केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस होखे लागेला जइसे एक फूँक- गाँजा क सुरूर सुर-सुर-सुर-सुर सँउसे अलंग में उतरत चलल जात होखे मसल कहल ह कि बड़ गाँव के बनिहार आ छोट गाँव के जमींदार बराबर होला !
गहमर में रहला के कुछ स्वाभिमान के सुरसुरी त होइवे करेला अब एसिया चाहे वर्ल्ड में गहमर गाँव के जोड़ के हैवीवेट मिलो भा जिन मिलो बाकिर एतना ते तय वा कि यूपी-बिहार में एतना सघन पसरल ग्रामनामधारी सामुदायिक संरचना अउर कवनो नइखे। गहमर के माने भइल कि गाजीपुर जिला के गंगा- कर्मनाशा का उर्वर दोआबा में लगभग अन्तालिस वर्गमील में फइलल एगो अइसन भूखण्ड जवना के गाँव का अलावे अउर कवनो संबोधन नइखे। एही भूखण्ड में गंगा का किनारे डेढ़ मील उत्तर-दक्खिन आ दू मील पूरुव पच्छिम में फइलल लगभग एक लाख के ठसाठस ठकचल जनसंख्या के नाँव ह गहमर खास गनीमत भइल कि पिछला पचास बरिस में एह बस्ती में से अनगिनत परिवारन के स्खलन हो गइल आ लोग सहरि में बसल चलल जाता नाहीं त आज जनसंख्या तीन गुना होइत ! ग्राम पिण्ड में से भरभराइ के जनसंख्या झरला का बादो अगर डेरा डंडा छावनी एक्सटेंशन चाहे गहमर में समाइल मौजा- पुरवा सिकन्दरपुर, फकीरपुर, भटपुरवा, भरपुरवा, टेलही, खुदरा गदाईपुर, पटखौलिया के अउरो अउरो जनसंख्या जोड़ लिहल जाय त जनसंख्या के फीगर डेढ़ लाख के लाँघ जाई। एह में ओह गाँवन के नाँव नइखे जहाँ क अदिमी जिला से बाहर गइला पर अपना गाँव-नाँव गहमर बता देला एकरा अलावे अगल-बगल के बड़ बस्ती जइसे बस के आखिरी पड़ाव बारा कलाँ आ ब्लाक बन गइल भदौरा के आपन पहचान मिल गइल नाहीं त कुत्तूपुर, मगरखाहीं, भतौरा सागर, मनिया, सेवराई, बकइनिया ई कुल गहमरे कहात रहे। कर्मनाशा का पार बिहार का पुरनका आरा शाहाबाद (अब बक्सर) में पड़े वाला कई गो गाँ जइसे सोनपा डेहरी के अदिमी सुविधा खातिर आपन पता ठेकान गहमरे बतावेलन काहे कि उनका खातिर गहमर हर तरह से नगीची बा!
गहमर एगो अइसन गाँव ह जहाँ पोस्टापिस के आपन बिल्डिंग बा सिनेमा हाल बा, भारी-भरकम अस्पताल बा। दूदू गो डिग्री कालेज बा । चरतल्ला इमारत वाली राजकीय कन्या इन्टर कालेज बा एक किलोमीटर लमहर (पटना-मुगलसराय मेन लाइन पर) सइ बरिस से ढेर पुरान प्लेटफार्म आ रेवले स्टेशन वा एह गाँव में प्रतिदिन लगभग आधा दर्जन डकमुंशी लोग बीसन लाख रुपिया मनिआर्डर बॉटेलन। एहिजा के प्राकृतिको परिदृश्य मनोहरे रहल ह गहमर में छव तरह के खेत के माटी बा जवना में हर तरह के फसल पैदा होले खेत सिवान का बीच-बीच में आम- महुआ के सघन बगइचा बाड्न स जवना में जेकरा सक्ख वा ऊ अउरी तरह के फल-फूल लगवले बा एकरा अलावे गहमर लंगड़ा आम का उत्पादन छवर (बेल्ट) में आवेला एह से जे कृषि में पूँजी लगावे जोग बा ऊ कलमी आम के आधुनिक बगइचो लगवले बा गाँव का दखिने कर्मनाशा का थाला में अबहियो एगो जंगल क छोट रूप विद्यमान वा जवना के मनिहर बन कहल जाला। ओहिजा लोग बनसती माई के गोड़ लागे, भूलन बाबा के दरसन करे आ बरसात का सीजन में खेखसा, कइत, वन परवर, गूलर तोरे चल जालन गंगा का उत्तर आरी के थाला बाँड़ कहाला जहाँ सरपत का जंगल में अनेकन वन्य जीव रहलन। रहल त कबे बाघो होई काहे कि अवहियों बघनरवा बा । बनसुअरा हरिना आ हारिल, तितिर जइसन शिकार के आहारजीव त अभी हाल तक रहलन। अब नइखन वन्यजीव का नाँव पर बांचल वा घोड़रज (नीलगाय)। अब देखे के बा कि इहो लोग बाचत बा कि डायनासोर नियर कथाशेष होता। मुस्लिम समुदाय इहन लोग का शिकार में रुचि लेता। गाँव से सियार के आवाज गायब हो गइल बा सुने में आवडता सरकार कई ट्रक सियार खेत में छोड़लऽसा पता ना कवना वजह से एक बेर सियार पकड़ल गइल आ अब छोड़ल जाता। जवन होखे, वर्तमान सियारन का भाषा में ऊ सुरीलापन नइखे जवन एह जवार का आदिवासी सियारन का बोली में रहे। पता ना कवना देस क बोली बोलत वाइन स आज के सियार।
