ले गइलन से एक बेर त ऊ दस दिन जेहले में रहे ओघरी ई हरजाई सिलिया रात होते छोटक राय का टीबुल पर निकल जाव आ भोर भइला पर आवे राय साहब दू दिन पर साँझ खा पूछे आवसु, कवनो बात नइखे नू रे ? जवन घटीबढ़ी आके घरे ले ले जइहे घबड़इला के जरूरत नइखे। हजार दू हजार जवन लागी हम बानी नू! महँगुआ के दू तीन दिन में छोड़ा लियाइब ।
महँगुआ के काल्ह फेर पुलुस वाला पुछत रहुवन से बहेंगवा दु दिन से नइखे लउकत ओ बेरी पइसा का जोर पर छूटि गइल बाकी ए बेरी धराई त ना छूटी। छोटक राय आ उनका ओकौल लइका के कवन ठेकान ? बनला के सब संघतिया होला । उप्पर से पालिस वाला बात आ भित्तर से करिया बीखि गरीबन के ढेर ददखाह वा लोग त चोरी-चकारी काहे करावेला? दोसरा के खेत कटवाई, बैल खोलवाई त का होई ? जेहल मुसहरे नू जाई ऊपर से ई हरजाई ओहिजा छिनरझप खेले जाई भक्खर पर5 सन, ओकरा से का मतलब ? 1
बटेसरा का छाती पर ओह घरी जो ऊ सवार ना रहित त ओही में इहो रहलन। बेटा के किरिया ना धरइतों, जहर माहुर खाए के धमकी ना दीर्ती त का जाने का होइत ? दोसरका हाली कहीं जाए के नउबते ना आइल छोटक राय डेरवावते रहि गइलन हम साफ-साफ कहि दिहलीं, 'मलिकार, रउवा सरन देहली ठीक बा, रो-रोऔं तूरि के राउर खेती-बारी, कटिया बिनिया, गोबर- गोसार कुल्हि करब जा, बाकि ई काम ना होई हमनी से।'
एही बोलला पर राय साहब खिझिया के चल गइलन आ बटेसरा ओकर झोंटा घिसिरा के लाते मूके खूब कचहरलस, बाकिर ऊहो अड़ि गइल रहे। ...चाहे भुजुड़ी-भुजुड़ी काटि द बाकी हम तहरा के चोरी-चकारी ना करे देव।' मन परते चनरी मुस्कियाये लागल; जइसे ओह दिन का बिदरोह पर ओकरा आजुओ गरव होखे। आ एगो ओकर देवरान सिलिया बिया ओठलाली, साड़ी- बेलाउज आ साबुन-सोटा खातिर मरद के भक्सी झोंकवावेले मरद ना रहेला त वकील बाबू से मुस्किया मुस्किया अइँठेले।
बहरा कवनो मरद के खखरला के आवाज सुनाइल चनरी सजग होके उठल दुआरि पर आवते बोली सुनाइल 'ले! धरु एकदम ताजा ताड़ी ह का बनवले बाड़े ए बेरा ?"
-मछरी आ रोटी!' ई अवाज ओकरा देवरान सिलिया के रहे।
..त ई हरजाई जगले रहलि हा! चनरी धप्प से बइठि गइल... आ ई डोमवा एह बेरा कहाँ से लवनी लेले आवडता ? काम-धाम कवनो हइए नइखे। छोटक राय के पोसुआ कुक्कुर भइल बा। भांगो मुँहझउँसा!
थोरिके देरि में देवरान के खिलखिलाइल आ नासा में दूनो के धसोरा- धमोरी सुरू हो गइल। चनरी कुड़बुड़ात उठल आ लड़िकन का लग्गे आके ओगि गइल।
अभी अन्दुन्हार रहे। हउँजार आ हाला सुनि के चनरी उठल बहरा निकलि के देखलस कि छोटक राय के खिलाफ पाटी वाला लोग महँगुआ के गारी- कजिहत करता दूंगो पुलुस वाला कान्हि पर बनूखि लेले ठाढ़ बाड़न स महेंगुआ भुइँया ढहल बा, ओकरा मुँह से खून चूवडता ।
खेदन राय, अवध चौधरी, रामसरन पाँड़े आ खेदन राय के दूनो लरिका लडर लेले खड़ा रहलन से खेदन राय लाते ठोकरियाइ के महँगुआ से कहत रहलन, 'का रे स्सारे ? तोर अवकात अब अतना बढ़ गइल कि गाँव का बड़कनो के नइखे छोड़त ? अब तोर गाँव छूटि जाई...!"
