आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी
में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ
हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से
अइसन मूर्खता हो जाइल करेले अखबार कोनि लिहला में चल्हांकी खाली एतने
भर रहे ले कि हाथ में अखबार लउकत रहला से अपना के आदमी बेकहले सुनल
बड़ साबित क सकेला| साधे-साधे अगर बर्थ पर बइठे के जगहा ना रहेला त
अगल-बगल के पसिजर लोग एने-ओने घुसुकि के जगहा दे देला । एगो चल्हाकी
हम एमें अउरी करेलों कि हम हाथ में अखबार अकसर पुराने राखल करेली, काहें
जे हम ई खूब अच्छी तरह जानेलों कि गाड़ी में कीनल टटका अखबार ना त
गाड़िए में पढ़े के मिलेला, ना घरहीं ले जाए के मिलेला लाट फारम पर बेचे
वाला हाकर का हाथ से जइसहीं अखबार रउरा हाथ में आई, बगल में बइठल
केवनो ना केवनो जाना जरूरे बोलि दोहन-भाई साहब! बस एक मिलिट
खातिर, इची माफ करबि" आ हाथ में के अखबार एह तरे झपटि के छोनि लोहन
जइसे चौल्हि पत्तल पर के पूड़ी ऊ रउरा 'हाँ' भा 'ना' के इन्तजारी ना करिहन ।
उनका एह करतव का सफलता के देखि के दोसरो के साहस बढ़ेला केहू अपनी
जगहे पर बइठले बइटल अखवार का मोटका शीर्षक के गिड़ोरि-गिड़ोर के पढ़े
लागेला, त केहू एने ओने से झाँक झूक करे लागेला ताकि दोसरा लोगन का ई
बुझाइ जाउ कि उनहूँ का अखबार के खास जरूरत बाटे। कुछ लोग उनहूँ से डेढ़
भेंटा जालन ऊ अखबार के एगो पन्ना खींच लीहन आ कहिहन- "भाई साहब,
तबले हमहूँ बीच वाला पन्ना देखि लीं। कहे के मतलब ई कि नाऊ देखते सभकर
हजामत बढ़ि जाले आ देखते देखत अखबार 'देवता के परसाद' बनि के बँटाइ
जाला माटी के देवता तिलके में ओराइ जालन आ बेचारा अखबार वाला लोगने
के मुँह बाँचत रहि जाला। अगर ऊ इचिको अउँजाहट देखाई त तुरन्ते ओके लोग
समुझावे लागी कि एतना जल्दी काहे के बा? राउर त अखबार हइए ह, घरे ले जा
सुचित से पढ़त नू रहवि। अगर उनका एह उपदेश से रउरा इचिको ढोल परली
त ऊ परोपकारियो बनि जइहन आ अपने अखबार का तारिख से ले के अन्त में
सम्पादक आ प्रकाशक के नाम बँचला का बाद ऊ दोसरा का हाथ में बढ़ाइ के
अपने बड़ बनि जइहन।
ई बाति नइखे कि कुल्ही यात्री लोग अखबार का समाचारे खातिर खखुआइल रहेलन अखवार चाहे टटका होखे चाहे बसिया बस हाथ में रहे के चाहीं । केहू का राजनीतिक समाचारन में रुचि होले, केहू बियाह आ नोकरी के विज्ञापन टकटोरेला। केहू कार्टून आ छापा देखेला त केहू चटक मटक तिजाबी समाचार बाँचेला।
ओ दिने जइसहों हाथ में अखबार ले ले डिब्बा में ढुकलों, हमके देखते डिब्बा के भीड़ एहतरे फाटि गइलि जइसे पछुआ वहते बदरी फाटि जाले हमरा सीट पर बइठते एक जाना अधेड़ सवाल कइलन" भाई साहेब, इची अखबार बाँचि के सुनाई। केवनो नया समाचार त नइखे नू ?" उनुके के समुझावो कि अखबार में कुल्ही नये समाचार छपाला ओमें पुरान समाचार धोरे रहेला! हम हँसि दिहली फेनु ऊ पुछलन-"कहीं लड़ाई ओड़ाई त नइखे नू लागलि ?"
