डॉ. मधुबाला सिन्हा हिन्दी भोजपुरी के एगो जानल पहचानल नाम ह, जेकर कलम अनेकन विधा में लगातार आपन उपस्थिति दर्ज करा रहल बा। उहां के कुछ हिन्दी कवितन के भोजपुरी अनुवाद।
मूल डॉ. मधुबाला सिन्हा अनुवाद: कनक किशोर
चउखट
मेहरारू अन हो जाली से पूरा समझदार समय से दू डेग पहिले, सोंच रहेला समय से आगे लड़े के क्षमता लड़े के साहस कु समइयो कर देला ओहनी के सचेत... अउर इहे गुण चुभे लागेल सामाज के ठिकेदारन के ठीक ना लागेला एगो विशेष समाज के तब फेर... लागे लागेला चुन चुन के एगो के बाद एगो ढ़ेरका मानी अनेकन रोक बाँधे लागेला सिवाना के बँधन में जेकरा में तड़पे लागेलिस मेहरारू बेबस आ लचार
भुगतेली से अनदेखल दुख अउर तब... हिया के जरल छटपटाहट में उठेला एगो बवंडर घुमडेला गुस्सा के सैलाब आखिर कबतक! बेचैनी से भरल रही ई देह जरत रही बनिके दिया पवितर चउखट पर करत रही ना मिटे वाला इंतजार बिन देखल आसरा में घुटत रही उम्र भर...
दस्खत
का कह ताड़ ? एगो दस्खत! हँ, खाली एगो दरखत देदी? जाने लS मरम दस्खत के? भा कि असही कह गइल ?
जिनिगी के उतार-चढ़ाव के सम्हारत, सवांरत एगो दस्तख तs बाचल बा हमार! हमार मौजूदगी के पहचान ! हमार होखे के लालसा! हमार सपनन के घमंड ! हँ-
एह अँगुलियन के एगो ताकत ई दस्खत तs बिया
हमही बानी ऐकर गवाह सबूत, पहचान सबकुछ ऐकरे में तs समाईल बा हमार जीयत रहे के सबूत एही अँगुलियन में बाड़ी सं
- छोड़ दी दस्खत कइल आपन नाम हम खुद से लिखल ओही घड़ी मर जाईब भीतर में गुम हो जाईब सपना खुदे खत्म हो जाई मन के सब बोझा उतर जाई कुछ शब्दन के रोसनी बिखरल बा ऊ सब माटी में मिल जाई. हँ
हमार अस्तित्व, ना होखे में बदल जाई मुट्ठीभर राख में बदल जाई
देवालि पर फ्रेम में जड़ल सूखल फूलन के माला से सजल एगो अधूरा कहानी बन जाईब हम दुनिया छोड़ जाई ।