प्रवासिनी महाकुड़ उड़िया की वरिष्ठ कवयित्री हई जिनका दूनो भाषा में सहज आवाजाही बा स्त्री विमर्श इहां के पसंदीदा विषय ह। एह कविता के हिन्दी अनुवाद कुलजीत जी कइले बानी भोजपुरी अनुवाद सामने बा।
मूल प्रवासिनी मझकुड़ अनुवाद : कनक किशोर
ई साड़ी
ई साड़ी जे हम पहिरले बानी एकरा में जेतना सूत बा ओतने हमार दुख, असंतोष अनुभूति, मान-अपमान, खुशी- आनंद, प्रेम-दूराव
पा के भूला देवे के गीत प्रेम के प्रचंड पियास
हमरा अफसोस के सामने छोट पड़ जाला ई साड़ी के अचरा
जब कतहूं जाये खातिर तइयार होखेनी एह साड़ी को कोरन पर लाइन से खिलल दुखन के फूल बेमन के चिह जइसन सामने आ जाले सं मन में पँवरेला एगो दृश्य हमार अस्तित्व जाके खड़ा हो जाला कवनो करघा के भीरी
एह साड़ी के बुनतखानी ना जाने केतने रंग में ढलल होई केतने इच्छा काम आइल होई सोच के अनुरूप ओकरा के रचे में
केतने छोट-छोट संवेदनन से रूप लेले होखी उल्टा सीधा बुनावट में दुगो कुसल हाथ कइसे बिना थकले भरनी चलावत रहल होई
प्रेम के केतने विस्तार से केतने आत्मीयता से भरि के मन के केतने सुंदरता सहेज के अइसन मन मोहे वाली साड़ी करघा से उतरत होई
ई साड़ी जवन हम पहिरले बानी एकरा में जेतने सूत बा ओतने हमार दुखन के असंतोष के अनुभूति बा हमार चाह, हमार खुशी के मधिम तरंगन बाड़ी सं