अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जपीला, सुनि अस्थूल, दोइ वाणी । प्यंड ब्रह्मांड समि तुलि व्यापीले, एक अपिरी हम गुरमुषि जाणी ॥ २ ॥ द्वै अपिरी दोइ पर उधारीला निराकार जाएं जपियां । जे जाप सकल सिष्टि उतपनां, तेजाप श्री गोरपनाथ कथियां ॥ ३ ॥
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पवनां रे तू जासी कौन बाटी। जोगी अजपा जपै त्रिवेणी कै घाटी ॥ टेक ॥ चंदा गोटा टीका करिलै, सूरा करिलै पाटी। गूंनी राजा लूगा धौवै, गंग जमुन की घाटी ॥ १ ॥ अर उर लाइलै कूँची, थिर होवै मन तहाँ थाकीले पवनां । दसवां द्वार चीन्हिले, छूटै आवा गवनां ॥ २ ॥ भणत गोरषनाथ मछिद्र ना पूता, जाति हमारी तेली। पीड़ी गोटा काढ़ि लीया, पवन पलि दीयां ठैली ॥ ३ ॥
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गुर कीजै गहिला निगुरा न रहिला | गुर बिन ग्यान न पायला रै भाईला ॥ टेक ॥ दूर्धं धोया कोईला उजला न होईला। कागा कंठै पहुप माल हंसला न भैला ॥ १ ॥ अभाजै सी रोटली कागा जाईला। पूछौ म्हारा गुरु नै कहाँ सिषाईला ॥ २ ॥ उतर दिस आविला पछिम दिस जाईला, पूछौ म्हारा सतगुरु नै, तिहाँ बैसि पाइला ॥ ३ ॥
पुरइन पात
चीटी केरा नेत्र मैं गजयेंद्र समाईला गावडी के मुप में बाघला बिवाईला ॥ ४ ॥ चाहें बरसें चंझ ब्याई, हाथ पाव टूटा। बदंत गोरखनाथ मछिद्र ना