ओइसे अखवार हमरा हाथ में जरूर रहे बाकिर गाड़ी पकड़े का फेर में हमरा एतना एतना धउरे के परल रहे कि हँफला का मारे बोले के हिम्मत ना करति रहे। हम गँव से उनुका और अखबार बढाइ के उनसे छुट्टी लिहल चहलों ताकि ऊ अपना मन मोताबिक अखबार बाँचि लेसु । बाकिर ऊ काहे के ? ऊ अखबार के दोसरा और बढ़ावत कहलन -'अच्छा जाये दोहीं, एगो बाति बताई, हमार सरकार रातो दिन एतना जोर लगवले बा, बाकिर हमरा देश से चोरी-डकैती, खून-खराबा, भ्रष्टाचार दिनो दिन बढ़ते जाता जान5 तानी काहें ?'
हम किछु कहीं तबले बगल में बइठल एक जाना, जे दोसर ओर मुँह कइके चिनियाबदाम तउलवावत रहन, पास में धइल अखबार पर चीनिया बदाम आ नून धड़के तपाक से कहलन - "हम बतावत बानी महराज ई कुल्हि त्रेता का नाव के नू प्रभाव हवे एही से सभकर बेड़ा पार हो रहल बा।"
'सभकर बेड़ा त भगवान पार लगावेलन ई त्रेता के नाव' कइसन बलाइ आ गइलि ?" हम अचरज से पुछलीं। "
"त हम कब कहत बानी कि भगवान बेड़ा पार ना लगावेलन। उनहीं के नू ई कुल्ही महिमा हवे कि आजु गदहो हलुआ खा रहल बाड़न स।"- चिनियाबदाम निकिआवत ऊ कहलन ।
'अब भगवान कहाँ बाड़न भइया? अब त गते गते सभकर विसवास भगवान पर से उठल जात बा ठेकान नइखे कि धरती पर रोजे केतना अधर्म होत बाटे, केतना अत्याचार होत बाटे ? अगर भगवान होइतन त चुपचाप धोरे बइठल रहितन। "- पाछा बइठल एक जाना वृद्ध खड़नी फाँकत कहलन । "
अखबार पर धइल नून के जीभि पर चीखत पहिलका जाना कहल शुरू कइलन - " महराज ! गुस्ताखी माफ करबि भगवान आजुओ बाड़न आ जे जीवे धन उनुके पूजता ओकरा खातिर ऊ कल्पवृक्ष खानी बरिसत बाड़न हैं अन्तर एतने बा कि सभे समय आ स्थान का मोताबिक धर्म आ भगवान का बदलल रूप के पहिचान नइखे पावत।"
"धर्म आ भगवान के बदलल रूप ? एकर माने ?"- बुढ़ऊ पूछलन। 'जी सरकार, धर्म आ भगवान के रूप स्थान आ समय का मोताबिक बदलत रहेला।" ऊ कहलन। "ईहे हमरी भारतीय संस्कृति के पुरान परम्परा हवे हमनी का 'कृष्ण' आ'काली' के पुराना जमाना से शक्तिशाली मानि के पूजत आवडतानी जा। आजु का जुग में ऊहे 'कृष्ण' आ 'काली' 'बिलेक' का रूप में अवतार ले ले बाड़न त ओह 'बिलेक' के हमनी का पूजत नइखों जा, उलुटे ओके तूरे का फेर में परल बानी जा। एसे कल्यान थोरे होखी? जे बिलेक के पूजत बा, ऊ सुखी आ सम्पन्न वा 'विलेक' ओकरा खातिर 'कल्पवृक्ष' बनल बा ।"
उनुकर बाति सुनि के डिब्बा भर के लोग हँसे लागल। चिनियाबदाम निकिया के बोकला फूँकि के उंचिलावत ऊ कहलन-"वाह! एमें हँसे के बाति का बा ? जेवन सही बाति बा कहडतानी अइसहीं हम त्रेता का नाव' का बारे में किछु कहीं त रउरा सभे हँसे लागबि।"