गहमर में कई गो बिसेस खासियत वा एहिजा के दस-बीस हजार आदिमी हमेसा फउज के सेवा करेलन एहिजा फउज क पिन्सिनो लेबे वाला दस-बीस सइ वृद्ध लोग हमेसा तारीख गिनत रहेलन गहमर में एके बैंक बा ओह में रोज दू-चार सह अदिमी के निपटावल जा त महीना भर में पिन्सिन के काम ओरियाला। गहमर में कवतो एहरारू मेहरारू अंगूठा चिपोर मिल जाय त मिल जाय नाहीं त गाँव में लिखे भर सब पढ़ले बा । एहिजा के इन्टर कालेज साठ साल पुराना बा। संस्कृत पाठशाला अपना जीर्ण-शीर्ण भव्य इमारत का साथ सइ बरिस पुरान बा मिडिल स्कूल ओनइसवीं सदी के वा गहमर में अंग्रेजो मिडिल स्कूल ओनइसवीं सदी के बा। गहमर में अंग्रेजो रहत रहलन स. उहनी के नील के गोदाम वा किलोमीटर भर लम्बा गंगाजी से लेके गोदाम तक के पानी के पाइपलाइन के अवशेष वा हिन्दी जासूसी कथा के जनक गोपालराम गहमरी के तोप से उड़ावल कोठी बा। डील- डाबर में दबल पुरातत्व के सामग्री वा अनेकन खूबसूरत पक्का मकान था। आदिमिन में आधुनिक लुगा-फाटा, टाप जिन्स, सवख सिंगार के संचेतना बा लेकिन गोड़ का नीचे जांघभर हाँच से भरल गली-खोर आ छवरियो बाड़ी स जेमें आदिमी त छोड़ी हँकला पर बैल तक अनकसालन स गहमर के बहुमत जनसंख्या नगरपालिका के स्थापना पसन्द ना करे।
अइसन नइखे कि नगरपालिका के प्रयास ना भइल प्रयास भइल । नगरपालिका बनबो कइल कई बरिस तक सक्रियो रहल बाकिर अफवाह उड़ गइल कि नगरपालिका से जीवन के स्वतंत्रई समाप्त हो जाई गोरू बछरू पर टैक्स लाग जाई फेरु का पूछे के सबका अनकस बरे लागल फौजी गाँव कड़बच कड़वच किड़िक के खड़ा हो गइल। गहमर रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रोक दिहल गइली स हजारन अदिमी मोंछ अंइठ के आ सीना तान के चिचिआइल, 'नगरपालिका भंग करो।' तनातनी जब बढ़ल त प्रशासन पुलिस आ गइल। गोली चलल जे मोंछ अँइठ के सीना तनले रहे ऊ त फउज में भागे पराये सिखले रहे बरक गइल। एकाध गो भोला भाला सीधा आदिमी का खून में डूब के कारतूस जुड़इलन स। बाद में मोकदिमा चलल मामला होईकोर्ट तक गइल। जज लिलार सिकोर के कलम के माथा दाँत से टोरिअवलस आ सोचत पुछलस कि आखिर ई कइसन गाँव ह जेकरा उन्नति आ विकास सोहात नइखे। सब उन्नति खातिर लड़े आवेला ई लोग अवनति का पक्ष में लड़ रहल बा का ईहनलोग का गली के सफाई, रोशनी के इन्तजाम आ गाँव के सुनियोजल विकास नीक नइखे लागत? वकील, जज का कान किहें मूड़ी ले गइल, सांय के आवाज भइल आ समझा दिहलस कि हजूर कुछ जानवर अइसन होलन जिनका कनई कादो में अन्हारा घोधिया के घुलटल नीक लागेला, आ जान जाई कि नगरपालिका भंग होके ग्रामसभा वापस मिल गइल। अदालत का भरल सभा में गाँव के प्रगतिशील आ सही सोचे वालन के पानी उतर गइल।.... खाली गहमरे ना यूपी-बिहार का पूरा भोजपुरी ओहिजा एही तरह के अन्धा कानून वा उटपटांग भाषा आ जोर- जबरदस्ती के माहौल बना के हरेक गाँव में ई लोग हिन्दुस्तान पाकिस्तान क मोर्चा खड़ा कइले बा एह लोग के पैदा कइल समस्या पर अब बड़े-बड़े समाजशास्त्री लोग सोचत बा जरूरत एह बात के बा कि जे०सी०ओ० से नीचे तक के, फौजी के रिटायरी से पहिले एह बात के पूरा तालीम देके वापस लौटावल जाय कि गाँव में कइसे रहे के चाहीं गाँव का मनोमालिन्य आ तनाव में एह लोग क योगदान मजिगर बा