अतने में सिलिया छोटक राय के लड़िका ओकील साहेब के लेले पहुँचि गइल। पाछा पाछा बटेसरा आ छोटक राय का पाटो के चार पाँच अदिमी लउर लेले धावल पहुँचुअन स
- ए वकील, ई तहरे पलिवार का देन है कि हर महीना गाँव में कुछ न कुछ खुराफात होता। खेदन राय के ना रहाइल |
- एह चार सारे के हमनी का अब एइजा ना रहे देव जा' अवध चौधुरी लउर पटकलन ।
-ढेर जोर मत फाटो ए चडधरी तहन लोग का छान्ह तर नइखे बसल खेदन राय त पाँच वरिस पहिलहीं इन्हनी के उजार देहलन। उ त भला होखे बाबू के कि एह मुसहरन के निम्मन जिनिगी जीये के रस्ता देखवलन हमनी का बारी में बाड़न से, हमार काम-धाम करत बाड़न स त तोहन लोग के करेजा फाटता । ए सिपाही जो, रउवा दुअरा चलीं। बाबूजी का सोझा फैसला होई। तें का ढहल बाड़े रे महँगुआ ? उठ तोर बेटी मुओं, केहू का सेन्ह पर धराइल बाड़े? कि तोरा मड़ई में केहू के धनसुकिया चोरावल बा ?" सुदर्शन बाबू एक सुरुकिए बहुत कुछ बोलि गउअन।
महँगुआ खून पोंछत उठ गए। ओकरा अगल-बगल सुदर्शन बाबू के अदिमी केदार चौधुरी आ बलेसर चौधुरी खाड़ हो गउए लोग।
'चलीं सभे, चलीं, राय साहेब का दुआर पर चलीं सभे। रउवा सभ रपोट कइए देले बानी। महँगुआ पर केस चलवे करी। ओइसे अपुसे में समुझ-बूझ के एहिजा निपटारा हो जाव त कवन नोकसान बा ?' एगो सिपाही बोलत आपन साइकिल घुमा लेहलस दुसरको ओकरा पाछा चल देहलस।
'आरे ओइजा का फैसला होई ? उहे त कुल्हि करावत बाड़न।' खेदन राय के लड़का गाभी बोलल ।
* अछरंग जिन लगावs ढेर जरतपन ठीक ना ह ए बाबू!' ओकील सुदर्शन बाबू बोललें ।
- -'नाहीं त का लीलि घलब ?'
-ठीक त ईहो ना ह जेवन तोहन लोग करत बाड़s जा -'होस में रह5।'
'नाहीं त का क लेबs ? ऊ दिन गइल जब तहन लोग सभके डोलावऽ लोग।'
- मना कर5 खेदन काका इनके नाहीं त... ।'
"हरे स्साला बटेसरा तोर बहिन मुओ का ताकत बाड़े रे? मार5 स स्सारन के लरक के।"
सुनते बटेसरा ठेंगा चला देलस खेदन राय के लइका डगरा गइल। खेदन
गय पाछा घूमसु तले एक लउर उनहूँ का पखुरा पर गिरल सिपाही कुछ समुझ
स एकरा पहिलहीं रामसरन पाँड़े आ खेदन राय का छोटका लइका के लाठी सँगही
बटेसरा पर गिरल आ उ फिरिंगी लेखा नाचि के दरहीं उलटि गइल। चनरी रोवत
चिचियात धउरल तले दोसरका लाठी महँगुआ का कान्हि पर परल।
'खबरदार ! केहू हिलल त गोली मार देब जा!' सिपाहियन के बनूखि हाथ में आ गइल।
सभे थथमि गइल। घाही लोगन के गमछी बान्हि के उठावे लागल लोग। दूनो पाटी के लोग तरनाइल रहे। देवी पांडे डाँक-डाँक के रेकसा बोलवले आ अपना पाटी का लोग के रेकसा पर चढ़ा के चल दिहल लोग बटेसरा का मुड़तारी चनरी आ ओकर लड़का फेंकरत रहुअन स
'ए चउधरी, देखs हो मूवल कि जियल? हम जा तानी बाबू जी के खबर करें। अब त इन्हनी के वार्ड हेठ करहों के परी' आ सुदर्सन बाबू फलगरे आगा बढ़ि गइलन।
साड़ी फारि के बटेसरा का कपारे बान्हत चनरी चिचियात रहे. 'अरे हमार रमऊ हो रमऊ ! एही से कहत रहनी कि बड़कवन का बीचे जिन पर महँगुआ तोहरों के ले बितल ए हमार रमऊ !' चउधरी ताबरतोर कई अँजुरी पानी बटेसरा का मुँहे छिरिकुअन त बटेसरा कहरत आँखि खोलुवे, 'मलिकार अइलन कि ना ?' आ फेर ओकर आँख बन हो गउए । महँगुओ एकोर डगराइल रहुए बाकी ऊ
बेहोस ना रहुए। सिलिया ओकरा चानी पर तेल चाँपत, सुसुकत रहुए। मोटरसाइकिल के आवाज सुनि के महँगुआ सिलिया से पुछुए, 'मलिकार हउँए का रे ?"
'ए चउधरी, इन्हनी के लाद पात के अस्पताले लियावs, हमनी के तबले थाना में जात बानी जा।' ई छोटक राय के दबंग आवाज के कमाल रहुए कि दूनो सिपाही लोग चट्ट से सलाम करुए।
रउव सभ के बहुत किरपा बा हमनी पर हम एके इयाद राखब!" सिपाहियन का ओरी ताकि के छोटक राय अतने बोलुअन आ मोटरसाकिल चल देहुए। पाछा से दूनो सिपहियो साइकिल बढ़ावत हुरपेटुअन स, 'अरे ससुरा जल्दी चलs स!'
दूनो चउधरी लोग बटेसरा के टाँगि के रेकसा पर बइठउए लोग दोसरका ओरी से सिलिया का कान्ही हाथ धइले महँगुओ आके पवदान पर बइठि गए। चटधरी चनरी के हुरपेटुअन, "चल स जल्दी अस्पताल, एकर घाव बहुते गहिर बा, खून रुकत नइखे। राम जाने का होई ?" आ चनरी पगलाइल रेकसा का पाछा धउरे लगए। ओकर दूनी लइको ओकरे सँगे फेंकरत धउरत रहुअन स |