हो गइल विहान, जागि गइल जहान कबले सुते के भइया हमनीं के बोलऽ आपन चदरिया तान?
राति के पखेरून भागल परतिया, कुच-कुच अन्हरिया के बिसरल सुरतिया, खोलीं जा आखि, पॉखि लउकत बा सूरूज छान्ही प छितराइल घाम हो रहल विहान...
फेंड़न प खोंता में चहके चिरंइया, सॉरी में देखऽ रंभाली स गड्या, पिंजड़ा के सुगना जगावत बा कवे से, कहि-कहि के आतमा राम
हो रहल विहान...
देखऽ बधारी में सरसो फुलाइल आमन के डेहुंगिन में मोती गंथाइल, देखि रूप धरती के बेरि-वेरि कुहुकेले करिया कोइलिया नादान... हो रहल विहान...