गाँव का कनई में रंगाइल जब एक बेर हम घरे पहुँचलीं त फउज क रिटायर नाऊ रंगलाल हमारा गाल पर पानी दरकच्चत पुछलन, "मुन्सीजी, जनमभूमि जननी च! सुनले बानीं ?" हमरा मन में आइल कि अपना देहि में चपकल कनई के छींटा रंगलाल का देहि में रगर के छोड़ा लों आ हाथ जोड़ के कहीं कि ल ए रंगलाल भइया, एह जनमभूमि के अस्मिता तुहई सम्हार हम त गाँव का विरह में जिये चाहत बानीं कहलो जाला कि दूर-दूर रहले प्रेम बढ़ला। अब त ठरो ठेकान नइखे। वे गोसिया मोआर के जमीन जे चाहल दुर्बल कइल। सरकार बीच से नहर निकाल के रीती-छीती कइलसि जेकरा लौना घटल ऊ फेंड़ के डहँग काटल। ढहल घर का ओर देखि के जेकरा छोह लागेला ऊ कहेला, " अरे ललवा त बिला गइलन स" वेतनभोगी मजूर एक जगह बिलाला त दूसरा जगह बस जाला। नइखों देखले ? जहाँ ईंटा के भट्टा लागेला ओहिजा केतना अदिमी मड़ई डाल लेलन। भट्ठा हटते मड़ई उजरि जाले। लेकिन सुधि ना डाले । लवट लवट के मन दउरेला अरे हेइजे फलनवाँ हमार कितबिया छिनले रहे। हेडजे हमके धिरवले रहे। हेइजे फलनिया हमके देख के मुँह बिजुकवलसि। हई घरवा जवन गिरल वा एही में हम पैदा भइलीं। कहे के मतलब कि भूमि-ठौर के सुधि ग्रह के अनवरत परिक्रमास्थली हो गइल बा हमार ब्रह्माण्ड ! जब हमरा अइसन छोट अदिमी एतना सोचत वा त बड़े-बड़े अदिमी गाँव छोड़ के का सोचत रहल होइहें गोपालराम गहमरी, महवीर प्रसाद गहमरी देवता प्रसाद गहमरी, चाहे आधुनिक युग में का०हि०वि०वि० के आयुर्वेद विभाग के पूर्व अध्यक्ष गोरखनाथ चौबे आ अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष डॉ० तुलसीनारायण सिंह जइसन आदिमी वाराणसी में बस के हर गाँव नियर गहमरो से प्रतिभा पराह (पलायन) भइल ह पिछला सइ वरिस में! पहिले भारत में अस्सी आ बीस के परता बइठे गँवही आ सहरइतिन जनसंख्या में अब गाँव के जनसंख्या सहरि से कम हो गइल बा।
आखिर केतना ऊँच बिरह के ज्वाला लेके अदिमी गाँव छोड़त होई! गहमर में बइट के सवा दुसह उपन्यास लिखला का बाद गोपालराम गहमरी आपन कोठी बेंच के वाराणसी का बेनियाबाग में रहे शुरू कइलन त 'मतवाला' अखबार में आचार्य शिवपूजन सहाय होली का सम्हेरा चिटुकी लेत लिखलन, गहमर के गोपाल राम जी
हिन्दी के जासूस करत विलास विलास भवन में तज के छप्पर फूस
भला यह वानप्रस्थी है !
गहमर में गहमरी के छप्पर फूस ना रहे। दू तल्वला के आलीसान कोठी, चारू ओर बगइचा, हाता. मीठ पानी के कुआँ एक-एक ईंट पर जासूस काटेज छाप के पकावल रहे। अइसन कवन वेवसी में आइल मन कि कोठी बेंचे के पड़ल ? बेंचला का बादो कोठी सुर्खी में आइल सन् बयालीस के बागी राजाराम सिंह ओह कोठी के किनले रहलन। जब राजाराम सिंह के दमन करत उनका हरेक अड्डा पर तोप दागल गइल त गहमरी कोठिओ लखनऊ का रेजीडेन्सी नियर तोप के घाव खा के करिया-भभीछ खड़ा हो गइलि ओह घरी गोपालराम गहमरी जियत रहलन। बाद में ऊ कोठी हबड़ा मछरी चालान करे वालन के अड़ार बन गइल जासूस काटेज के ई दुरदसा उनका (गहमरी का) जीवने काल में भइल। पता ना गोपालराम गहमरी कुछ लिखलन कि ना, कोठी पर तोप दगडला के जिकिर मन्मथनाथ गुप्त का लिखल सन बयालीस का इतिहास में बा! पता ना कइसन कइसन अमनख लेके आदिमी गाँव से निकल के पूरा देस में छितराइल बा, देसो से बाहर निकल के पूरा भुमंण्डल में छितराइल बा। टूअर टापर नियर गुमसुम ऊ आदिमी सेमर का बीआ नियर उगल त गहमर में बाकिर अनुकूल वातावरण खोजद रूई का फाहा के पंख नियर डैना। हिलावत संउसे संसार के धाँग आइल गहमर छोड़ला का बादो गहमर जाये के पड़ेला एगो कहावत कहल जाला कि-
अड़हर जइबS बड़हर जइबs
माँग मुँड़ावे गहमर अब
गहमर में जामल चाहे लइका होखसु भा लड़की जब उनकर बिआह होला आ सन्तान पैदा होले त ओकर बार उतारे खातिर गहमर कमइछा माई का धाम पर जरूर आवे के होला। हाथ में कमइछा माई के झूल-फूल, सेनुर बतासा आ नरियर लिहले धाम का दुआरी पर ठाढ़ मेहरारू गावत मिलिहन- -
देवी! खोलीं ना केवड़िया
बड़ी देर से खड़ी पान लेके खड़ी फूल लेके खड़ी देवी खोलीं ना केवड़िया
बड़ी देर से खड़ी।
अब गहमर के कमइछा माई, मिर्जापुर के विन्ध्यवासिनी माई आ मैहर के शारदा माई के एगो त्रिकोण तीर्थ यात्रा बा जेकरा सँवहर बा एक साथ तीनो धाम के दरसन करत बा।
