निशा राय एगो युवा कवयित्री हई जे आज हिन्दी आ भोजपुरी दूनो भाषा के एक समान आपन लेखनी से समृद्ध कर रहल बाड़ी कविता प्रस्तुत करे के अंदाज इहां के मंचीय कवियन में एगो अलगे पहचान देले बा । इहां के रचना गाँव, समाज, संस्कृति अउर स्त्री विमर्श से जुड़ल होली सं जेकरा के पढ़ि पाठक ओकरा से अपना के जुड़ल महसूस करेला प्रस्तुत वा उहां के एगो हिन्दी कविता के भोजपुरी अनुवाद। कविता के स्वरूप आ भाव के यथावत राखे के कोसिस कइल गइल बा।
मूल निशा राय अनुवाद: कनक किशोर
चिम्मरचिट
केहू कहलक, लड़कियन मरेलि सं ना जल्दी चिम्मरचिट होली से नूं।
लड़कियन कहलि सं हँ मरे के रहित तऽ तबे ना मर गइल रहती जब अग्नि कुंड में घुसके साबित करेके पड़ल रहे आपन पवित्रता
तब मर सकत रही जब पाँचगो महाबलियन के मेहरारू होखे के बावजूद दाव पर लागल रहे इज्जत
बाकिर ना बेर-बेर छोड़े, अपनावे अउर बेइज्जत होखे के बादों कहवा मरत रही हम
नया नया मशीनियन अउर चाकू, कैंचियन के मार से
मरियो के ना मरत रही
मारे के हर जुगत के काटके ना चहलो पर कबो एह गर्भ तऽ कबो ओह गर्भ उगिये जात रही अउर जी उठत रही
लाख काटला आ उजाड़ला के बादो जइसे उग जाली संघास जइसे पसर जाली से जलकुंभी अउर ढिठाई तs देखी कि, छोटो मोट जगह केनहू फरत फुलात रहली सं ठठा के हँसबो करेली सं काहे कि दूधो नहाये खातिर पूतो फरे के शर्त अब हमनी के मंजूर नइखे ।
अउर हैं सही कहनी ह रउवा लड़कियन हई हमनी के चिम्मरचिट मरब जा ना।