नीतू सिंह भदौरिया युवा कवयित्री हई। इनकर लेखनी स्त्री-विमर्श, थर्ड जेंडर, सामाजिक विसंगतियन के आपन कविता के विषय बनावल पसंद करेला वागर्थ में उनकर सामा चकई नाम के कविता आइल रहे, ओही कविता के भोजपुरी अनुवाद प्रस्तुत बा अनुवाद में कविता के मूल स्वरूप आ भाव के यथावत राखे के कोशिश कइल गइल बा ।
मूल : नीतू सिंह भदौरिया अनुवाद : कनक किशोर
सामा चकई
मन में पुरान अउर नया लड़ाईयन के बीच आवतिया इयाद हमरा सामा दुख के भंडार लेले एगो डाढ़ि से दूसर डाढ़ि ले कई बेर कइले होखी ऊ मरूदेस के जतरा घबरा के थाक जात होई
पतझड़ में जब झर जात होई पतई डाढिन से घायल पंखन के अपने से छूके पता कर लेत होईहन सं आपन लाचार अँखियन से
रोआई में खुऐ भा खुशी में रोआई के समझ पावत होई? ना समझ पावत होखी केहू ओह मेहरारू के रोआई जेकरा आगे खीच देल गइल होखे लांछन के लकीर
समुंदर जस गूंजत लांछन में चोटिल जिनिगी के लहर जब बिला जाली सं कइसे लागे लागेला नदियन के पानियो नमकीन ई एगो मेहरारूये बूझ सकेली सं
तूं तऽ रहू शापित मेहरारू जेकरा के अपने बाप देले रहन शाप आह! चुगलखोर चूड़क के बात सुनके ओह घरी ना जाने केतने चित्र बनल होई तोहरा भीतर
सांच बोलिह सामा बिसवास तोहार डगमगा गइल होई नूं? बाप तोहार कृष्ण रहन हैं, उहे कृष्ण जेकर नाम लेके द्रोपदी भरल सभा में बुनत रही बिसवास के साड़ी
दुखित स्वर में तुहू पुकार लेतू ओही अविनाशी कृष्ण के ऊ तोहार बाप के साथ भगवान रहन
तूं बुझा ना जानत रहूं सामा ढ़ेरका मानी बातन से अनजान समाज के ककहरा पढ़ल रहतू तब नूं जान पवतू कि अंकुश से दबल रहेली से मेहरारू ओहनी के परेम करे के अधिकार ना नूं होला हँसियो ना सकेलि सं ओहनी के बाँट ना सकेलि सं केकरो साथे
जिनिगी के दुख-दरद बाकी तूं सामा! ई सब तूं कइलू अपना भावना के घर में सिकड़ी ना लगवलू तबे नूं आदमी से बना देल गइलू चिरई
इतिहास-भूगोल जस बिसाल बा लोगन के सुबहा नजर में फँसल मेहरारू अन के जिनिगी के पाठ
शाप से तूं मुक्त हो गइलू सामा बाकिर एगो परछाही शाप बन के घूमत रहेला हर मेहरारू के अगल-बगल ना जाने ऊ कब होई ओह शाप से मुक्त !