आधुनिक गहमर सन पनरह सौ छब्बीस इस्वी का बाद बसल खानवाँ का लड़ाई का बाद राणा सांगा के सेना में जब धोखा से भाग पराह मच गइल त राणा के एगो बिसवासी सामन्त राव धाम सिंह जू देव अपना पुरोहित गंगेश्वर उपाध्याय आ दीवान वीरनाथ ठाकुर (कायस्थ ) का साधे कवनो सुरक्षित स्थान का तलाश में निकललन साथ में बाल-बच्चा का अलावे कमइछा माई के एगो भव्य प्रतिमा रहे जवना के आक्रमणकारियन का हाथ में पड़ के विखण्डित होखे के डर रहे। इहन लोग के मुगल सेनापति मीर बाकी पिछि अवलहू रहे। खैर, प्रतापगढ़ जिला का आसपास ई लोग मीर बाकी के चकमा देके सारनाथ का जंगल में घुस गइल। उहाँ से ई लोग आधुनिक मुगलसराय का और आइल जवन गंगा-कर्मनाशा का दोआबा में गह्वर जंगल में भरत रहे। ई जंगल पूरुब में आरा (अरण्य) तक फइलल रहे। एह में बाघ भालू हुड़ार- अजगर करइत आ मनिहर सांप के खूंखार वन्यजीवन रहे। जंगल का बीच जगह-जगह चेर खरवार के कोट आ गढ़ी रहे। एह घनघोर जंगल में धाम सिह आ उनका सैनिक टुकड़ी के भोजन दुर्लभ रहे। भोजन का नाँव पर पीपर बरगद के गोदा आ छीन झपट के जुटावल गाय के दूध रहे जवन खोर नियर पका के पंच खात रहलन।
कहल जाला कि कमइछा माई सपना देखवली कि जहाँ नीम का फेड़ पर बाघ दहाड़त लडके ओहिजे हमार स्थापना होखो आधुनिक धाम का लगे ई अजगूत लडकल अइसन लागत बा कि ओह स्थान पर कवनो आदिवासी राजा के गढ़ी रहे जवना के लड़ाई में पराजित कर के ओही गढ़ी का दूह पर कमइछा माई के पहिल थापना भइल। ओह जमाना में पराजित का गढ़ी किला में रहे के रिवाज ना रहे बलुक ओके दाहि के जमीन्दोज कइ दिहल जाय चाहे ऊ खुदे बिरान पड़ल पड़ल जब धूल माटी से ढँका जाय त ओह डील पर खेती होखे लागे भा फेड़ जाम जाय। गहमर में अइसने स्थान सँकरहट बा सँकरहट शंकर चेर के राजधानी रहे। धाम सिंह से हरला के बाद शंकर चेर सोनभद्र पलामू का ओर भाग गइल आ ओकर उजरल बस्ती सैकड़न साल तक धूल में दवात खेत बन गइल। ओह वस्ती पर बनल खेत के कुछ भाग त कमइछा माई का नाँवे लिखा गइल आ कुछ भाग अउर आदिम जाते लागल तीस-चालीस साल पहिले तक ओह खेतन में साही के मान नियर छेद हो जाय जवना में मुँह डाल के देखला पर पक्का कमरा लड़के माटी के दिल्ली लडके। कई को किसान के मोट पल्ला के सीसो के भारी-भारी केवड़ियो मिलल खेत जोतत के सोना के मोहरो मिलली। निठाली अहिर के एक गगरी गोजई मिलल रहे जवन इतिहास क दबाव झेलत झेलत पत्थल हो गइल रहे। एह सदी का सातवाँ दशक में जब नहर खोनाये लागलि त ओह डीह पर पत्थल के कई गो विचित्र प्रतिमा निकलली स एगो चौकोर लमहर पत्थल पर चौबीस अवतार नियर सूअर वगैरह के आकृति रहे। एगो तीन मुँह के सुन्दर केशविन्यास वाली देवी के खण्डित प्रतिमा ओही डील पर बान्हल सती लाची फुआ का चउरा पर धइल रहे। पता ना लाची फुआ के परिचय का वा। बाद में (अठारहवीं सदी) एह क्षेत्र से सट के गंगा नदी बहे सुरू भइली । कहल जाला
कि एगो साधू रहलन जवन बहुत बूढ़ हो गइल रहलन। एगो बरसात का संझा
खानी ऊ अपना एगो चेला के गंगाजल ले आवे के भेजलन। ओह घरी गंगाजी
डेढ़-दू किमी का बाद रहली आ साधू के लगे एगो पातर धार के नारा रहे।
चलवा असकतिया के नारा क पानी देके चल गइल। सवाद में फरक पाके साधू
का आरु आ गइल आ चिचिआ के गंगा माई के गोहरवलन, ए गंगिया आउ आ
गंगामाई राताराती पत्थल अइसन कड़ेर धरती, पर्वत अइसन झंझाठ झाबर सुरहुर
ऊँच फेंड़ कोड़त ढाहत साधू का कुटिया तक आ गइली आश्चर्य ई वा कि
पिछला डेढ़ सौ साल में हजारन बिगहा जमीन एह किनार से ओह किनारे चल
गइल बाकिर साधू के समाधि के माटी के वेदी अभी जस के तस बा-निर्जन-
शान्त एह गंगा नदी का कोप में सँकरहट के तीन चौथाई से ढेर भाग कट के वह
गइल । कगार पर खूबसूरत ईंट से जोड़ल गोल मेखला लउके पता ना ऊ कुँआ रहे
