रूपज्योति सन्दिकोइ असमिया भाषा के एगो परिचित कवयित्री हुई। उहां के एगो कविता के भोजपुरी अनुवाद जेकर हिन्दी अनुवाद विष्णु कमल डेका कइले बानी।
मूल रूपज्योति सन्धिकोइ अनुवाद: कनक किशोर
दहन
एकाएक एक दिन मिट जाला मांग के सेनुर
सून मांग पर बन जाला अंतहीन रास्ता रंगबिहीन सफेदी में
बिला जाला मन में उगत सब सपनन आगि जस खून खलबलात रहेला ओहि आगि में होला देह आ मन के दुखन के अग्निपरीक्षा कठिन संन्यास के बिना देखल कड़ियन में वासना रोअले चुपके-छुपके
मंगल अमंगल में घिर जाला देह गले लागेला भूख, पियास, मोह, माया ऊ कवनो एगो विधवा जवान मेहरारू |