झारखंड वन सेवा के सेवानिवृत्त पदाधिकारी भोजपुरी आ हिन्दी लेखन कार्य में समान रूप से जुड़ाव अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना के सदस्य। हिन्दी / भोजपुरी के आधा दर्जन पुस्तक प्रकाशित | जोहार भोजपुरिया माटी, साझा संग्रह के संपादन।
पता : राँची (झारखंड), चलभाष 9102246536
ममता के संघर्ष
माई के ममता कुलांच मरलस त युद्धो ना रोक पवलस माई के गोड़ आ बढ़ चलल पूत से मिले युद्ध के विभिषिका के बीच आपन देस यूक्रेन
एक देने रह रहके बर्फबारी दूर दूर तक आदमी के नांव ना उबड़-खाबड़ सड़क पर एगो मेहरारू मन में डर कि कहीं से गोली भा धमाका ना हो जाये, ई झांकी लवीव के ह जहाँ एगो माई बदहवास जात बिया अपना बेटा से मिले गोली बम से बेपरवाह ।
अलिसा स्पेन दौरा बीच में छोड़ आपन नव साल के बेटा किरिल से मिले पहुंच गइली यूक्रेन के सीमा पर स्थित लवीव
सब कोई भरोसा देता कि जल्दिये घरे पहुंच जइबू आपन गाँव मारियुपोल, अलिसा जानताड़ी जोखिम भरल ई काम कवनो चुनौती से कम नइखे बाकिर ममता के कुलांच उनकर डेग बढ़े के मजबूर करता बेटा के ओरिया, उनका बिसवास बा कि उनकर ममता के जीत होई आ ऊ अपना बेटा से मिल पइहें जवन साथ लेले आज युद्ध के बीच धइले बाड़ी गोड़ अपना धरती पर।
ई कहानी खाली अलिसा के ना ह
नताली खलेम, अन्ना एम्ब्रामोसोवा
आ ना जाने केतने माई के ह
जे कबो गोला-बारूद के सिकार हो जाई
बाकिर मन में एके धून सवार बा
कि चाहे जे होखे
हम अपना लइका से मिल के रहब
हमरो बिसवास बा
जीत माई के ममता के होई ।
मेहरारूअन
मुअही खातिर जन्म लेली सं ई मेहरारू अन घरी घरी जीयली सं मउवत के जिनिगी
लइकाई से लेके बुढ़ापा के दरवाजा तक, सांचे त ह5 घरी घरी मुअल ओहनी के दुखित ना करेला स्वभाव जे पड़ गइल बा कबो नइहर, कबो सासुर कबो मरद, कबो लइकन के खुशी आ जिनिगी खातिर अपना के मुआवे के
'दूधो नहाओ पूतों फलो' के आसीष पावेली सं बाकी दूध पीयल त करम में बा ना नहइहें सं का? हैं! पूतवन खातिर फरे के पड़ेला बेर-बेर बंश बढ़ावे खातिर पर ना पूजल जाली ओहू खातिर पुजल जाला बांस, हाय रे विधाता ओहनी के हिस्सा के सुख अउर जिनिगी ओहनी के अँचरा से छीन तूहूं बाँट देल दोसरा के कइसन हऽ ई तोहार न्याय? '
सौभाग्यवती भव' आसीष तोहरा आँचर में डलल सं तोहार आपन लोगिन के संगे पंडित, पुरोहित लोगिन, पति से पहिले मुए के कहल गइल तोहार घूंट-घूंट के मुअल देखके ना मरद के अधिका जियावे के हक देखि
हम ना वृझ पवनी आज ले अइसन कांहे? असहूं जियला त मरदे नूं तूं तऽ आज ले जियलू कहवाँ आपन हिस्सा के जिनिगी आपन हिस्सा के सुख
बराबरी के डफली मरदे लोग नू थमवले बा उहो फाटल, कमजोर, तूं तऽ बराबर रहू जन्मे से, सांच पूछ तऽ तूं जन्म देवे वाली माई बराबरी कहवाँ तोहरा से मरदन के जे पललन तोहार बहियन में सिंच तूं छाती के दूध पीयाके बाकिर ऊ दूध के लाज रखल ना जनलस समय पड़ेला तऽ आगे आ जाला अग्निपरीक्षा लेवे खातिर कबले बैदेही बनवू?
