राजीव राय भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त पदाधिकारी हुईं। अपना साहित्यक साधना के रूप में रचनन के माध्यम से इहां के समाज के नया राह देखावे के कोसिस कर रहल बानी उहां के एगो हिन्दी रचना के भोजपुरी अनुवाद।
मूल राजीव राय अनुवाद: कनक किशोर
कठपुतरी
के कहल हऽ कठपुतरी खाली नाचले ओकर हर हरकत जिनिगी के बाँचेला खाली भले होखे तबो छलकले रोअले, रोआवले, हँसले, हँसावले जे पीछा डोर पकड़ले बा ओकरो के देखावले बित्ता भर के कठपुतरी सब रंग बरसावले।
उधार के चेतना में करम करे के बढ़ावा देले सब जगहा हर घरी एक दोसरा पर आश्रित होखेले अइसने बिखरल गाँठन के माला सजावले, टुकी टुकी अंधेरा रोशनी के बाँधेला रात के अभाव में तऽ दिनो टूअर हो जाला ना जाने कहवाँ गम भूला देले, कहवाँ गम छूपा देले।
कठपुतरी मुँह ना छिपावले, चुप रह लोग आसमान में फैलल सीढ़ियन आ गुलसन उहे सजावले लाखि दोषन के सहियो के जिनिगी बितावले समय कवनो होखे जरूरी हो जाला अनगिनित ना होखे रंग तऽ का करिया, का उजर कठपुतरी ते बनले बाड़िस जिनिगी में अमृत बरसावे खातिर ।
अतना रंग के कटपुतरी ना रहिति संत जिनिगी बुलबुला हो जाइत फरित, फुलाईत, अउर बिला जाइत
रंग, गंध, सुगंध ना रहित त आश्रय केतना विरान हो जाइत
ना जिनिगी रहित ना ओह में विविधता रहित
सब खाली पिण्ड रहित आ ओह में जान ना रहित का सूरज, का चाँद, उनका में कवनो गान ना रहित।