[उपन्यास-सम्राट् प्रेमचंद के इयाद में। तर्ज-कजरी]
हरि-हरि सावन के महिनवा मन-भावन ए हरी ॥
एही रे सवनवां में बरिसे बदरिया रामा, हरि हरि पेन्हेले घरतिआ हरिअर साड़ी ए हरी। एही रे सवनवां में हरखे किसनवां रामा,
हरि हरि खेतवा में होखेला रोपनिआं ए हरी।
एही रे सवनवां में प्रेमचंद पैदा भइलन हरि-हरि दुनिया में कइलन अंजोरवा ए हरी। केइ रहलें प्रेमचंद, कइसन अंजोरवा रामा,
हरि-हरि कइलन अइसन कवन कीरितिया ए हरी। कवना जगहिया प प्रेमचंद जमले रामा,
हरि-हरि कवन मइया अतना बड़भगिया ए हरी।
कवना पुरूखवा के अइसन सपूतवा रामा, हरि-हरि कवना ठंड्या कइलन ऊ कीरितिया ए हरी।
एही रे मुलुकवा में जिलवा बनारस रामा, हरि-हरि जहंवा कल-कल बहे गंगाघरवा ए हरी।
ओही जिलवा में एगो गंउआ बा लमही रामा हरि हरि बनि गइल गंउआ ऊ तीरथवा ए हरी।
एकतिस जुलाई सन् अट्ठारह सौ असिया रामा
हरि हरि प्रेमचंद लिहलन जनमवां ए हरी। ए ही गंउआ में रहन मुंसी अजायब रामा
हरि-हरि उनुकर धनिया रहली आनंदी ए हरी। एही बाप-मइया के पूत प्रेमचंद रहलन,
हरि-हरि दादा उनुकर रहलन गुरू सहइया ए हरी। मड्या आनंदी के चउथा होरिलवा रामा,