कि अनाज रखे के कोठिला अवहियों आठ-दस बिगहा के डील वाचल वा। पता
ना ओह में का दबल बा। अइसन कई गो डील वा कमइछो माई का टीला में
कहल जाला कि चहबच्चा बा गंगा का किनारे पंचमुखी घाट से पछिम बिचली
खूंटी का डील में धन गड़ला के चर्चा होला । दन्तचर्चा है कि चेरों खखार लोग का
पास बीजक रहे जवना पर खजाना गड़ला के नक्शा अंकित रहे । ऊ रात के आके
कोड़त खनत रहलन स अब कई गो टीला गंगा में ढहि गइल बा ।
एही जीतल भूमि पर गहवर गाँव बसल तब एकर नाँव गहवर रहे। जंगल में बसल मड़ई वाला गाँव के अउर नाँव होइयो का सकत रहे ? जंगल काटत के बुढ़ऊ महादेव के शिवलिंग मिलल एगो बनविलार के मूस खेदलस त ओहिजा धामसिंह के मड़इ पड़ल अगल-बगल में बस गइलन गंगेश्वर उपाध्याय, वीरनाथ ठाकुर, सेना के सिपाही लोग पराजय का बाद पुराना राजा के प्रजा पवनी- पजिहर लेकिन एह स्थापना का बाद धामसिंह राजा ना रहि गइलन, चठधुर कहाये लगलन उपाध्याय, पधिया हो गइलन दीवान ठाकुर दास आ लाल खुद गहवर का ना पता चलल कि कब अंग्रेजी में लिखल डबलू गलती से एम पढ़ा गइल आ गहवर गहमर हो गइल।
पता ना कइसे धामसिंह जूदेव के बंसज लोग तीन जातिन में बँटा गइल- ठाकुर, भुंइहार आ पठान ठाकुर लोग कहेला कि धामसिंह ठाकुर रहलन। भुइहार लोग कहेला कि ऊ भूमिहार ब्राह्मण रहलन मिसिर। लेकिन सिकरवार शब्द पर झगड़ा नइखे। धामसिह के एगो लइका सैन्यूमल के बंसज अपना के सिकरवार राजपूत कहेलन आ दूसर लड़का पूरनमल के बंसज सिकरवार भूइहार। इहन लोग क कमइछो माई क बँटवारा भइल। सैन्यूमल के कमइछा माई (मूल) गहमर में चाड़ी आ पूरनमल के कमइछा माई रेवतीपुर। कार्नवालिस का राज में जब भूमि के नियोजन भइल त एहिजा के राजशाही खतम हो गइल। तब चौरासी गांव राजपूतन के छप्पन गाँव भूइहारन के आ चौदह गाँव पठानन के रहे। एह में चौदह के पहाड़ा वा चउदह चटके छप्पन आ चउदह छक चउरासी पता ना एकर का मरम बा। कुछ दिन तक गहमर के राजस्व डुमरांव के राजा का खजाना में जमा होत रहे। लेकिन डलहौजी का समय में अंग्रेजी राज में गहमर फेर आ गइल। चकबन्दी का पहिले तक गहमर में खेत के पट्टी कटल रहे। कार्नवालिस भूमिसुधार करत आधा गाजीपुर तक आइल रहे त ले मर गइल कहल जाला कि गहमर में बाइस पट्टी ह। चार पट्टी लगान कम लागे खातिर चोरावल है। गाँव का भितरी पट्टी मोहल्ला के पहचान बा १८-२० पट्टी के खेत व्यवस्था केहू का नाम पर बा जइसे गोविन राय पट्टी अइसन प्रमाण मिलेला कि जब गहमर के चउधुर अवधूत राव (सैन्यूमल के लइका) रहलन ओह घरी एगो मुस्लिम सैनिक टुकड़ी गहमर आके लगान के माँग कइले रहे। अवधूत राव का साफ मना कइला पर उनके नाना प्रकार के जातना - जइसे मुँह में खपचाल ठोकल, बइरकंटी पर सुतावल आ खउलत पानी से नहवावल- दिइल गइल, बाकिर ऊ (अवधूतराव) टस से मस ना भइलन। एह जिद्द का आगे हार के वापस लौटत मुगल सरदार आपन खीझ मिटावे खातिर रास्ता में जात एगो करकटहा (डोम) के देख के पुछलस, 'करे गाँव किनबे ?" ओकरा (डोम) दाँत निपोर के असमर्थता जतवला पर मुगल सरदार जबरदस्ती ओकर टेंट टटोरुए त दूगो मुगलिया पइसा मिलुए। ओही पइसा के लेके ऊ हँसी-मजाक में गहमर के पट्टा ओह करकटहा के लिख दिहलस। लेकिन जब मुगल सरदार लगान ना वसूल पवलसत करकटहा का वसूलित ? हैं, गहमर बहुत दिन तक हँसी-मजाक में करकटहा क गाँव भइल रहल।
करकटहा के सनह देके जब मुगल आगे बढ़ल त एगो कानू पतई बहारत रहे। अवधूत राव का निडर जिद्द के जब चरचा चलल त ऊ कानू कमइछा माई का और हाथ उठा के सरल मन से कहुए कि बस इनही के कृपा बा। फेर का रहे, कई हजार साल पुरान प्रतिमा भुजुरी भुजुरी हो गइल। मुगल सरदार धन का लालच में टीलवो खोने चहलस बाकिर कहल जाला कि असंख्य काला भंवरा निकल के पिछिया लिहलन से आ ओकरा (मुगल का) भागे के पड़ल बाकिर अभी आजुओ जवन मेहरारू सुन्दर होते ओकरा सुघराई के तुलना कमइछा माई का ओही भुजुरी- भुजुरी प्रतिमा से होला। खण्डित ढेरी अबहियों बा। नयकी प्रतिमा का साथ ओह क पूजा होला ।