एगो बात आउर तूं तऽ हरदम दाता रहल बाडू अधूरा बा तोहरा बिना मरद समाज, मउवत के मुँह से निकलले बाडू सत्यवान के, जीवन बॉटेलू तूं जीय अब तूहूं जीय तनिका सा आपन हिस्सा के जिनिगी तनिका अपना हिस्सा के सुख।
मेहरारू
मेहरारू आदमी ना होलि सं ओहनी के त खेलौना होलि सं मरदन के हाथन के, "नारी तू नारायणी" कहवाँ रहलू? तू त हो गइलू “नारी तू भोग्या "।
बाजार के चीज बनके रहि गइल बाड़ू विज्ञापन होखे भा सिनेमा तोहार मखमल जस देह के खूब परोसल गइल बाजार में, खरीदारों खूब मिलल मिलबो करित काहे ना ऊ लोगिन के खेलवना के सजाके नया रूप में पेश जे कइल गइल बा।
मरदन के नजर में तूं खाली मादा बाडू ऊ लोगिन के नजर तोहार शक्ति सत्ता पर ना तोहार देहिया पर होला तोहार त्याग पर तोहार सेवा पर ना काहे कि ओहनी के तऽ तोहार सुघर देहिया के चाह बा, ओकरें नतीजा तऽ
कटुआ, हाथरस ह जहवाँ रोज कवनो निर्भया कवनो गिद्ध दृष्टि के सिकार होलि सं
मेहरारू
तूहूं तs आपन पहचान भूला गइल बाड़ू दुर्गा, काली आ सती के रूप छोड़ आइटम गर्ल के लबादा ओढ़ लेले बाडू आधा आबादी आपन सत्ता पहचान काल्हू भस्मासुर के मरले रहू आज तू तोहार सतीत्व के दुश्मन बहसी जानवरन के तऽ मारा
मेहरारू
तूं जन्म देवे वाली हऊ तोहरा बिना संसार अधूरा बा तूं बाडू तऽ धरती बा तूं तs धरती के नायिका हऊ तोहार बिना मरद के आस्तित्व कहवाँ तोहरा बिना घर दुआर कहवाँ तूं बाडू तऽ हम बानी तूही सरस्वती हऊ हमरा के बुद्धि द आजले ना समझनी तोहरा के अब तs समझी।
अभिशाप
तिरिया जनम विधाता के देन
अभिशाप ना ह अभिशाप बना देलस ई पुरुष प्रधान समाज, माई, दादी, सासु आ ननद कम दोषी ना जे अपने नारी जाति के बचपन से आज ले दोयम दरजा देलस वस्त्र, खाना आ पढ़ाई तक में।
बेटा के ललसा में भ्रूण हत्या, धरती आ आकाश देखे के पहिले बेटी के माई के हाथे धूरा के हवाले कर देल महापाप ह5, पर दिन राति पूजा में अझुराइल माई ना बुझेली ओह के पाप काहे कि कोख उनकर ह बाकिर ओह कोख के मलिकार हुई पतिदेव जिनका बिटिया ना चाही, बिटिया से बंस ना नूं चले।
समय बदलल सोच ना, बिटिया कहाँ रहल पाछे बेटवन से कवनो माने में चाहे कवनो क्षेत्र होखे, बाकिर आजो पीछा नइखे छोड़त दहेज रूपी दानव जे दहेज के आगि में
ओंक देता सुंदर विटिऊवा के. फॉस लेता आपन जाल में गिद्ध रूपी मानव जे हर सड़क पर बिछवले बा जाल, आजो असुरक्षित बिटिऊवा महसूस कर ले अपना के अभिशाप समझले ओह सुंदर देहिया के जेकरा के नोंचे खातिर गिद्धवा मंडराता चहुंओर हर सहर, हर गाँव ।
