निर्मला पुतुल आज परिचय के मोहताज नइखी। निर्मला पुतुल नारीवादी आ आदिवासी विमर्श साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हुई। साच कहल जाव तs इनकर कवितन में सच्चाई के आग भरल रहेला जे सुतलो के जगावे आ मुअलो के जियावे के दम राखेला उनकर रचनन जमीन आ जंगल से जुड़ल रहेला जेकरा से लागेला कि ऊ आपन ना हमनी के बात अपना कविता में कर रहल बाड़ी, उहो हूबहू हमनी के भोगल जिनिगी के सुनर शब्दन के माला में निर्मला पुतुल की कुछ कवितन के भोजपुरी अनुवाद |
मूल : निर्मला पुतुल अनुवाद: कनक किशोर
का हईं हम तोहरा खातिर ?
का हई हम तोहरा खातिर...?
एगो तकिया कि कहीं से थाकल-मांदल आव आ माथ टिका द5
कवनो खूँटी कि ऊब, पसीना, उदासी, थकान से भरल कमीज उतार के टाँग देलऽ
भा अँगना में टॉगल असगनी कि कपड़ा लाद देलऽ
घर
कि फजिरे निकलल अउर सँझकी बेरा लवट अइलऽ
कवनो डायरी कि जबे चहल कुछ ना कुछ लिख देलऽ
भा चुप्पी सघले दीवार कि जब मन कइलस ओहिजा कांटी ठोक देनी
कवनो गेंदा कि जब जइसे चहनी उछाल देनी
भा कवनो चादर कि जब जहाँ जइसे तइसे ओढ़-बिछा लेनी काहे ? कह का हई हम तोहरा खातिर...?
आपन जमीन तलासत बेचैन मेहरारू
ई कइसन बिडम्बना बा कि हम बड़ा आसानी से अपना के बना देनी एगो मानक मरद नजर से देखे के आपन दुनिया।
हम अपना के अपने नजर से देखत आजाद होखल चाहतानी आपन जाति से का हऽ खाली एगो सपना मेहरारू खातिर घर, संतान अउर प्रेम? का हS ?
एगो मेहरारू सांचों जेतने ढेरका घिरल जाले एह में ओतने बिलाइल चल जाला सपनन में ऊ सब कुछ।
अपना सोच में सब दिन एके समय पर अपना के सब बेचैन मेहरारू तलासली सं घर, प्रेम आ जाति से अलगे आपन एगो अइसन जमीन जे खाली ओकर जमीन होखे एगो खुला आसमान जे शब्दन से परे होखे
एगो हाथ जे हाथ ना ओकरा होखे के आभास होखे !
ओतने जन्म लिहसं निर्मला पुतुल
तऽ आगि लागल बा एह छोर से ओह छोरि तक ले तोहार बेवस्था में ओकरा में जरतानी हम आ रह-रहके भड़कता
हमरा भीतरे आगि...
एह से चुप ना रहब अब उगलब तोहरा खिलाफ आग तूं जेतना मना करब ओतने जोर से चीखब हम
हमरा पता बा तिलमिला के उठइब पत्थर आ मार देव हमरा माथ पs
बाकी इयाद रखिह ना टूटब एह बेर बिखरब ना तिनका जइसन तोहरा डर के आन्ही से
अबकी हमार माथ ना फुटी टूटके चकनाचूर हो जाई तोहार हाथ के पत्थर अउर जदी कवनो कारण हार गइनी एहू बेर त
तृ लिखि ल5 दिमाग के डायरी में कि गिरी जलने खून के बूँदन धरती प5 ओतने जन्म लिहसं निर्मला पुतुल हवा में मुट्ठी बँधले हाथ लहरावता
का तूं जानेल ?
का तूं जानेल मरद से अलग एगो मेहरारू के अकेलापन ?
घर, प्रेम आ जाति से अलगे एगो मेहरारू के ओकर आपन जमीन के बारे में बता सकेल तू?
बता सकेल सदियन से आपन घर तलासत एगो बेचैन मेहरारू के ओकरा घर के पता?
का तूं जानेल अपना सोच में केवना तरह एके समय में अपना के प्रतिष्ठित आ निर्वासित करेले एगो मेहरारू ?
सपनन में भागत एगो मेहरारू के पीछा करत कवो देखले बाड़ तू ओकरा के रिसतन के कुरुक्षेत्र में आपने के अपने से लड़त -भिड़त ?
देह के भूगोल से अलगे एगो मेहरारू के मन के गाँठ खोलिके कबो पढ़ले बाड़ तूं ओकरा भीतर के खउलत इतिहास ?
पढ़ल बाड़ कबो ओकर चुप्पी के दरवजा पर बइठ शब्दन के इंतजार में ओकर मुँह के ?
ओकरा भीतर बंसबीज बोअत का तूं कबो महसूस कइले बाड़ ओकर फैलल जड़न के अपना भीतर ?
का तूं जानेल एगो मेहरारू के सब रिसतन के व्याकरण बता सकेल तूं एगो मेहरारू के नारी नजर से देखते ओकर नारीत्व के परिभाषा?
अगर ना!
तऽ फेर जानते का बाड़ तूं रसाई आ बिछावन के गणित से अलगे एगो मेहरारू के बारे में?
आपन घर के खोज में
भीतर समेटले पूरा के पूरा घर हम बिखरल बानी सउसे घर में बाकी ई घर हमार ना हऽ
बरामदा में खेलत लइकन हमारे हवन सं घर के बहरी लागल नेमप्लेट हमार मरद के ह5
हम धरती ना हुई, संउसे धरती हमरा भीतर बा बाकी ई ना होले हमरा खातिर
कतहूं कवनो घर नइखे हमार बलुक हम खुदे हई एगो घर जहवाँ रहेला लोग बिना लगाव के गर्भ से लेके बिस्तर तक के बीच ना जाने केतना रूपन में
धरती के एह छोर से ओह छोरि तक मुट्ठी भर सवाल लेले हम छोड़त हाँफत भागत रहेनी खोजत रहेनी सदियन से बरोबर आपन जमीन आपन घर अपना होखे के माने!