जइसे जइसे इतिहास आगे बढ़ल, रेल, डाक, फौज के महीना तनखाह, आधुनिक सुविधा लउकत गइल। मध्यकालीन मानसिकता के धार कम होत गइल। चउरासी गाँव, छप्पन गाँव आ चउदह गाँव के पहाड़ा छितरा के एकता खो बइठल अब एकर ढेर भाग पुरनका आरा (शाहाबाद) जिला में जाके बिहार कहाता आ कम भाग गाजीपुर में रहि के यू०पी० । चठरासी के बटोर अब लउरा लाठी खातिन नाहीं बस भोजभात में होता। उहाँ कवनो कवनो खाली धन से टांठ घर में बाकी सब त नई समस्या में अझुराइल बा। नक्सल समस्या, महँगाई समस्या, बेरोजगारी समस्या, अखवारी समस्या जइसे जात-पात, हिन्दू-मुस्लिम, मंडल- कमंडल, चोर-चुडुक्का, अकेलापन के एहसास।
अब एके गाँव में कई गो गाँव लडकी। जहाँ सलसन्त परिवार बसल बाड़न ओहिजा शान्ति वा धर्म आ नीति के चर्चा वा जहाँ गरीबी बा, भूख बा, ओहिजा धर्म के चर्चा कहाँ नीक लागी ? ओहिजा माई बहिन होता, आवऽहो, आवड होता कट्टा बन्दूक निकलत वा घर का भितरो असन्तोष के कोहराम बा अभाव के कलर बा रोज सांझ के गली में कोनचा पर चिरइन का हल्ला नियर अनेक सुर मिल के मिले सुर मेरा तुम्हारा हो जाई आ समवेत स्वर में सुनाई दी अरे तोर देखल बारे त तोर देखल, जो-जो पीढ़ा ध के ऊँच भइल बाड़ी।
गारियो-गलौज में केडर वा रैंक वा जवना रैंक के जे बा ओही रैंक खातिर निर्धारल गारी दिआई त ऊ बुरा ना मानी नाहीं त ऊ बरिसन दुसमन बनल रही! समाज का मौखिक दिशा निदेशिका में ई तय बा कि रड़हो-पुतहो, बुजरी- छिनरी, उड़ासी, पुतकाटी चाहे मर्दानी गारी में बहिन बेटी कब केकरा के आ कवना हालत में कहाल जाला। जे ई सत्संग नइखे कइले ऊ अगर गारी दी त समाज विद्रूप आ तनाव ग्रस्त हो जाई आ जे एके नइखे समुझत ऊ अगर सुनी त बिना समझले कहाँ जाई। पन्ना कम पड़त बा नाहीं त गारी विस्तार से बता देतीं। अवधूत भगवान राम अपना गाँव के पाठशाला कहत रहलन। हम अपना गाँव के इनवरसीटी मानीला। भले पोस्ट ग्रैजुएशन नइखों कइले बाकिर गहमर इनवरसीटी
के इनरोलमेन्ट त बड़ले बा । गहमर से अँउजाइल आदिमी कहेलन कि एह गाँव क सबेरे-सबेरे नाव लिहला पर दाना ना मिले। कहाँ से मिली? जब एको दाना छोड़ल जाई तब न मिली। एहिजा का जीवन-दर्शन में शत्रु के अधूरा ना पूर्ण संस्कार कइल जाला। बालमुकुन्द सिंह गहमरी लिखले हउअन कि-
खपड़ा नरिया माटी-ढेला पत्थर से लड़ी त क घरी अड़ी।
गहमर जबर है। गहमर जटिल ह। भोलानाथ गहमरी का नजर से- काँट कूस से भरल डगरिया धरों बचा के पाँव रे माटी उपरा छान्ही- छप्पर
ऊहे हमरो गाँव रे।
गहमर टरले ना टरे। एगो बहुत पुरान कहावत है कि 'नवली नवे न गहमर टरे बीच करहियाँ धरहर करे।'
पुराना जमाना में गाँव से गाँव के सिवान खातिर लड़ाई होखे। मामला आगे बढ़े त अदालत खातिर धन के जरूरत पड़े। जे धन दे, ज्ञान दे ओकर सम्मान होखे। कुन्दन कोइरी अइसने अवसर पर जब धन दिहलन त बड़-बहुआ का दुआर पर उनके खटिया पर बइठे के अधिकार मिलल समाज सेवा क मूल्य त मिलबे करेला। जरूरत सेवा में निःस्वार्थ भइला के बा
अब अइसन बात नइखे। लोग काम कम करत बा, विज्ञापन ढेर हाथ में झाड़ू लेके फोटो खिचावता। काम नइखे होत बाकिर साइनबोर्ड लाग जाता। विकास का नाम पर राजनीति होता लूट मचल बा समाज खात खात बेमार पड़ जाता-
का होई कइ के परापतो के दुगुना खात खानी घरे उत्पादके के ठेहुना ज्ञान भइल लतरी के दाल इहे गाँव ह। (आनन्द संधिदूत)