कोख हमार मालिक तूं ई का ह5, आज ले ना बुझल अब का बुझब मरद नूं हव ।
हमार कोख हमरा के माई बनावेला हमरा के पूर्णता प्रदान करेला बाकिर ओहू पर हमार अधिकार कहाँ बा तु इच्छा थोपेल जे हम ढोइना,
हमरा के बाजार के वस्तु बनवल चुप रहनी आज हमार कोख बाजार में आ गइल सौदा हो रहल बा कोख के पिता बने के इच्छा जे पूरा करे के बा तोहार समाज त तोहार ह हमार इच्छा के कवन मोल।
कोख हमार बाकिर मरजी तोहार भुलियो के आपन मरजी चलाई तऽ तूही ना भीतर से तोहार अस्तित्व डोल जाला ओकरा के अनैतिक करार देल जाला औरत नूं हुई हमार देहो हमार ना तोहार ह5 ई तोहार अकेले के निर्णय ना ह5 पुरुष प्रधान समाज के ह5 जवना चीज पर पहिला अधिकार हमार बा उहो पर हमार कहाँ तोहरे अधिकार बा।
सांच तऽ इहे नू ह नौ महीना तक देह हम भारी राखिला अपने शरीर अपने पर भारी हो जाला नव महीना बाद हमरा पेट पर नश्तर चलेला मौत के नजदीक से हम देखिला अउर पिता रउवा बनिला बंश वृद्धि राउर होला हम छोड़ देल जानी आगे के तैयारी खातिर ई का हS?
इहो सांच हऽ हम तऽ अपना मरजी से माईओ ना बन सकी
आ तू अपना मरजी के थोपत जब चाह गर्भवती बना द5 तबतक जबतक पुरान आटा के बोरी जस कोख झुलके बेडौल आ कमजोर ना हो जाय हम आधी आबादी जरूर बानी कहे भर के पर नइखी रोक पावत ई जुल्म समाज आजो तोहार हSI
इहो सांच हऽ असल में ई सब खेल कोखे से जुड़ल बा, एगो कोख से बाहर ना आवे तबतक दुसरा के तैयारी शुरू हाय रे कोख, पिता बने के सुख चाही तऽ तू हमरो के सिखावे के होई तऽ तू सांच तs इहो ह कि बालात्कार के धमकियो मरद तोहरे चलते दे पावेला ।
का का बताई केकरा के सुनाई ऊ सुने ना मरद हSI
बराबरी के बात
उनका बात में दम बा सुने के परि भीतरी खलवली बा ई बूझे के परि
आधी आबादी, आजो जल रहल स्खलित समाज के जूझे के परी
बराबरी के बात, ऊ अब चाहेली अब ऊ ना दबिहें, ई बूझे के परि
उहो आदमी ह, खाली औरत ना देह से हटके, ई सूझे के परि
आदमी के विलोम, औरत ना होखे बुझौलिया छोड़ि के, ई बूझे के परि
कोखि कबले, बरदास्त करी बोझा बेटियो बंश के अंश, ई बूझे के परि
बेटी के जन्म, अभिसाप ना नूं ह किशोर बुझले, तोहरो बूझे के परि।
पंखिया जनि काटऽ
नाही चाही धनवा, ना चाही दवलतिया उड़े के चाहीं हमके खुला असमनवा बाबा तोहसे अतने विनीतिया, पंखिया जनि काट5 |
जाइब कवलेजिया, पढ़ब हम इंग्लिश बान्ह जनि गोड़वा में अब तूहूं बेड़िया
खेतवा से सीमा प ले हमरो के देखब ऊँचे तोहार राखब पगड़ी के, सनवा पापा तुड़े द पिंजरवा के जाल, पंखिया जनि काट
