डॉ. अक्षय पाण्डेय भोजपुरी नवगीत के क्षेत्र में आपन जोरदार उपस्थिति दर्ज कइले बानी नारी विमर्श पर उहां के दूगो कविता । पता: डॉ. अक्षय पाण्डेय प्रथम मकान, शिवपुरी कालोनी, प्रकाश नगर (फेमिली बाजार के नजदीक)
निर्मला
घर आँगन देहरी दालान कुल उदास भइल धीर धरे एतना मत रोवे तूं निर्मला धूप-छाँह मिल-जुल के ढोवे तूं निर्मला ।
टूटे ना मन के ऐना सम्हार ले लूँ रूप अब अनूप लगे अस सँवार ले लूँ
बिखर गइल बान्हल ई जूड़ा त का भइल आन्ही फिर डालि गइल कूड़ा त का भइल
भीतर के घन अन्हार हाथ से बहार के आँखिन में सपना फिर बोवे तूं निर्मला ।
खोले खिड़की घर में सुघर हवा आवे समय क मुड़ेरी पर सुर-पंछी गावे
अँजुरी-भर ले गुलाल हवा में उड़ा दे घर के कोना-कोना फूल से सजा दे
नींद में रही कब ले नदी के गोहार के थाकल चेहरा रुआँस धोवे हूँ निर्मला ।
चिरइन से चहक पंख - तितली से रंग ले सागर के लहरन से जिये के उमंग ले
चाँद के हँसी अपना ओठ पर उतार ले तुलसी के चउरा पर सँझवाती बार ले
अँचरा में गमकत मन हरसिंगार धार के हँसि - हँसि के जिन्दगी सँजोवे तूं निर्मला ।
बुआ-सुआ
बुआ, सुआ के पिंजरा खोलत सोच रहल बाड़ी।
खुल के हँसे न खुल के रोवे ई कइसन जिनिगी आसमान ना धरती आपन आफत में बा जी
बाहर-भीतर जमल अन्हार खरोंच रहल बाडी।
पाँख पसरलस जब उछाह तब अजगुत घाव मिलल जिनिगी के सपना के ना कतही ठहराव मिलल
कटुवाइल अपना अतीत के कोंच रहल बाड़ी।
बेकल नदी उदास घाट थाकल जलधार लगे खिड़की से लउके जेतना हरियरी बेकार लगे
लपटा अस लपटाइल दुख के नोंच रहल बाड़ी।