अइसना परापत से गाँधी मना कइले रहलन हिन्द स्वराज लिख के के मानता संउसे देस का संगे गहमरो क आचरण बिछलाइल बा। चरित्र गिरल बा। विचार लोटिआइल बा उदेस खाली धन अर्जन भइल बा हायधन हायधन में गहमरो के सामाजिक सौन्दर्य गिरल वा पहिले घर में एकाध गो रांड़ बेवा, एकाध गो अकलोल बकलोल जी लेत रहलन। अब भाई भतीजा आ पितियाउत के के कहो, आपन सग बाप उपेक्षा से अउँजा के रेल से कट मरत बा। सुनसान देखि के भोकर भोकर के रोवता । सासु-ननद गंगा में बूड़-धँस मुअत बाड़ी बेटी पतोह का पेट का पाछा नया नया सामाजिक अनुबन्ध समझे के पड़त बा। जइसे जइसे जनसंख्या बढ़त वा ओइसे ओइसे सामाजिक मरजादा ठकच के भरल रहिला बूट का कोटिला नियर जगह-जगहे चिटक रहल बा। सैंउसे देस नियर गहमरो में चोर सन्त के बोली बोल रहल बाड़न जइसे पाव भर छान के जै सिरी राम- मछरी का फेर में भगत भइल बकुला
शेर आहे बकरी के खाल इहे गाँव है। अशोक द्विवेदी का कहनी 'पोसुआ' के किरदार गहमरी में मिलिहें। एहिजो मुसहर चोरी का जुल्म में डोरिआवल जालन इहन लोग पर लाखन रुपिया चोरी भइला के मामला दर्ज होला। लेकिन, खाना तलाशी में मड़ई से बरामद होला एक भर गाँजा, एगो नीसध सबरी आ गाँव से माँगल टूका खाँड़ रोटी मुसहर चोरी के माल ना पावे, ऊ चोरी के मजूरी पावेला । ऊ चोर मजूर ह! मजूरी में पचीस-पचास गो रुपिया आ बोनस में जेहल गइला पर जमानत एहिजा कहावत है कि
चउधुरी रहलन गाजीपुर लुटवा लिहलन उधरनपुर !
एहिजा जीवन जीये खातिर जवना कलाबाजी के जरूरत होले ओकर खमो पेंच बड़ा जटिल बा एकर तुलना कलकत्ता का जटिल जीवन प्रणाली से कवनो कवि कइले बा -
कलकत्ता ह कल पर
गहमर ह पेंच पर
गहमर में रहि के केहू के बिजनेस व्यापार ना चमकल राजनीति ना चमकल । इहाँ तक कि ज्ञान कला आ साधुता तक में लाही लाग गइल। एहिजा बनिया लोग का खाली उधार ना, लक्स साबुन सूता से काट के आधा बेंचे के पड़ेला। बड़े-बड़े मौनी बाबा चिड़चिड़ा के गारी बके लागेलन। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ के राजनीति धराशायी हो जाले, जब कवनो चुड़क्का 'इहे जाले ह... कहि के पीछे मुँह कड़ के खिस्स से हँस देला !
एहिजा के बानरी सेना अठारह सौ सन्तावन आ ओनइस सौ बयालीसो में कमाल देखवले बा । सन् सन्तावन में मँगर सिंह गुरदेल से मार के अंग्रेजी सेना के हरवले रहलन। बाद में उनके कालापानी भइल प्रसिद्ध नारायण वर्मा आ दयाशंकर उपाध्याय के लिखल एगो पुस्तक (मैगर सिंह की जीवन कथा) छपल बा। गाजीपुर गजेटियर में उनके जिला के आतंकवादी लिखल वा मन्मथनाथ गुप्त सन् बयालीस का आन्दोलन में कई गो बीर के नाँव गिनवले बाड़न आजादी का बाद अनेक झूठ साँच रणबांकुरा लोग लमहर समय तक पिन्सिन पावल गाँधीजी क घड़ी गहमर स्टेशन पर करिहां से चोरी हो गइल रहे, किदो गिर के हेरा गइल रहे। खादी पहिन के चर्चा होखे कि फलनियाँ ले लिहलसि फलनियाँ कहे कि चिलनियाँ लेले बा।
गहमर में साँप का कटले केहू ना मुए बकस बाबा जे बाड़न दूर-दूर से साँप के काटल लरुआत आवेदन आ हँसत चल जालन गहमर में चमत्कारी सन्त बुलाकी दास बाबा के मठिया वा ऊ घांटो राग के प्रवर्तक रहलन। उनकर पांडुलिपि नागरी प्रचारणी सभा में (शायद) बा एगो दूसर चमत्कारी सन्त चिनगियो शाह के मजार बा जहाँ उर्स लागेला एकरा अलावे नानक शाही, कबीर पंथी, औघड़पंथी हर तरह के केन्द्र बा स्वामी दयानन्द सरस्वतियो का अइला के प्रमाण मिलेला ।
गाँव के श्रेय क लड़ाई जोर पकड़ले बा एह से सामाजिक सौन्दर्य बिधुना
गइल बा । एकरा अलावे दबल आ दबवनिहार के झक्काझूमर त होते बा एह से
भय आ शंका बढ़ल बा बड़का आ छोटका का लड़ाई में सबसे ढेर नोकसान
शान्तिप्रिय सहनशील मध्यम वर्ग के बा एहिजा जनान्तरण के रोग बा। काहे कि
गहमर के आदिमी मद्रास बम्बई में त बस गइल बाकिर मद्रास भा बम्बई के
आदिमा गहमर ना आइल एह से असन्तुलन बा गहमरो में हार के हार सिक्ख,
मद्रासी, मराठा, मारवाड़ी, बंगाली बसल रहितन त गाँव खिल उठित !
