बिनोद कुमार राज 'विद्रोही' एगो युवा कवि हवन जेकर केतने संग्रह हमनी बीच आ गइल बा । उनकरा कवितन में माटी के सुगंध के साथे माटी के साथ जी रहल लोगन के समाज के दबल कुचलल लोगन के आवाज मुखर होके बोलत नजर आवेला उहां के दूगो हिन्दी कवितन के भोजपुरी अनुवाद प्रस्तुत बा। कविता के स्वरूप आ भाव के यथावत राखे के प्रयास कइल गइल बा।
मूल बिनोद कुमार राज 'विद्रोही' अनुवाद: कनक किशोर
मेहरारू
तोहरा ठीक लागेला कि हम घर के भीतरी कवनो खूँटी से लटक के टंगल रहती मोनालिसा बनके मुस्कात रहती धीरे-धीरे तोहरा खुशी खातिर...
तोहरा ठीक लागेला कि हम चाहरदीवारी के बहरी डेग ना रखती घर के कवनो कोना में पड़ल विनती करत रहती तोहार सलामती खातिर सांझ होखते जब तू लवटित रंगरेली मनाके त, हम बरगद बन जइती तोहरा खातिर अउर तू समा जइत हमरा में
ना समझती कि हमरो सीना में एगो दिल बा खुलल हवा में साँस लेवे के साहस ना करती...
तोहरा ठीक लागेला कि हम रोज सोरह सिंगार करके लेट जइती बिछावन पर चुपचाप बिना हिल-हुज्जत के अउर तू रउंद के रख दिहत हमके कवनो काम के मातल बलात्कारी लेखा पोर-पोर में हो रहल पीड़ा के बावजूद कुछुवो ना बोलती....
तोहरा इहो ठीक लागेला कि तोहार सब जुल्म के सहत रहती पति परमेश्वर के बरदान समझ के सउंसे उमिर चुप रहती भारतीय मेहरारू बनके अउर तोहार सभ साधन के हम स्वीकारो कइनीं, बाकिर तू का कबो ई सोचबो करेल कि हमरा का ठीक लागेला...?
डाइन
भरल पंचायत में
मरद प्रधान समाज कर देलस फरमान जारी कि हमरा के लंगटे करके समूचे गाँव में घुमावल जाय अउर तू अइसन करियो देल आपन मर्दानगी देखा देल एगो अबला पर.... हमरा शिकायत नइखे कि, हम लंगटे घुमावल जा तानी शिकायत त5 एह बात के बा कि, जेकरा के तू रिसता के डोर से बान्ह रखले रह ओकरा के पलेभर में कइसे तूड़ दिहल जेकरा के चाची कहल, बेटी कहल पतोह कहल, बहिन कहल ओकरे देहिया के कोड़ा से छलनी करताड़ ओकरे लंगटे देहिया पर तोहार कामुक आ ललचाईल नजर ठहर-ठहर जाता काहे ? तोहरा भीरी ऐकर का सबूत बा कि, हम डाइन हई
ना, कुछुवो सबूत नइखे तोहरा भीरी खाली तोहार अँखियन भूखाइल रहेली से देह खातिर एही खातिर तू लगा देल हमरा पर डाइन होखे के ठप्पा कर देल लंगटे भरल पंचायत में अउर सेके लगल आपन आपन अँखियन के एकदम नामरद बनके....