डॉ. सांत्वना श्रीकांत अइसन रचनाकार हई जेकर कवितन में एक ओरि प्रेम के खोज रहेला तऽ दूसरा ओरि मेहरारूअन खातिर एगो नया दुनिया बसावे के सपना रहेला समय के साथ दउड़त आ संबंधन के लेके सजग सांत्वना के कवितन में नारी बोध आ मानवता के बीज बोअत नजर आवेली। सांत्वना के हिन्दी कविता के भोजपुरी अनुवाद |
मूल सांत्वना श्रीकांत अनुवाद : कनक किशोर
नीचता तुड़त मेहरारू लोगिन
चाहे पूरा पोसाक में रह भा फेरू उघारे, तूं ताना बन जालू भा फेरू बुनलू ताना। परिवार के समेटत बिखर जालू एही समाज में ऐ मेहरारू लोगिन ।
मान प्रतिष्ठा के आड़ में हर रोज बलात्कार के दंश झेलेलू मेहरारू लोगिन । खाली होखियो के बचा लेलू जीवन एह खोखला समाज के आ रच डालू एगो भरल-पूरल संसार ।
ओकरा कवनो प्रमाण के जरूरत नइखे बाप के ना होखे के दुखो ढ़ो लेत रहे, परिवार खातिर निभावले
ना जाने केतने किरदार, नइहर के चुकी लाँघके ललकारेली से इहे मेहरारू लोगिन ।
अपनापन लूटाइयो के रह जाली से खाली हाथ कबो तेज, कबो धीमा सहेलि सं कवगो चोट तबो अडिग रहलि सं ई सब मेहरारू लोगिन ।
कबो अपमानित होलि सं तऽ कबो देली सं अग्निपरीक्षा, कबो कहल जाली सं कुलटा अउर करकसीन। बाकी सुनऽ समाज-
तोहार नीचता के तुड़ली सं अपार संभावना से भरल हमनी सब मेहरारूये लोगिन ।
जेतने करब दमन ओहनी के देवी स्वरूप धरके खड़ा हो जइहन सं तोहरा सामने केतने रूपन में हर बेर ई सब मेहरारू लोगिन ।