shabd-logo

पकड़ी के पेड़

7 November 2023

0 देखल गइल 0

हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल

बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के

छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान

रहल। बड़ा भारी पेड़ नरम-नरम छाल वाला पतवन गहबह ओकरे नीचे खड़ा

होके ऊपर देखले पर आसमान नाहीं देखाई पड़े। मोट मोट बाँहि वाला चिरइन

आ वटोहिन के छाँह देवे वाला। गर्मिन में गाँव के लोग ओकरे छाँह बइठि के

सुरती मलें, बोलें- बतियावें अपने घर-गिरहस्ती के काम करें। पेड़ नाही हऊ,

हमरे गाँव के पहिचान है। दूरे से लोग बतावेलें, ऊ जवन पकड़ी के पेड़ लउकत

वा, ऊहे गाँव ह भेड़िहारी। हमनी के आँखि एतना आदी हो गइल बा कि लमही

से ओह पेड़ के देखि के मन निश्चिन्त हो जाला कि अपने गाँवे पहुँचि गइलीं ।

बचपन में जब हम बाहर से आई आ अगली बगली ऊँखी के खेतन के बीच संझा

के समय मन डर से धुकपुकाये लगे त दूर से ए पाकड़ के देखि के वइसहीं बल

मालूम होखे जइसे तकलीफ में कुछ लोगन के हनुमान चालिसा पढ़ले पर मालूम

होला। एह पाकड़ के डारिन पर चिरई चीं-चीं, काँव-काँव करें, लड़े-झगड़ें,

बानर उछलें कूदें। ई सगरो गाँव के एयरकंडीशन बइठका रहे लोग गरमी के

दुपहरिया एही तरे काटें। एही के सोरी पर हमार बाबा बइठत रहें आ बाबूजी

एहिजा वइटि के मजूरन के मजूरी के हिसाब-किताब करें। एहिजा हमार खरिहान

रहल आ एहिजा आधा गाँव के देवरी होखे। राति राति भर विदेसिया नाच होखे

एही के तरे। लरिकाई में कई बेर चमारन आ कहारन के नाच हम एहिजा देखलों ।

बिरहा - फरउदी सुनलीं। बटोहिया आ विदापति, राजा भरथरी आ रानी पिंगला के

गीत एहिजा सुनलीं एकरे नीचे एगो अखाड़ा रहल जवना में गाँवे के रेखियाउठान

लोग कुस्ती लड़े। हमहूँ लड़ले बानी एह अखाड़ा में नागपंचमी के दिने लड़के

चिक्का कबड्डी एहिजा खेलत रहें। राति में जब डाकुन के हल्ला होखे त गाँव के

लोग एहिजा जुटत रहें। गाँव भर के बराति एहिजा टिके। हमके लगता कि ऊ

गाँव अभागा होले जहवाँ अइसन पेड़ नाहीं होले बिना बारे के कपार जइसन आ

बिना समधी के बराति जइसन ।

एही पेड़े के छोह हम देखले बाड़ी गरीबी, अंधविश्वास, सड़ल-गलल, धूरि गर्दा में सनल गाँव के मन अपने में लड़त-गड़त, सिर फुटडवल करत, मेहरारुन के झोटा-झोंटडवल करत, हाथ चमका चमका के एक-दूसरे के गरियावत जादू टोना, भूत उतारत आ पंचाइत में फरिओता करत पुलिस वाले एही पेड़ के नीचे गाँव के अदिमिन के बइटा के पिटाई करें, रुपया वसूलें। पटवारिन के बस्ता एही के नीचे खुले आ बन्द होखे लगान वसूली में गाँव के लोग एहिजा बइठावल जा ई पाकड़ के पेड़ हमरे गाँव के लमहर सुख-दुख के इतिहास के गवाह है इ अपने आँखो से देखले बा हमरे गाँव के बिदाई आ बिछोह गवना में लड़किनि के डोली एही के नीचे रुकति रहे- 'तनि एख डोलिया बिलमाउ रे कहरवा' हमरे माई के आखिरी जात्रा के डोली एही के नीचे रुकलि रहल -" अंगना हो परवत भयो, देहरी भयो विदेश ले बाबुल घर आपनो, मैं तो चली पिया के देश बाबुल मोरा नैहर छुटो जाय...

