सरिता अंजनी 'सरस' युवा कवयित्री हई। इनकर कलम अनवरत स्त्री विमर्श आ सामाजिक समस्या के साथ लोगिन के मानसिक संवेदना पर चल रहल बा। जिनिगी से रूबरू हो जाला पाठक जब इनकर कविता से गुजरला । उहां के एगो कविता के भोजपुरी अनुवाद |
मूल सरिता अंजनी अनुवाद: कनक किशोर
रीढ़ से टेढ़ मेहरारूअन
मेहरारूअन के रीढ़ पर रखल रहेला पूरा घर बिखरे आ बने के बीच केतने बेर टूटली से मेहरारूअन....
जन्म के दुख से प्रसूति के दुख ले .... बाबू, मरद, बेटा ले माई, मेहरारू, बेटी ले....
अकसरहा सुनले बानी मेहरारूअन के रीढ़ होखबे ना करे जदी सांचहूं ना होखे रीढ़ त5 तोहार घर जिंदा ना बाचित तोहरा कवनो बंस ना होखित....
तोहरा रीढ़ के सोझ आ जिंदा रखे में रीढ़ से टेढ़ लागेलि सं तोहरा मेहरारूअन....
देखिह जेह दिन भाग जइहन से ई मेहरारूअन तोहार रीढ़ सूखल गाछ जइसन हवा के एगो हलुक झोंका से गिर महरा जाई...3 !!