अंगुरी पकड़ी हमके कबले चलइबू अँचरा के छहिया में कबले लुकइबू पांखि नोंची गिद्धवा, मुड़िया मरोरब
अनि दुर्गा दुसमन के जारिब खोरब माई रे पूरा करिब तोर अरमान, पंखिया जनि काटSI
अब ना बेचाई खेत दहेजवा के खातिर हम ना बनिब कटपुतरी के माफिक अब ना बिकाई भौजी गहना गुरिया खुली ना अब खुटवा से तोर धेनु गइया भइया हो पूरे द सपनवा हमार, पंखिया जनि काटSI
मरद के जाति छोड़ि, आँट में तूं आव मिलजुली सब अब काम सलिटाव बृझ नाही हमरा के अब तू अनेरिया नाही हम ह ई देख छेरिया बकरिया राजा हो हमरे से तोर परधनिया, पंखिया जनि काटS |
हमहूं आजाद हई, भारत के नारी हमके आजादी चाहीं छोड़ी लूगा साड़ी बरजल सुनी ना त गरजलो हम जानी जाग गइनी हमहूं अब रहब ना चुहानी मरदे सुन छोड़ गरभ गुमनवा, पंखिया जनि काट सामने खुला बाटे मोर असमनवा पंखिया जनि काटS |
हमहूं
हमहूं भरब उड़ान खुला आकास में, हमरो चाही हमरा हिस्सा के आकास जहाँ कवनो रोक-टोक ना होखे चिरई जस फुदकी एह डाढ़ि में ओह ढाढ़, अब पोस ना मानिब
पिंजरा तूड़ी उड़ि चलब हमहूं।
दिल मांगे मोर
बेड़ी में रहनी आजु ले मन राखे खातिर थोड़िकी सा आजादी भीख में देल फुसलावे खातिर उहो शर्त पर लछुमन रेखा खीच जे हमरा कबूल नइखे मन नइखे भरत ठग मति देदS हमरा हिस्सा के स्वच्छंदता कि हमहूं आजाद घूमी खुला आकास में, हम आधा आबादी लेके रहब आजादी दिल मांगे मोरा
कठपुत
हम काठ के बनल कठपुतरी ना हई,
हमहूं
हाड़-मांस के पिजर से बनल तोहरे जस आदमी, बाकी तू आदमी ना बूझलऽ कठपुतरी जस नचइलऽ अपना इसारा पर, घर के इज्जत कहि के लाँघे ना दिहल देहरी, नइहर से सासुर ले सगरो वर्जना के संसार हमरे खातिर बाकी अब बस कर बे पुछले लाँघ गइनी देहरी खुला आकास के खोज में बंधन के तुड़ि छोड़ि द अपना हाथ के डोर ना त काटि देव अंगुरी जे आजु ले नचवलस अपना इसारा पर अपना मर्जी से
पोसुआ चिरई
हे मरदे! आजु ले ना बूझलऽ अब का बूझब5 हम मेहरारू अन के, हमनी के बूझे खातिर अहम भाव मारि
मेहरारू बने के पड़ी जे तोहरा बस में नइखे।
हमरा के आजु ले आदमी बूझल कहाँ? पोसुआ चिरई बना रखल अपना घर के आँगन में तोहार चम - चम चमकत सुनर रंगमहल हमरा खातिर सोना के पिंजरा तोहार देहरी ओह पिंजरा के गेट आ तूं जीवन साथी ना बहेलिया ।
अब छोड़ ई सब बात सुनिये के का करब आपन इज्जत चाह तऽ खोलि द अपना हाथे हमरा खातिर घर के देहरी ना तड हमरा भीतर उठल बवंडर उड़ा ले जाई तोहार देहरी आ हम उड़ि चलब खुला आकास में अपना पांखिन पर भरोसा करि चिरई के माफिक आ हमरो होखि आपन पहचान।