पकड़ी के पेड़

एह गाँव में हमरे बाबा के बाबा आइल रहलन अपने एकलौते बेटा आ मेहरारू के साथे । ई कोई सवा सौ बरिस पहिले के बात होई। ओकरे पहिले हमार पूर्वज कहाँ-कहाँ, केतना केतना दिन रहलें, एकर हिसाब हमरे लगे ना बा हम त एहिजा जनमलों आ एही के जानत बानी एही गाँव के माटी, पानी, धूप, हवा में बनल बानी हम |

गोरखपुर शहर के उत्तर पूरब कोन पर पैसठ किलोमीटर के दूरी पर बसल ई गाँव ह 'भेड़िहारी' जवने के कागज में नाम ह 'रायपुर भैंसही' एकरे उत्तर में नेपाल के सीमा ह, पूरब में बिहार के आ पच्छिम में गोरखपुर जिला (अब महाराजगंज जिला) के अपने एही भूगोल के चलते ई गाँव के कई बेर जिला बदल होत रहल बा। आजादी के पहिले ई गाँव गोरखपुर जिला में रहल, उन्नीस सौ अड़तालीस में देवरिया जिले में चलि गइल और उन्नीस सौ चौरानबे में कुशीनगर जिला में।

जइसे जोगी लोग 'पिण्ड में ब्रह्माण्ड के दरसन के लेलें ओइसहीं एह गाँव में पूरा देश के दरसन कइल जा सकेला जवन सच्चाई हम इहाँ देखलों ऊहे पूरे देश के सच्चाई है। ओसे खराबो कुछु नाहीं आ ओसे अच्छो कुछु नाहीं । घर- परिवार के झगड़ा, खेत मेंड़ के रगड़ा, मार-पीट, भूख-बेमारी, शोषण अत्याचार, प्रेम-लगाव, परब-तिउहार, जादू-टोना, ढोंग-पाखण्ड, सुन्दर कुरूप — सब कुछ।

हमरे गाँव के एक किलोमीटर पच्छिम एक नदी बहेले जेके गाँव वाले 'नही' कहेलें। बड़हन भइले पर हमके मालूम भइल कि ई छोटी गंडक नदी ह एमें बारहों महीना पानी रहेला हमरे बचपन में ई नदी बरसात में बिकराल रूप ले ले आ आस-पास के गाँवन में तबाही मचा दे ई नदी हमरे गाँव के महतारियो रहे आ डाइनियो। बिना एह नदी के पार कइले हमार गाँव बाकी दुनिया से जुड़ि ना सकेला। हम रोज एह नदी के नाव से पार करके पढ़े जात रहलीं कई बेर हमार नाव धार में बहलि रहे। भँवर में फँसलि रहे। भगवाने बचवलें आज सोचला पर अचरज होता कि कइसे तब डेंगी नाव पर खड़ा होके एह नदी के पार करों जबकि पारे के वित्तासी भरि आजु तक नाहीं जनलीं। नदी के किनारे बसले के कारन हमरे गाँव में एक चउथाई मलाह बाड़ें रोज सबेरे कान्हें पर जालि आ हाथ में झोरो लेहले नदी के ओर जात आ साँझ के जालि में मछरी फँसवले लवटल मलाहन के चित्र हमरे मन में आजुओं ओइसहीं ताजा बा। शति भर नदी किनारे निचाट में रहे वाले मलाहने से हम बचपन में भूत-प्रेत आ बहुअन के कहानी सुनले रहली।

