चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी सखी आनंद भइली । धोबी घरे भेज देहली नेवत कसइली ॥ घाट पर सठनन
१
जोरी। का जरत त्रिविधि जड़, धुंआ ना धंधोरी। जे हाथ-गोड़ हाड़ भसम होत तोरी ॥ खोजत ना आपन बिछुड़ल सतुआ ना पिसान एको बान्हि के झोरी ॥ नाही एक फोकचे नाहि पड़ल फोरी। नाहि कब एको ठोप ढरेले लोरी ॥ पथलो ले बा बज्जर हिरया कठोरी। चोखोरल तीर, सेहु मुरकल मोरी ॥
२
३
अलख अती। ए हमारे प्रभु ! तुम गती रोटी पर नुन जुरत नहि जाके लाखन बरत बती ॥ बड़ बड़ सोध गीध होइ गइलन, अगती पावत गती। अइनन गढ़ कंचन पर लंका, रहेब ना एको रती ॥ माँझ दुआरी कंस पछारी छनहि में प्रान हती। गरब प्रहारी असुर संहारी, दुखित रहेउ धरती ॥ राजा राज तजि नाम तुहारे, सुमिरत जोग जती। जे जे तुमको जानि बिसारेब, ताकर कवन गती ॥ लछिमी सखी अवलम्ब तुम्हारो, एगो तिरथ बरती।
निसि दिन हेरत पंथ तिहारो, बिरह अनल जरती ॥
मन मनै करीले गुनावनि हो पिया परम कठोर। पाहनो पसीज पसीजि के हो बहि चलत हिलोर ॥ जे उठत विषय लहरिया हो छनै छनै में घघोर । तनिको ना कनखि नजरिया हो, चितवत मोरे ओर ॥ भावे घर आँगन न सेजरिया हो, नाहि लहर पटोर। बेंजन कवनो तरकरिया हो जइसे माहुर घोर ॥ तलफीले आठो पहरिया हो गति मति भइली भोर केहुना चौन्हेला अरजिया हो, बिनु अवध किसोर ॥ कइसे सही बारी रे उमिरिया हो, दुख सहस कठोर । 'लछमी सखी' मोरा नाहीं भावला हो, पथ भात परोर ॥