बाति उनकर किछु अटपटाह जरूर लागति रहे बाकिर रहलि जरूर मजेदार। हमनी का आपन हँसी बिलकुले रोकि दिहलों जा आ चिरौरी करत कहलीं जा- "महराज ! रउरा अनेरे अनकुस मानतानी हमनी का रउरा पर नाहीं, अपना नादानी पर हँसत बानी जा। असल में 'त्रेता के नाव' हवे केवन चीजु ? रउरा एह शंका के त मिटाई।"
जब ओह महराज का एह बाति के पूरा-पूरा बिसवास हो गइल कि अब हमरी चल्हाँकी के सिक्का सभ पर पूरा-पूरा जमि गइल बा त चिनियाबदाम के बोकला सभका पर उधियाइ के गरदन मटकावत कहलन-" देखीं सभे, हम ई नखों कहते कि रउरा सभे नास्तिक बानी आ ईश्वर के नइखीं मानत बाकिर एतना हम जरूर कहवि कि रउरा सबै पूरा लकीर के फकीर बानी जेवन पोथी आज से हजार दू हजार बरिस अगते के लिखलि बा ओकरा कहनी के हमनी का जस के तस मानि लेत बानी जा। कहीं, बात सही कहत बानी किना ?"
"ऊ कइसे ? हमके त बुझात नइखे।"- पाछा बइठल बुढ़ऊ बोललन । "देखीं, बात अगर अइसन ना रहित त रउरा सभे का अबले त्रेता का नाव' बुझत में कठिनाई ना होइत जे रोजे रउरा सभे का आपन करामात देखावति वा, ओह त्रेता का नाव' का बारे में रउरा सबै अनजान रहीं, ई कम अचरज के वाति नइखे।"- अब उहाँ के प्रवचन प्रारम्भ हो गइल आ हमार अखबार खाली हो गइल रहे हम ओके उठाइ के अपना झोरा में धइ लिहल चहलीं। बाकिर उहाँ का अवहीं अखबार खातिर सजगाहे रहलीं। उहाँ का प्रवचन रोकि दिहली आ कहलों" अवहाँ अखबार राखीं मति एतना जल्दी का वा? ई गाड़ी में पंखा ससुरा चले के नाम नइखे लेत देई अखबार एही के पंखा बनावल जाउ।"
एह तरे हाथ में आइल अखवार फेनू पंखा का काम में आवे लागल। हमनी के उत्सुकता बढ़ते जाति रहे। हम पुछलीं- " हैं त रउरा त्रेता का नाव' का बारे में नू कहत रहलीं हा "
"हैं, ऊहे त बतावे जात बानी 'त्रेता युग' में अयोध्या में राजा दशरथ कीहां रामचन्द्र जी के जन्म भइल रहे। ई त रउरा सभे जानत नू बानी ?"- ऊ पुछलन।
"हाँ, हाँ, भलाई के नइखे जानत।" सभे एह बात के समर्थन कइल। "त फिर सुनीं सभे"-कहि के उहाँ का दोसरा का सुविधा असुविधा के बिना ध्यान दिहले, गोड़ ऊपर उठाइ के पलहथी मारि के आराम से बइटि गइलों आ कहे लगलों-
"खाली शास्त्रन में पढ़ि पढ़ि के सभे लोग लकीर के फकीर बनल बाटे। अगर थोरहू बूधी आ तर्क के सहारा लिहले होइत सभे त देश के अइसन दुर्गति नाहीं भइलि रहिति। अब ईहे अखबारे के लीहीं न एमें का कुल्ही साचे बाति छपल बाटे ? कतो केवनो दुर्घटना होला दू सौ आदमी मुएलन त दू आदमी मुअल देखावल जाला। छापल बाति के हमहन ब्रह्म वाक्य मानि लेई ले जा जवानी बाति के केवनो कीमत ना राखे लीं सभे हवा में कहल एह कान से सुनलीं ओह कान से उड़ि गइल। एगो वैदिक युग रहे जब कुल्ही बात सुनिए के मानि लिहल जाव। "
देखनीं कि डहरि बदलत जाति बा। एसे बीचे में टोकि के कहलीं- 'महाराज! रउरा जल्दी आपन बाति समुझाई, ना त टीसन निशिचात जात बा सभे उतरि जाई त राउर ई पँवारा कोरवरे रहि जाई, सुनी के ? " "