हमरे गाँव में एक चउधाई मुसलमान बाड़ें। जब तक हम शहर नाहीं आइल रहल आ अखवारन से भेंट मुलाकात नाहीं भइल रहे तब तक हम हिन्दू-मुसलमान में कौनो फरक नाहीं समुझत रहलीं। एक्के बोली एक्के पहिरावा, एक्के खान-पान आ दूनो के जिनगी के समस्या एक्के छोट मोट फरक जरूर रहे। पर तब हमके ऊ देखाई ना दे। हमरे इहाँ मुसलमानन के सबसे बड़का तिउहार रहे मुहर्रम, जौना में हिन्दुओं ओतने जोश से भाग लें। हिन्दुओ अपने घरन में तजिया रखें आ ओकर मनौती मानें हिन्दू-मुसलमान दूनो लड़के 'थकरी' खेलें आ ई नाच-गान आधी-आधी राति ले चले। हमहूँ एमें शामिल रहीं। जहिया तजिया निकले ओह दिन नदी किनारे मेला लागे। एह दिन के हमन के साल भरि अगोरत रहीं केतना खुशी के दिन रहे ऊ! अब त एतना खुशी कौनो दिने ना होला । न एतना बेचैन होके कौनो एक दिन के अगोराई होला। जौने दिने भोर में तजिया निकले ओकरे पहिले वाली राति हम दियासलाई, मोमबत्ती, फुलझड़ी आ पटाखा अपने खटिया पर सिरान्हे रखि के सूर्ती, कि मोर में एके खोजे के न पड़े। गाँव के सब तजिया हमरे दुआरे पर रखल जा जइसही तजिया दुआरे पर आवे हमार बाबा आ बाबूजी अपने-अपने खटिया से नीचे उतरी के जमीनी पर वइठि जाँ चाहे खड़ा हो जाँ हमरे घर के मेहरारुओ घर के दुआरे के केवाड़ी से झाँकि झाँकि के तजिया के हाथ जोरें। हम भाई- बहिन फुलझड़ी छोड़े, पटाखा फोड़े आ तजिया के घउमरी लगावें। हम त लामे- लामे दुसरे गाँवन ले पायकन (तजिया के चारों ओर घूमे वाले रखवार) के साथ तजिया देखे जाई अब ई सब एक सपना बुझाता। समय बदल गइल। आजादी के बाद के राजनीति हिन्दू-मुसलमान के बीच खाई खोदि देहलसि शहर गाँव में पहुँचि गइल। दु सम्प्रदाय बनि गइलें अरब के पइसा से गाँव-गाँव सहजिदि बनि गइल मुसलमान लड़कन खातिर अलगे मदरसा खुली गइल। गाँव-गाँव मुल्ला मौलवी पहुँच गइलें एह बदलाव के जिम्मेदार हमरे देश के नेता लोग हवन जेके एही में फायदा था। उनके कुरसी एही बँटवारा से बचल रही एह घिनौना काम में सब दल के नेता लोग लागल बा हमरे गाँव में ई आजादी के बादि के सबसे बड़हन आ सबसे खराब बदलाव भइल बा। 

