झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे, ठोक ठोक के बीनी चदरिया ॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया | दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया |
२
दुलहिनी अँगिया काहे ना धोवाई। बालपने की मैली अँगिया, विषय दाग परि जाई ॥ बिन धोये पिय रीझत नाहीं, सेज से देत गिराई । सुमिरन ध्यान कै साबुन करि ले, सत्तनाह दरियाई ॥ दुविधा के बंद खोल बहुरिया, मन के मैल धोवाई। चेत करो तीनो पन बीते, अब तो गवन नगिचाई ॥ द्वार है ठाढ़े, अब काहे पछिताई । कहत कबीर सुनो री बहुरिया, चित अंजन दे आई ॥ चालनहार
३
ㅋ सूतल रहलों में नींद भरि हो, गुरु दिहलहुँ जगाइ ॥ चरन कवल कइ अंजन हो, नयना लिहलहुँ लगाइ । जासे निदियो आवे हो, नाहि मन अलसाइ ॥ गुरू के बचन जिन सागर हो, चलु चलीं जा नहाइ। जनम जनम केरा पपवा हो, छिन डारबि धोआइ ॥ यहि तन के जग दियरा बनवलों, सुत बतिया लगाई। पाँच तत्व के तलवा चुअवलो, ब्रह्म अगिनि जगाई ॥ सुमति गहनवाँ पहिरलों हो, कुमति दिहलों उतारि निर्गुन मँगवा सँवरलों हो, निरभय सेनुरा लाइ ॥ प्रेम के पिआला पिआइ के हो, गुरु देलें बउराइ। बिरहा अगिनि तन तलफइ हो, जिय कछु न सुहाइ ॥
उचकी अटरिया चढ़ि बइठली हो, जहाँ काल न खाइ कहले कबीर विचारि के हो, जम देखि डेराइ ॥
४
की ॥ अपना पिया के में होइबों सोहागिन- अहे सजनी भइया तेजि सइयाँ सँगे लागबि-रे सइयाँ के दुअरिया अनहद बाजा बाजे- अहे सजनी । नाँचे ले सुरति सोहागिन-रे की ॥ गंग जमुन केरा अवघट घटिया हो—अहे सजनी । देहहुँ सतगुरु सुरति क नइया हो—अहे सजनी ॥ जोगिया दरसे देखे - रे जाइब - दास कबीर यह गवलें लगनियाँ हो– अहे सजनी ॥ - सतगुरु अलख लखावल-रे की ॥ की।
सैंया बुलावे मैं जैहों ससुरे, जल्दी से कहरा डोलिया कस रे ॥ नैहर के सब लोग छूटत रे, कहा करूँ अब कछु नहि बस रे बीरन आवो गरे तोरे लागों, फेर मिलब है न जानों बस रे ॥ चालनहार भई मैं अचानक, रहाँ बाबुल नगरी सुबस रे । सात सहेली ता पैं अकेली संग नहीं कोउ एक न दस रे ॥ गवना चला तुराव लगो हे, जो कोउ रौवे वाको न हँस रे । कहै कबीर सुनो भाई साधो, सैंया के महल में बसहु सुजस रे ॥
६
मन ना रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा। आसन मारि मन्दिर में बैठे नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा ॥ कनवा फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा । जंगल जाइ जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैले हिजरा ॥ मथवा मुड़ाय जोगी कपरा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा । कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, जम दरवजवा बांधल जेब पकरा ॥ ७
मन भावेला भगति मिलिनिए के।
पांड़े ओझा सुकुल तिवारी, घंटा बाजे डोमिनिए के ॥
गंगा के जल में सभे नहाला, पूत तरे जोलहिनिए के ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो अइले बिमान गनिकवे के ॥
उड़ि भैया गइले हंसा यह मोरे-देसवा, यह जग कोई नाहीं आपन । कंकड़ चुनि चुनि महल उठाया, पत्थर कइ दरवाजा। ना घर मेरा, ना घर तेरा, चिरिया रैन बसेरा ॥ बाप रोवले पूत सपूता भइया रोवे चउमासा । छिटकवले उनकर तिरिया जे परि गइले पराया जिय आसा । कहत कबीर सुनो भाई साधो यह पद हव निरवानी ॥ जे यह पद के अरथ लगइहें, उहे गुरू महाज्ञानी ॥ लट रोवे ॥
९
कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो । चंदन काठ के बनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो । उठो री सखी मोरी माँग सँवारहुँ, दुलहा मोसे रूसल हो। आये जमराज पलंग चढ़ि बैठे, नैनन आँसू टूटल हो । चारि जने मिलि खाट उठाइनि, चहुँ दिसि धू-धू ऊठल हो। कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता छूटल हो ।
१०
अचरज हम नैया नीचे नदिया डूबी ए नाथ जी, अब नइया में नदिया डूबी ॥ एक अचरज हम आउर देखली, कुँइया में लागल बाड़ी आगि । पानिया भरिजरि कोइला हो गइल. अब सिधरी बुझावsताड़ी आगि ॥ एक आउर देखली, बानर दुहे धेनु गाइ। अजी दुधवा दुहि दुहि अपने खइले, घीउवाँ बनारस जाइ ॥ नैया० ॥ अजी एक अचरज हम अउरी देखलों, चिउटी ससुरवा जाइ । अब लाइ, ए नाथ जी ॥ नैया० ॥ अरे हाथी मारि बगल धइ दबली, अउर उँटवा के दिहली लटकाइ । अजी एक चिउटी का मरले, नव सौ गीध अघाय ॥ नैया० ॥ कुछ खइले कुछ भुँइया गिरवले, कुछ मुहँवा में लपटाइ । कहले कबीर बचन के फेरा, ओरिया के पानी बड़ेरिया जाइ ॥