अनिता रश्मि के लेखनी हिन्दी साहित्य के अनेक विधन जइसे कहानी, उपन्यास, कविता में समान रूप से प्रवाहमान बा। सामाजिक, सांस्कृ तिक भावनन के अपना रचना में एह तरह इहां के रखनी कि रचना पाठकन के आपन अनुभूति लागेला । उहां के दूगो हिन्दी कवितन के भोजपुरी अनुवाद | मूल कविता के भाव एवं स्वरूप के बनावल राखे के कोसिस कइल गइल बा ।
मूल अनिता रश्मि अनुवाद : कनक किशोर
कविता लिखत मेहरारू
घर-बाहर के प्रेम बन्धन मकान के भीतर के लड़ाई-झगड़ा लइकन के किलकारियन के भाषा रिसतन के अनगिनत परिभाषा सरिया के का खूब कविता लिखलेली सं मेहरारू ।
ना टेबुल कुर्सी के खिचखिच ना समय के कमी के चिक चाक बस चूल्हा पर पाकेला रंग-रूप गंध के संगे सपना के हांडी में डूबके रच लेली संएगो पूरा कविता अस्त व्यस्त रहत मन में भीतरे भीतर ई सब कविता लिखत मेहरारू ।
पहाड़ से उतरत मेहरारू
देखले रही कबो दूर खड़ा पहाड़ के खूब सुन्दर पहाड़ी मेहरारूअन के ओहनी के ललाई आ सलोनापन में खो गइल रहे मोहित मन
बाकिर एगो अलगे रूप देखि अबो जड़वत बानी बरफ के खूबसूरती के दिल में बसवले बरफ पे खेल लौटत रहिसं अउर सामने अपना घोड़ा के रसी दूनों हाथ में कसके के पकड़ले एगो पहाड़ी मेहरारू पथरीला ढ़लान पर उतरत गइलि सं तेजी से धड़ाधड़ घुमक्कड़न के साथ दुपहरिया तक के कठोर काम के बाद पलक झपकत ओझल तीनो के बुझा बोलावत रहे कवनो बेमार, बुढ़, अपंग इस्कुल से लौटल ओकर बबुआ भा फेर खेतन के हरियरी इंतजार करत सेब बगान
अभियो मेहनत के नाम प5 लिखे के बाँचल रहे ढ़ेरका मानी काम ओह सुनर जवान लड़की के
अबकी जईह पहाड़ तब ओकर मुँह, मुँह के रंगत सुन्दरता के मपनी ओकर देह मत देखिह
बस देखिह खाली पत्थर जस कठोर गोड़, ओकर रूखर हथेलियन के!