गरीबी, निरक्षरता आ उपेक्षा के अन्हरिया में डूबल बा हमार गाँव । इहाँ जाड़ा में अब्बो कुछ लोग नंगे रहेलें। कपड़ा नाहीं, विस्तरा नाहीं, ओढ़ना नाहीं । दवाई के पइसा नाहीं खाये के भरिपेट खाना नाहीं । केहू के पुलिस फँसले बा. केहू कर्जा से दबाइल बा, केहू के लेखपाल चक्कर में डरले बाने। केहू के भाई से झगड़ा बा, केहू के बापे से केहू के अपने मेहरारू से इहाँ के समस्या गनले मान के नाहीं बा। थाना पन्द्रह किलोमीटर पर वा तहसील २५ किलोमीटर पर बाजार ८ किलोमीटर पर टेलीफून, पोस्ट आफिस कौनो सुविधा नाहीं । सड़कियो कच्चा । लड़िका-लड़की के स्कूल भेजे त का पहिनाके ? घरे त नंगहूँ रहि लोहें। आ स्कूल जाये लगिहें त पेट पर्दा कइसे चलो ? ई एक दूसरे दुनिया बा परती जमीन जरूर टूटल पर मन में परती ओइसहीं वा । ऊहे रूढि अंधविश्वास आ सड़ल-गलल दिमाग । समय बदलला के साथ कुछ बदलाव जरूर भइल बा। कुछु नहर, पुल, पुलिया आ सड़कियो बनि गइल बा, कुछ घरन में खाये पिये के भी हो गइल बा । कुछ लड़िका-लड़की स्कूलो जाए लागल बाड़े, लेकिन एह बदलाव के रफ्तार बहुत मद्धिम बा। एह गति से त अबहिन सैकड़न बरिस लगि जाई तब ले दुनिया न जाने कहाँ पहुँचि जाई। हमरे देश के नेता गाँधी महतमा गाँवन के उद्धार के सपना देखत रहलन। ऊ गाँव के स्वतंत्र आ आत्मनिर्भर बनावेके चाहत रहलन। ऊ चाहत रहलन कि गाँव में राजकाज पहुँचि जाय। गाँव सब तरह से अपने गोड़े पर खड़ा हो जाय। लेकिन गांधी महात्मा के सपना पूरा न भइल। गांधीजी के अंतिम आदमी आजुओ गाँव के आजादी के बाट जोहड़ता।

जब हम पढ़त रहलीं त ईहे सोचीं कि पढ़ि-लिख के गँडवे में बसब आ गाँव के आदर्श गाँव बनाइब विद्यार्थी जीवन में कुछ दिन हम राजनीतिक नेता लोगन के साथ रहल आ अपने गाँव खातिर कई योजना बनवलीं, एक-दू ठो कइलीं भी। लेकिन अंत में हमहूँ अपने गाँवे के साथ धोखा कइलीं जइसे सब लोग करेला नोकरी खातिर जब शहर अइलीं त शहर हमहूँ के घोंट लेहलसि । लिखला पढ़ला में लगि गइली आ गाँव छूटि गइल। छूटि त गइल लेकिन भुलाइल नाहीं । अजुओ जब हम सपना देखीला त ओमे खेत खलिहान, बगीचा, पेड़- पालो, जानवर, चिरई -चुरुंग रहेला जाने के बचपन में देखले रहलो दुपहरिया में तपत सिवान, जाड़ा में कउड़ा के घेरि के बइठल लोग, सावन-भादो के टिप टिप, लइकन के बहत नाक, बूढ़न के झुकल करिआँव, लड़किन के डेराइल - डेराइल आँखि, सुनगत चूल्हा, ऊपर धुंआ....। केतना केतना गिनाई। हमरे जिनगी में जवन कुछु बाटे ऊ सब हमरे गाँवे से मिलल बा। अगर हमार गाँव निकालि दोहल जा त हमरे भीतर कुछ ना रहि जाई । 

हम जवन कुछ अच्छा खराब लिखले बानी ओहू में से गाँव के निकालि दोहल जा त ओहू में कुछु नाहीं रहि जाई। हमार माई जवन किस्सा-कहानी सुनावे आ हमके खेलावे वाले गाँव के लोगो जवन कुछ सुनावें ओमे करुणा बहुत रहल। सुनिसुनि के हमन के रोवे लागों ऊ लगाव अब बहुत कम हो गइल बा । लेकिन जबले तनिको रही तवले हमरे भीतर गाँवो रही। अब त गँउओ के मन बदलत जाता, तब्बो शहर से त ठीके वा मुनाफा कमइले के एतना हबिस अबहिन गाँव के मन में नाहीं घुसल बा गाँव में अबहिन आदमिन से, पशु-पच्छी से, पेड़- पालो से लगावो बचल बा ई बचल रही त हमरे गाँवे के साथ हमरे देश के संस्कृतियो बचल रहि जाई। गांधीजी पच्छिम के मशीन के सभ्यता के शैतानी सभ्यता कहत रहलन ऊ शैतान हमरे देश के शहरन के घोटि गइल बा अब गाँवनो के लीले के तइयार बा भगवान हमरे गाँव के रच्छा करें।

