जोंक
नोहर राउत मुखिया
बुझावन महतो किसान
: जिमदार के पटवारी
सिरतन लाल
हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करजा काढ़ि काढ़ि खेती कइलों, खेत सूखल धान बैल बेंचि जिमदरवा के देनी सहुआ कहे बेईमान हे फिकिरिया मरलस जान
( बुझावन महतो एगो फाटल महल धोती पहिरले खड़ा बाड़े एह घरी नोहर रात के आँख बुझावन महतो के फिल्ली पर पड़ल, ऊ झट से फिल्ली से कौनो चीजु नोच के बुझावन से कहले)
नोहर हई देख बुझावन महतो।
बुझावन - ( धथमि के) नोहर भाई! फेंक5 होने, फेंकवी करब..... पंजरा जनि ले आवs का दू करिया करिया हिलsता। हमरा
नोहर — तोहरे फिल्ली में से निकलनी हाँ, देखऽ नु हई गोड़। लोहू-लोहान भइल या ना जानी केतना बेरि से लागल रहल हा।
बुझावन - ( खून से समुच्चा फिल्ली के भोजल देखि के) जोंक लागल रहल हो, नोहर भाई हमार माथा घूमता (बइटि गइले ।)
नोहर - ( वटि के घाव के मुँह अंगुरी से दाब के) भैइसवा जोंक ह बुझावन आपन मतलब के चुकल बा। हो देखऽ नु अउटा कइसन मोट बा
बुझावन ओकरा और देखे के मन नइखे करत पाव भर खून पियले होई नोहर भाई ?
नोहरना, पाव भर ना पाव भर बहुत होला, मुदा कनवा छटाँक से का कम होई। केतना त खून बह गइल हा तोहरा मालूम ना भइल ह बुझावन ?
बुझावन जोकि के लागल ना तु मालुम होखे। हम पोखरा में भइसिया के धोवली हाँ, मिगडाह नु तपल बा, रोहिनी के पानी बरिमि गइल बा. सं. पोखरवा में नयका पानी बहुत वा, पानी में ना जाने कहाँ से छँटी के छेटी जांक ऊपर भइल बाड़न सन
नोहर - तोहरा तनिको ना बुझाइल हा ?
बुझावन-ना नोहर भाई हम अपना अँइसिया के ढोढ़ी से चारिगो जोंक निकारि के बिगले रहली हैं, बाकी हमरा ई ना पता रहल है कि हमरो जोक लागल बा।
बुझावन - साचे नोहर भाई। नाहीं त हमार भइसिया त सरि के मुई गइल रहित, रोजे ओकरा देहि से चार गो पाँच गो बीगीले भगवान एहनी के काहे के बनौले !
नोहर- हमनी के देहि में जम्मा पूँजी नव सेर खून बतावल जाला। बुझावनत एक्के कनवा निकरला से कपार में घुमरी काहे आवेले नोहर भाई ?
नोहर—घुमरिये के पूछत बाड़s बेसी खून गिरि गइला पर अदिमों मरि जाला। गोड़ के मोटकी नस काटि द, जो खून ना बन्न होई, त आदिमी मर जाई । दुई मन के समुच्चा देहि में उहें नौ सेर खून फइलल बा ।
बुझावन- छोड़ द नोहर भाई अब बन्न हो गइल होई। नोहर [हाथ हटा के] हैं खून बन्न हो गइल। -
बुझावन -[उठि के जोंक पर हुमचि हुमचि क पाँच-छ ऐड़ी मार के] नोहर भाई! देखा केतना खून बहता ई जोंकिया सुटुकि के पातर हो गइल, बाकी मुअल ना।
नोहर जोकि के जिउ बड़ा कठकरेजी होला बुझावन! ऊ जल्दी ना नु मूर्वं । बुझावन हैं नोहर भाई लोग त कहेला कि सुखा के पीस के फेंक दीहल जाय, तबहूँ बरखा के पानी बरसते जोंक फेनु जो जाले । -
नोहर - ई हमरा नइखे मालूम, बाकी जोंकि बड़ कठकरेजी होले, ई देखतै बाड़s |
[गाँव के पटवारी सिर पर लाल टोपी-मिरजई पहिरले, कान में कलम खोंसले अइलें ।]
बुझावन- -सलाम देवान जी कहाँ घूमतानी ?
सिरतन लाल - मालिक के दू मन घिउ पाँच मन दही, दू गाड़ी कटहर केतना कुली दे के अबगे बिदा कइनी हाँ, तीन दिन से परसान परसान रहनी हाँ बुझावन महतो! आज इहै जाके साँस लेहनी हाँ।
बुझावन देवान जी ई पंच-पंच मन दही, दू-दू गाड़ी कटहर, एगो खस्सी हमहू देहनी हाँ, फेनू सुनतानी गाँव से बारह गो खस्सी अउर गइल हा, मालिक के छगो परानी ई कुलि लेके का करिहैं ?