"एही से त हम चुप रहली। आजु काल्हि के आदिमी त मशीन बनि गइल बा। रोजी रोटी का सिवा दुनिया का केवनो काम से ओह लोगन का केवनो मतलब नइखे रहत। धर्म आ शास्त्र का विवेचना करे के ओ लोगन का मोके कहाँ बा?'' – उनका भाषण के रेकाड चलते रहे तबले गाड़ी खड़ा हो गइल। खिड़िकी में से झाँक के देखलीं त अजीब तमासा रहे। गाड़ी केवनो टीसन पर ना खड़ा रहे। रेलवई का दूनों ओर नाला में पानी खूब लबालब भरल रहे। फइलावाँ पक्की सड़क पर दू ठो रोडवेज के बस खड़ा रहली स। पुलिस के पियादा चारू ओर से हाथ में डंडा ले ले ट्रेन के घेरि ले ले रहलन स गाड़ी के ठहरत कहीं कि ढेर जाना पानी में छपाक से कूदि परलन केहू एने गिरल, केहू ओने गिरल केहू के टॉंग टूटल, केहू के भुभुन फूटल। केहू भागि के ऊखि का खेत में लुकाइल । केहू हाँफत हाँफत पुलिस का चपेट में आ गइल पुछला पर पता चलल कि मजिस्ट्रेट चेकिंग होत बा। डिब्बा में हमनियों का टिकट चेकर आइल सभे अपना अपना बगली में से टिकट निकासि के सहेजे लागल, जइसे टी०सी० नाहीं पाकिटमार डिब्बा में समा गइल होखो ।
सबै देखल उजर धप्प-धप्प खद्दर के कुरता धोती पहिरले, खाझा टोपी लगवले एक जना फस्ट किलास का डिब्बा में से उतरि के एने ओने के तमाशा देखत रहलन। उनुका टिनोपाली वेश-भूषा के देखते सभे उनुका बारे में तरह-तरह के कल्पना करे लागल। केहू उनुके बहुत बड़ लीडर मानल। केहू एम०पी० या एम० एल०ए० जानल केहू गाँधी आश्रम के 'भाईजी' कहल। खैर अपना-अपना सूझ-बूझ का मोताबिक सभे आपन आपन विचार बतावल जब टी०सी० हमनी का डिब्बा में से उतरि के दोसरा डिब्बा का ओर चलल त उहाँ का हमनी का डिब्बा में चढ़ि के पैखाना में दूकि गइली आ भीतर से सिटिकिनी चढ़ा दिहलीं । थोरकी देर में कुल्हो थिरथपना हो गइल आ गाड़ी चलि दिहलसि आ हमनी का डिब्बा में महराज जी आपन भाषण शुरू कइलन "जब रामचन्द्र जी लछुमन आ सीता जी का संगे संगे वन का ओरि चललन त डहरि में गंगाजी के पार करे के परल मलहवा से जेवन बातिचीत भइल तेवन त रउरा सभे जनते बानी, हैं, नइया खातिर जेवन बरदान भगवान रामचन्द्र जो दिहनी ओके शायद रउरा सभे अबहीं ले नइखी जानत।"
"हैं, हैं, ओही के बतावल जाउ।"- हमनी का उत्सुक होके कहलीं जा।
"जब भगवान रामचन्द्रजी मल्लाह के सन्तुष्ट कइ लिहलन त बेचारी नइया पानों में उदास होके उनुका ओरि टुकुर टुकुर तिकवति रहे। भगवान का ओह पर दया आ गइलि। ऊ कहलन - "जा कलयुग में जब रामराज होखी त तोहरो उद्धार हो जाई तू अब पानी में ना रहबू। अब सभकर पानी तू ही बचइबू । अब ले सभ तोहरा छाती पर चढ़त रहल हवे, अब तू ही सभका कपार पर चढ़बू तोहरे से ओह लोगन के बेड़ा पार होखी।"
बेचारी नइया हाथ जोरि के खड़ा हो गइल आ कहे लागलि "महाराज ! हमरा निअर अभागिन करिया कुच कुच सरल काठ के नाव के भला के कपार पर चढ़ाई ?"