गहमर में देस का टटका विचार के ले आवे वाला नेता विश्वनाथ सिंह
गहमरी आ विश्वनाथ सिंह सूबेदार रहलन। गहमर के संस्कृतिआउत पहचान देवे
में प्रसिद्ध नारायण वर्मा (लेखक- रंगकर्मी), चन्द्रदीप सिंह मास्टर ( रंगकर्मी),
लाल बहादुर मास्टर ( रंगकर्मी), अंगद सिंह (नेता), लालमुकुन्द सिंह गहमरी
(पत्रकार), रामनाथ उपाध्याय राकेश (कथा वाचक कवि), शिवपूजन लाल
(शिक्षाविद), वासुदेव लाल गहमरी (अंग्रेजी लेखक), भोलनाथ गहमरी
(भोजपुरी कवि) के योगदान उल्लेखडक बा गाँव के जेकरा से गौरव मिलल
ओह में पं० शीतल उपाध्याय क नाँव प्रथम बा ऊ कालाकांकर में अंग्रेजी पत्र
'हिन्दुस्तान' के सम्पादक रहलन, उनका अन्डर में महामना मदन मोहन मालवीय
जइसन लोग काम करत रहे। शीतल उपाध्याय के मकान शीतल भवन गहमर का
एगो मोहल्ला के पहचान बन गइल बा दुसरका विद्वान जेकरा पर गहमर के गर्व
भइल ऊ संस्कृत के जगतव्यापी विद्वान आ जानल मानल आर्य समाजी पंडित
पद्मश्री डॉ० कपिलदेव द्विवेदी जी हई एही तरे मान्धाता सिंह शिक्षक नेता बहुत
दिन तक रहलीं।
आज का तारीख में संस्कृति, साहित्य, समाजसेवा आ सरकारी सेवा के द्वारा जवन गहमर के सपूत गाँव आ गाँव का बाहर अगहर बाटें उहाँ सभन के नाँव लेत डर लागत बा कि दूगो गिनाई त चार गो छूट जाई बाकिर टी०वी० सिरियल आ सिनेमा कलाकार अंजन श्रीवास्तव के नाँव लेबे के परी जे खाली भारत ना भारत के बाहरी लोकप्रिय बाड़न अंजन लइकाई में गरमी का छुट्टी में गहमर आवसु ऊ बहुत सुग्घर भोजपुरी बोलेलन।
गहमर में हाथी के पोसल, पक्का मकान उठावल, ऊँख के बोवल ना सहत रहे। बाकिर अब कुल सहड़ता। हाथी के जगह त कार जीप लेले बा बाकिर एक से एक बढ़ियाँ मकान बा आ लाठी अइसन नीसध आ चभला पर गर गर रस वाली ऊँख पैदा होता।
सहत त कुलिए बानीं अगर सहात नइखे त प्रियजन के बिछोह पता ना कहाँ अलोप हो गइल माई, बाबू, बड़की माई, बड़का बाबू, जगरनाथ बो भउजी, बिसनाथ भइका, इनरदेव, पधिया, अनत बरई, बनइला साहु, समली कमाई, सामसुन्दर भांट... गिने लागीं त रात ओरा जाई नांव ना ओराई अब गाँव में ऊ आनन्द कम से कम हमके नइखे मिलत। विश्वनाथ सूबेदार सवेरहीं लाउडस्पीकर लगा के देस दुनिया के खबर गाँव के सुनावत रहलन। केतना इयाद करों? लाली का माई के ठण्डा तेल, गुद्दी के माठा, घरभरन के रेक्सा, कुल्हिये मन परत बा। आ, अभी हाले में जबरदस्त धोखा दे दिहलन उमेश तिवारी हमके चिट्ठी लिखलन कि कमइछा स्थान का कवि सम्मेलन में जरूर अइहs आ अपने गायब । एह आवारा नामधारी का मौत पर पूरा गाँव से दिहल पता ना केतना सब्जेक्ट देके केतना केतना छन्द हमसे जबरी लिखवलन उमेश तिवारी।
जइसे आसमान का परदा पर पलटा मार के हार के हार तरई मुअत-जियत कबड्डी खेलत दरहम बरहम होत रहेली स ओइसहीं मिरित लोकवो में कबड्डिये होता। कब केकर बारी आई आ कबडी कबड़ी कहि के चल जाई पता ना गहमर में गायिका रामदेई भइली ओह जमाना में माइक ना रहे बाकिर जब महफिल में ठुमका मार के ठुमरी गावसु त बूढ़ बतावेलन, गंगा ओहपार तक सुनाई दे- एही ठंइयाँ झुलनी हेराइ गइल दइया रे
हम मिर्जापुर में थथमल बानी बाकिर हमरा आत्मा के झुलनी गहमर में हेरा गइल बा किदो ओही झुलनी के खोजत मरे का सम्हेरा बसदेव भइया पटना में आपन आलीसान कोठी छोड़ के गहमर का खपरैला में आ गइल रहलन।
जवना घर में अदिमी मूए आवडता ओही घर में केतने अदिमी पैदो होखे आवडता गहमर फरता निझाता निझाता फरता हमनी का फल हई जा आ गहमर एगो बोधिवृक्ष ।