डॉ. उमाकांत वर्मा के एगो नारीवादी रचना रचना स्रोत-पाती
सितंबर 1993 अंका
पता : हाजीपुर, वैशाली- 844101
अनचिन्हार जंगल के बीच से ससरत, काँपत टेरत हम डँडेर ही जे आँसू बोबाइल आँखि से हर पल दिसा हेरत रहीले।
हमही कुन्ती, सीता अउर राधा हईं जे अपना कोख में सरापित जुग के डोर पर चिरकत मुसुकी छीटत रहीले ।
हमही लेके अन्हरिया से अँजोरिया कटोरा भर चंदन छिरिक के अँचरा पसारत /नेह दान देत रहिले।
सिकाइत तोहरा से नइखे ऊ लोग से बा जे हमनी के कुँआर सोहागिन बनावेला आ कहूँ कवनो दुःसासन अइसन कोलाहल के बीचे हमनी के / लॅगटे करत परत दर परत उघारत ठठात हँसेला।
अब हमनी के भट्टी हो गइल बानी आ एगो आगि के ली
जैक तोहरा अस लोग नीबू अइसन निचोड़ के अपना खुर्दुरा तरहत्थी में मीसि के कवनो घूरा पर कबहूँ कतही ना फेंक सके।