सिरतन- तु नोनिये भुचेंग रहि गइला ! बड़का लोग के अपने देह ले नानु होखे, एक आदमी के पाछे पचास गो जियेला... ताँनों में ई त बबुई जी के बियाह के सरजाम तु हवे!
बुझावन – एगो बरात के सरजाम त हमरे गाँव से गइल हा, फेनु हमनी के मालिक के छप्पन गौ मौजा वाटे. ई कुल्ह रखहू के जगह त ना होई!
नोहर - हाँ जब गाँव भर के घर खाली करा दोहल जाय त छप्पन मौजा का छ से मौजा के चीज बतुस राखल जा सकैले ।
सिरतन — बुझावन महतो ! अबको चला नु तूहीं, का केहू सर्वांग के भेजबा मरदे! उहाँ दुसै ले त नोनियँ जुटिहें। -
नोहर- बाबू के घर बरात आई आ ई दुसै नोनिया जुटि के का करिहैं ?
सिरतन- फरुहा कुदार के बहुत काम रहला नोहर! बबुआजी के बियाह भइल रहल त गइल ना रहलऽ ?
नोहर ना देवान जी ! सुन ले खाये बिना गति बनि जाले, एही से ना जाई । सिरतन खाये के तकलीफ ना होले, हमरा त नइखे भइल। - -
बुझावन अपने के का होई, अपने के त बहनोइये बाड़े दरबार में... । बाकी देवान जो एक ओर से लूट लागल बा आदिमी बर बेगारी में अपना कपारे चीज बतुस लादि के दस कोस पहुँचावे जाला। मर-मजूरी त का मिली, अपना घर से सतुआ बान्हि के जाईले, इहो ना होला कि हमनी के जुरतै छुट्टी मिल जाओ। चारि दिन चिट्टियै पुरजां देवे में लगा देलें।
सिरतन एमें सरकार के कौनो दोस नइखे बुझावन महतो! दरबार में अइसहीं चलेला एगो सरकार के पाछे हजार गो आदिमी जीयेलें । बड़का के इह तु ह !
नोहर-आठ आना रुपया महीना जब तनखाह दिआई, त आदिमी का करी देवान जी ! ई त मालिक के नु सोचे के चाहीं कि रुपया आठि आना महिन्ना में हरवाही चरवाहो आजकल के दिन में ना मिली।
बुझावन-तीन हेनुआ सेर त मडुआ वा नोहर भाई आ देबुआ सेर महुआ।
नोहर मडुओ-महुआ से गुजारा करे ता खाली खाराको में एक आदमी का डेढ़ रुपया महिन्ना लग जाई, आपन कपड़ा लत्ता आ मेहरारू लडका के त बातै फरका मालिक ई नइखे देखत ?
नोहर मुदा देवान जी अपने महरौली के बारह टोला के राजा बनि के बैटल बानी छह हजार के तहसील में रुपया पीछे दू पैसा केतना होला ?
बुझावन आ खाये पीये में एको पइसा खरच ना होये का? घर-भर के काम एही से चलैला ?
सिरतन- - अब का आमदनी वा बुझावन महतो हमरा बाबूजी के बखत देखतs, एही महरौली में सोना बरसत रहल।
नोहर महरौली में सोना अवहियो बरसता देवान जी बाकी हमनी खातिर ना, पाँच हजार के तहसील अब छह हजार हो गइल, दू-दू पुहुत के जोतलि खेत मालिक निकासि के जिराति बना लेहले, दूसै बिगहा जिरात कवहों रहल हा देवान जी ! ई हमनी का मुँह लगावल हनु ?
बुझावन -आ सुनऽतानी मोटरवाला हरनु आवडता, जौनो गाँव के हरवाहा दू महिन्ना जीअत रहते हैं, उहो बन्न भइल, ओकनी के मुँह के अन्न छूटल ! -
सिरतन-बकास के झगड़ा जिला जवार में ना उठल होइत, तना नु निकलते ? सरकार के एमें कौनो कसूर नइखे ।
नोहर-ए देवान जी ! देखत देखत आँख पाकि गइल जान पड़ता कि महरौली में जेकर जनम-करम बा, जेकरा हजार पुहुत के हाड़ इहाँ गलि गइल. से किछुओ ना, आ दस कोस लमहरा ई अमहरा के बाबू साहेब महरौली के सब कुछ बाड़ें!
सिरतन-नोहर राउत! तोहार सिकायत कई बेर हमरा कचहरी में चहुँपल ह, मोहित राउत के खियाल आवडता नाहीं त जानत नु बाड़s जिमदारी फन्ना !
