सुनि के रोअइया मजूरवन के पूतवन के, फाटे ला करेजवा हमार, भोरहीं मचेला कोहराम रोज घरवा में, लड़ेलन स रोजे चारि बार।
गुरवा-मिठइया त सपने में लउकेला, मिलेला न उहनीं के भात, सतुआ के लिवरी फजिरहीं खा चाटेलन स, ओही प कटेला दिन रात।
रोजे-रोजे सतुओ भेंटाला नाहीं भोरवा में, कटि जाला कवहूँ उपास, दिन भर आसरा में ताकेलन स टुकुर-टुकुर मिटि जाला रतिया में आस ।
देहिया में बाटे एगो फटही भगइया हो, एगो बडुए फटही कमीज, ओहू में से निकलेला मंहक पसेनवा के, भरल बडुए ओहु में गलीज।
अँखिया उठा के जब ओह पाटी ताकीला त, लउकेला पकवा के घर, ओही रे महलिया में राजा बाबू राज करसु, करेलन सगरे कहर।
भोरवा में चाभेलन खोउआ मलइया हो, दूधवा से रोज लागे भोग, चेरिया-लंउड़ियन के कमी ना महलिया में, देखीं सभे ह ई सनजोग।
केहू के मिलत नइखे फटही लुगरिया हो, सतुओ भेंटात नइखे रोज, केहू घरे छने रोज-रोज मलपूअवा हो, रोजे रोजे होला महाभोज।
दूनो जाना हवन एके देसवा के पूतवा हो, काहे बडुए अतना के फेर, जागऽ जागऽ जागऽ अब देस के पहरुआ हो, खतम करेके बा अन्हेर ।