सूतल सागर में हलफी उठाई जा अब, चलऽ क्रांती के झंडा उड़ाई जा अव। गीत गाई जा आजाद, के भगत के
देस खातिर कसम मिलि के खाई जा अब। राजधानी में कतना तिरंगा उड़ल चलऽ ललका निसान फहराई जा अब। आइल पनरह अगस्त, आई फिर जनवरी,
एह तरह से समय ना गंवाई जा अब।
नइखे गिनती सहीदन के एह देस में खून से आपन कीमत चुकाई जा अब। ना गरीबी मिटल, ना जुलुम कम भइल, आगे वढ़िके जुलुमवां मिटाई जा अब।
जवन सपना सहीदन के मन में रहल ओह सपना के गाछी लगाई जा अब। देस में वा अन्हरिया, अभीले घिरल
लाल सूरज, क्षितिज प उगाई जा अव। अवहीं जनता के छाती प नेता चढ़ल चलि के जनता के झंडा थम्हाई जा अब। बतकही से ना टूटेला बेड़ी कवो
बेड़ियन प हथउड़ा चलाई जा अब।
सूतल सागर में हलफी उठाई जां अब चलऽ क्रांती के झंडा उड़ाई जा अब।