जब हम बहुत छोट रहल आ उत्तर के आसमान में जब बिजुरी चमके त हमार माई कहे कि ई पहाड़ पर मिरगा लोग चरत बा आ ओही लोगन के आँखि चमकत बा। अजुओ जब उत्तर के असमान में बिजुरी चमकेले त हमरे भीतर पाँखि जागि जाला आ हम उड़िके घुसि जन्तीं वो क्षितिज के भीतर जहाँ एक नही बा, कुछ खेत, कुछु हरियरी, कुछ पेड़, कुछु बाँसन के कोठि कुछु मरद मेहरारून के चेहरा वा जहाँ हम जनमल रहल आ जौने के लोग हमार गाँव कहेला।

35
लेख
पुरइन-पात
0.0
भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
1

स्वस्ती श्री

4 November 2023
1
0
0

भोजपुरी क्षेत्र की यह विशेषता है कि वह क्षेत्रीयता या संकीर्णता के दायरे में बँध कर कभी नहीं देखता, वह मनुष्य, समाज और देश को पहले देखता है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में भोजपुरी भाषी लोगों का अ

2

कविता-खण्ड गोरखनाथ

4 November 2023
0
0
0

अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जप

3

भरथरी - बारहमासा

4 November 2023
0
0
0

चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥ भादो रयनि भयावनि हो, ग

4

कबीरदास

4 November 2023
1
0
0

झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे

5

धरमदास

4 November 2023
0
0
0

सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

6

पलटू साहेब

4 November 2023
0
0
0

कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

7

लक्ष्मी सखी

4 November 2023
0
0
0

चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

8

बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
1
0
0

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

9

हीरा डोम

4 November 2023
0
0
0

हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

10

महेन्दर मिसिर

4 November 2023
0
0
0

एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

11

मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
0
0
0

दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

12

कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

6 November 2023
0
0
0

भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

13

महुआबारी में बहार

6 November 2023
0
0
0

असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

14

राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
0
0
0

गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

15

सपना

6 November 2023
0
0
0

सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

16

इमली के बीया

6 November 2023
0
0
0

लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

17

कोजागरी

6 November 2023
0
0
0

भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

18

पकड़ी के पेड़

7 November 2023
0
0
0

हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

19

मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023
0
0
0

बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

20

हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
0
0
0

अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

21

भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
0
0
0

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

22

आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
0
0
0

महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

23

नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
0
0
0

जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

24

गबरघिचोर

8 November 2023
0
0
0

गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

25

किसान- भगवान

8 November 2023
1
0
0

बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

26

मछरी

9 November 2023
0
0
0

ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

27

भँड़ेहरि

9 November 2023
0
0
0

रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

28

रजाई

9 November 2023
0
0
0

आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

29

तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
0
0
0

दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

30

पोसुआ

9 November 2023
0
0
0

दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

31

तिसरका कुल्ला

10 November 2023
0
0
0

एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

32

यैन्कियन के देश से बहुरि के

10 November 2023
0
0
0

बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

33

गहमर : एगो बोधिवृक्ष

10 November 2023
1
0
0

केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

34

त्रेता के नाव

10 November 2023
0
0
0

आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

35

डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

10 November 2023
1
0
0

आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

---

एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

english| hindi| assamese| bangla| bhojpuri| bodo| dogri| gujarati| kannada| konkani| maithili| malayalam| marathi| nepali| odia| punjabi| sanskrit| sindhi| tamil| telugu| urdu|