एलिजाबेथ ड्रिउ स्टोडार्ड (1823-1902) अमेरिकी कवयित्री । परंपरा आ नया मूल्यन के बीच तनाव के मनोवैज्ञानिक गहराई के साथ उकेरे वाली स्त्री रचनाकार के एगो रचना के हिन्दी अनुवाद उपमा ऋचा जी कइले बाड़ी, जेकर भोजपुरी अनुवाद प्रस्तुत बा।
मूल : एलिजाबेच ड्रिव स्टोडार्ड अनुवाद: कनक किशोर
एगो बिना नाम के दुख
हमरा अपना भाग पर जरे के चाही का एगो घरवाली अउर माई होखल ढ़ेर नइखे खुश होखे खातिर अउर एकरा से बढ़के कवन आशीष हो सकेला एगो आत्मा के सांति खातिर ?
एगो चुप घर अउर घर के काम धाम सब दिन के चेहरा बना देले, कवनो बीतल दिन जस एह गुजरत दिनवन में हमरा खाली समय के परछाई नजर आवेला लइकन के अँखियन में काजर लगावे के अलावा हमरा पास दुनिया के अउर कवनो काम नइखे केहू ना आवेला हमरा नजदीक अधूरा बात पूरा करवाये खातिर आदमी के के कहो भिखारियो ना आवे आपन दुख लेके हमरा पास ना ताकत बा, ना राहत बाकी एगो घवाहिल आत्मा भा टूटल दिल के साथ हम करियो का संकिले
तs का भइल कि
हम पढ़ल रही पुरान जमाना के कवियन के
अउर सीखले रही कला के
बाकी कला मर जाले ओह मेहरारूअन खातिर
जे पूरा दिन कुरूप छातियन से आपन कलपत लइकन के दूध पियावे खातिर हल्ला-गुल्ला मचावत फिरले हूँह, के तरसेला जचगी के ओह खास दिन खातिर ? अरे पागल मन!
जो अबो तोर कवनो चाह होखे तब हमरा ओह खातिर रोवे के चाही...!