अनुराधा सिंह हिन्दी कविता में सशक्त हस्ताक्षर बन के उभरल कवयित्री के नाम ह। वैश्विक सरोकार वाली विषयन पर तेजी से कलम चलावत आपन एगो अलग पहचान साहित्य के दुनिया में तेजी से बना रहल बाड़ी। तिब्बती कवितन पर इनकर काम सराहे जोग था। अनुराधा सिंह के एगो कविता के भोजपुरी अनुवाद।
मूल : अनुराधा सिंह
अनुवाद : कनक किशोर
प्रतिक्षालय में सुतल मेहरारू
सब मखमली पतवन तर छुपल चम्पा के सुंदर फूल ना रहे अनजान रेगिस्तान में जेने-तेने भटकत आजाद रेत के बगुला हई रेलवई के प्रतिक्षालय में बेसुध सुतल मेहरारू
लागता, अगिला कवनो ट्रेन के टिकट ओकरा सामान में नइखे लागता, एह शहर में कतहूं जाये के नइखे ओकरा कवनो घर में ओकरा दूर देस से लउट आवे के
इंतजार नइखे होखत लागता, करवटो नइखे बदलत कवनो प्रेमी
कतहूं उदास उजर सिमटल चादर प5 चूल्हा प खदबदात दाल तनिको बेयाकुल नइखे कि कोई आवे
कलछुले घूमा जाये
लागता, नइखे कवनो ओफिस के
बेयाकुल कागज के ओकर एगो सही के इंतजार अइसे सुतल बिया निसचित
सूरजो आज चढ़ आइल बा बड़ी तेजी से कि अगल-बगल बइटल मेहरारूअन दिन चढ़ला तक सुतल एह मेहरारू के चाल चलन के लेके बतियावे लगली सं अइसे त ई
कवनो राति प्रेमो करे लागी घर से बहरी कइसन मेहरारू बिया?
एकरा आपन जगहा पर पहुंचे के जल्दी नइखे एकर कवनो खुटो बा कि ना? बिना नाथ पगहा भला सुतेले का कवनो मेहरारू अइसे एकदम चित, खुला धरती के छाती पर..
रेलवई प्रतिक्षालय में सुतल अकेले मेहरारू जिम्मेदार नइखे चाय के कुबेला पुकार के
ऊ त मेहरारूअन के बिना मतलब के राति भर घर से बहरी रह सके के अपील पर पहिला दस्खत हिय।