विजया एगो अहल राउंडर व्यक्तित्व के जानल पहचानल हस्ताक्षर हैं। साहित्य में कविता इहां के कलम के पसंदीदा विधा है। कला आ साहित्य के क्षेत्र में विजया के एगो आपन राह बा। प्रेम आ स्त्री विमर्श पर खुल के कलम चलावेवाली विजया के एगो हिन्दी रचना के भोजपुरी अनुवाद।
मूल : विजया
अनुवाद: कनक किशोर
मेहरारूअन प्रेम बुनलि सं
सिआई करे वाला काँटन पर मेहरारूअन एकाई से दहाई बुनलि सं बुनलि से एक फेरा प्रेम के दोसरका सिलाई से लेली संतनिका मन के भाव तेयाग साथै समर्पित करके बुनलि सं एकक गो धागा जिनिगी के।
बुनत बनत सपनन के शब्दगाह बना डालेली संऊ मकड़जालो जवना में धंसेली सं, फड़फड़ाली सं टुकी-टूकी हो जाला सुनर सपना छूट जाला छटपटात आत्मा ।
भूल जाली सं जबतक पावेली से अपना के मुअल एगो सदी बीत जाला बुनत मेहरारू अन भंवरजाल से निकले के राह जइसे भूल गइल रहे अभिमन्यु लवटे के राह लड़ाई के मैदान में।
लड़त मेहरारूअन जोर लगा के छटपटाईल चाहेली सं चिल्लाईल चाहेली सं निकाल फेंक देल चाहेली सं अपना अगल-बगल बुनल रिसतन के कसमसात जंजाल के।
जीयतू नूं चिल्ला सकेला आत्मा त खाली भटकली सं एह दरवाजा से ओह दरवाजा ले सांचो मेहरारूअन त खुदे के मुआवेवाली होलि सं मुआ देली से ओहनी के एगो 'हम' के बुनत कवनो एगो 'हम' के।