दिनेश पाण्डेय के भोजपुरी कवितन के स्वाद अजगुत होला। छोट-छोट स्वातन के शब्दन में बाँधि के, पिरो के अइसे राखि देलन कि पाठकन के सोझा वड सामाजिक चित्रण सामने आ जाला । साहित्यिक दृष्टिकोण से उच्च कोटि के काव्य-सृजन में दिनेश पाण्डेय भोजपुरी के अग्रिम पंक्ति में विराजमान बाड़न उहां के एगो नारीवादी कविता ।
पटना, बिहार - संपर्क 7903923686 रचना स्रोत-पाती, मार्च, 2021
माई री
माई री मछरी होइतीं । झिंझरी खेलती, घुमरी परती, उलटी धारे गउमुख चढ़ती। जेने चहिती, ओने जड़ती नदिया तरती । कवनो मछुआ डालित महाजाल त ना?
सुगनी होइती। सोना नभ में भाँवरी परती, सुरुज चनरमा कावर उड़तीं। काइनात के चारू ओरी पाँख पसरती
कउन अहेरी बनित जिउ के काल त ना?
हिरना होइती। सघन अरन में कुरचत रहती, दूभी चरती, अमरित पिअती।
बरगद छाँही सेज डसइती, थकन बिसरती। कउने बघवा नोचित
तन के खाल त ना?