"नाव के बाति सुनि के भगवान का हँसी आ गइलि । ऊ कहलन- पागल कहीं के, तू हमरा गोड़ का धूरी के महातम नइखू जानति । पत्थल के चट्टान अगर ओसे मेहरारू हो सकति वा, त का तू करिया से गोर नइखू हो सकति भारी से हल्लुक ना हो सकेलू ? अरे गोर के केवन कहे तू त अइसन उज्जर धप्प धप्प हो जइबू कि डहरी चलत लोग एक क्षण खातिर खड़ा होके तोहार तमाशा देखी।
भगवान के ई बरदान साच भइल। त्रेता के उहे नाव आजु सभका कपार पर चढ़ि के सभसे पुजवावति वाटे आजु ओही के जादू सबका कपार पर चढ़ि के बोलत बा।"
"राउर बुझौवल बुझात नइखे महराज !"- हम कहलीं । ऊ किछु कहहीं जात रहलन तबले एगो पुलिस डिब्बा में ढूकल । ऊ पैखाना के दरवाजा पीटे लागल हमनी का बतलवलीं कि एक जाना अगते से ओमें गइल
बाड़न ।
"हँ, हैं हमनी का उनहीं के त खोजत बानी जा। अबहिए ऊहाँ का फस्ट किलास का डिब्बा में बइठल रहली हा आपन बकसा आ विस्तरा छोड़ि के ना जाने कहँवा गायब हो गइल बाड़न, " पुलिस बतलवलसि ।
"त एमें केवन बाति वा ऊहाँ का जा के फेनु बकसा ले लेहवि । फस्ट किलास के पाखाना गंदा होखी एही से हमनी का डिब्बा में गइल बाड़न।"—हम कहलीं ।
"बाकिर बकसवा में बाटे का? इची हमनियों का देखल चाहत बानी जा।"- पियादा कहलसि आ फेनू केवाड़ी पीटे लागल। बड़ी देर का बाद केवाड़ी खुललि गाड़ी जब अगिला टीसन पर बेलमलि त सिपाही लोग उनुके फस्ट किलास का डिब्बा में ले गइल लाटफारम के सगरे भीड़ डिब्बा का आगा बिदुराइ गइलि। गाड़ी देर ले बेलमि गइलि हमनियों का उतरि के डिब्बा का ओरि गइलीं जा देखलीं जा महाशयजी के हाथ में हथकड़ी परि गइलि रहे। बकसा में गाँजा भरल रहे। हेठा गिरल केवनो चीजुके उठाइ के हमनी के कथावाचक जी कहे लगलन-"देखीं सभे, ई हवे त्रेता के नाव' जेवन अब तक इनिकर बेड़ा बार कइलसि हवे। कपार पर से गिरते इनिके ले डूबलि । "
सभ केहू देखल उनुका हाथ में 'खाझा टोपी' रहलि, जेवन थोरकी देर अगते उनका कपार पर रहुए, बाकिर अउँजाहट में कपार से हेठा गिरि गइल रहे । हमनी के कथावाचक जी अखबार से ओकर धूरि पोंछत रहलन।
'त्रेता के नाव' देखि के सभका हँसी आ गइलि