नोहर-देवान जी बाबू के खियाल मति करीं, जिनगी भर एगो भँइसि के उठाना बेपइसे के लगौले रहले, आ ओही से नु अपने के छोह बनल रहल हा
सिरतन मालिक के जमीन में बसल बाड़s, उनकरा निगाह में जीअत- खात बाड़s सेतिहे ना नु दही-दूध देलs ? -
नोहर-ए देवान जी, बघउछ बाबा के चौरा अबहिन ले हमरा इहाँ हर साले पुजाला महरौली कुल्ह जंगल रहे, जब हमनी के पुरुखा अइले हमार बुझावन आ
अंडर लीग के पुरुखा जंगल काट के खेत बारी बनौले बघउछ बाबा लेले कतना सांग के बाघ मुअवलस, घर के कतना बच्चा के हुँड़ार उठा ले गइल ।
नोहर आ खेत बनावे में केतना आदिमी साँप के कटला से मू गइले, तब मू महराली गाँव बसल, जब महरौली में सोना बरिसे लागल, तब ओही सोना के लूटे खातिर अमहरा के बाबू चहुँपले अमहरा के बाबू के एको बुन्न पसीनो नइखे चुअल महरौली में।
सिरतन—विधि- - बरम्हा के रेख पर मेख मारल तोहरा हाथ में नइखे नोहर! तोहार अमहरा के गढ़ में नइखे जनम भइल नाहीं त तूहूँ दू लाख के तसील पर asons, मजिस्टर साहेब तोहरों के कुरसी दोते। आपन हसियत देख5 |
नोहर-ए देवान जी ई हमरा कहला के जवाब ना भइल। हमनी के जनम महरौली में भइल वा । हम त इहे जानीले कि मतारी के धने में दूध पहिले आवेला, तब लड़का जनम लेला। हमनी के जनम जब महरौली में भइल बा, तब महरौली हमनी के जीये खाये खातिर हवे ।
नोहर- बाबू साहेब के पतरी होई त अमहरा में होई, महरौली में ना देवान साहेब! महरौली ओही के हवे जेकर पुरुखा जंगल काटि के बाघ हुँड़ार मारि के एक अवाद कइले महरौली में सोना बरसsता - ओही हाथन के परताप से, जौनन में दस-दस गो ठेला पड़ल था।
सिरतन — तोहरा अकिल से सोचें के होई, तब नु ? मुदा अन्हरा के आगे राव आपन दीदा खावें। गँवार के बुधिए केतना ? नोहर लूट के बुधि नु नइखे खून चूसे के बुद्धि नइखे, बाकी माटी के 1
सांना इहे हथवा बनावेला देवान जी छह हजार मालगुजारी द, तीन हजार बबुनी के विवाह में द, दु हजार मोटर के चिट्ठा में द, पाँच से हाथी के चिट्ठा में द सालभर बेगारी करत करत मृअ हेई मालिक के सवारी आइल, हेई पटवारी, हेई सवार, हेई सिपाही पियादा, हेई गोराइत बराहिल दुत् तोरी के ! कमाई हमनी के, आ हरियो ना होवे पाई, जही आवत सही कुपुटी के खा लेता।
सिरतन- - घास जंतने कटाले नोचाले औतने फुनगी फेंकेले नोहर! तोहरा लोगन के एतना ना देव के पड़ित त इतना कमइवो ना करतऽ ।
नोहर - कमाकमा के मुवहीं भर काम हमनी का ह आ हमनी के कमाई में आगि लगावे वाला उहाँ अमहरा में केहू बइठल बा बबुआ के बरात गइल
रहल त के हजार आदिमी गइल रहले ? पाँच हजार त अतिशबाजी में उड़ावल गइल। बनारस, लखनऊ आ कलकत्ता तक के दस गो नामी नामी तवायफ गइल रहली, ई केकरा कमाई से देवान जी ?
सिरतन अपना भाग से नोहर राउत! कमायेवाला कमाला, भाग वाला खाला! "करम प्रधान विस्व करि राखा जे जस करे से तस फल चाखा" बाबू साहेब ओह जनम में करम कइले बाड़े। "तप चकि राज" भइल बा तू ओह जनम के पापी हवऽ, उहे भांगत बाड़। केहूका हिरिस कइला से ना किछओ होला ।
नोहरत हमनी जे ई घाम में खेतो कोड़त जोतत मुईले, बरखा में दिन भर भीजोंले, धान रोपीले, बास सोहीले, जाड़ा-पाला में कठुआते खेत में सती होईलेई करम किछुओ नइखे ?
बुझावन - हमरा सोझवा अदिमी के बुधि में त इहे आवत वा कि भगवान जेकरा के जौना गाँव में जनम दिहले, भगवान का ओर से ऊ गाँव ओकरे लिखा गडल • बाकी कागज पत्तर के बात से भगवान का ओर से नइखे लिखा के आइल । महरौली के कचहरी से छपरा के कचहरी ले देखले नु बानी, कइसन कागज में ईमानदारी राखल जाले ।
नोहर- बुझावन! जे धरती माता के पाछे आपन खून पसीना एक करेला, उहे ईमानदारी के अन्न खाला नाहीं त ई जिमदार बड़का जोंक हवे बाप रे बाप! हमनी के देहि में इचको रकत ना रहि गइल, हाड़ो चाम एक जगह राखल मुसकिल बाटे, आ ओने गुलछर्रा उड़ता।