शुभ बनर्जी सोसल मीडिया पर आपन हिन्दी कविता के साथ बराबर उपस्थिति रहेली। इनकर प्रतिलेख पर आइल एगो हिन्दी कविता के भोजपुरी अनुवाद।
मूल शुप्रा बनर्जी अनुवाद: कनक किशोर
चरित्रहीन
कवनो मेहरारू अकेलही चरित्रहीन ना हो सकेले केहू तऽ जरूर होई, जे ओकर चरित्र के हनन करत होई। उठाके आपन माथ, सरे आम अइसे चलत होई। अधूरा सपनन के पूरा करेके लालच देके, कवनो मेहरारू के नोंचत होई। धन के कमी से जुझत, मेहरारू के आँचरी असही ढरक जात होई। खत्म ना होखे वाला मजबूरी से गुंथाइल मेहरारू के देह-मन हजारन बार मरत होई। सांच हS हमनी के इज्जतदार समाज के आदमी हई जा ई सब हमनी से अलग होत होई। इयाद राखी कवनो मेहरारू अकेलही चरित्र हीन ना हो सकेले।