छिड़ल देसवा में क्रांति के बा तान भइया, चलऽ गढ़े मिलि-जुलि नया हिन्दुस्तान भइया । सैंतालिस के आजादी, रहे नकली आजादी, अबहीं रतिये बा, भइल ना बिहान भइया ।
कबो 'कांगरेस' के राज, कचो 'जनता' के साज, देखऽ चालू बडुए जुलुमी विधान भइया।
चोर डाकू बटमार, अब चलावत सरकार, हक मंगला प गोली के निसान भइया।
देखऽ कइसन ई राज, जहंवा मंहगा अनाज भइल सहता गरीववन के जान भइया ।
देखऽ नेताजी के हाल, फूलल पूआ नीयन गाल, आगे कार चले, पीछे पुलिस-भान भइया। थाना जेहल अवरू कोट, हउए जुलुमिन के ओट,
सगरे पइसा प विकऽता ईमान भइया। गांवा-गांड बने थाना, सहर भइल जेहल खाना, चीकन बतिया के भीतर, सैतान भइया।
बाघिन अपना दुलरूवा के देहि चाटेले, सँउसे देसवा के कइलस मसान भइया।
कबले देखबऽ तमासा, छोड़ऽ दोसरा के आगे बढ़ा झुकि जइहें भगवान् भइया । आसा,
भगत सिंह आ आजाद, करत बाड़न फरियाद, ताजा बहुए सहीदवन के सान भइया।
बनिजा गंगाजी के धार, तूरड राह के पहाड़, फहरा द लाल किला प निसान भइया।
मिलि-जुलि बोलऽ इन्कलाब, फाड़ऽ मुँहवा के जाव, बोलऽ देसवा के ललका सलाम भइया।