पनरह अगस्तवा के दिनवां तिरंगा लहराये लागल हो, ए भइया हम नाहीं जननीं अजदिया, गुलमिया में दिन कटे हो।
खेतवा में करीला रोपनियां, सोहनियां, कटनियां नू हो,
ए भइया, घरवा में तयो ना अनजवा, करजवा में डूबि गइनीं हो। सामी मोरा करे हरवहिया, सरगहिये में राति कटे हो, ए भइया छउड़ी करेले चरवहिया, कुबोलिया सुने ले रोज हो। दस बरिस के बलकवा, करेला बनिहरिया नूँ हो,
ए भइया, पावे नाहीं बाप के दुलरवा, मतरिया के नेह छोह हो। पेटवा भइल बा पहड़वा, जिनिगिया मसान भइल हो,
ए भइया, जनलीं ना तीज-तेवहरवा, सिंगरवा ना तनवा के हो। मनवा करेला मोर बलकवा किताव इसलेट लेके हो,
ए भइया, पढ़ि-लिखि बनित अदिमिया, नयनवां जुड़ाइत हो।
मनवा करेला हमरो सामी के देहिया उघार ना रहित हो।
ए भइया, गोड़वा में रहित पनहिया, सभा में उहो जइतन हो। जब-जब ओटवा के दिन आवे, गंउआ में धूरि उड़े हो,
ए भइया, नेताजी के होला दरसनवां, सपनवां के छन अस हो। एक ओरे जिनिगी हिलोर मारे, सरग के सुख भोगे हो,
ए भइया, हमनी का भोगीला नरकवा, कसूर ना बुझाइल हो। ओटवा से बदले ला रजवा, ना दिनवां गरीबवन के हो,
ए भइया, गइया भंइस के जिनिगिया, ना अब बरदास होला हो। सुनीला कि हमनी के खटले से देस के सिंगार होला हो,
ए भइया, देसवा के लूटेला जुलुमिया, अजदिया मोहाल भइल हो। अबहूँ से ताल-सुर मिलाई जा देस के जगाई जा हो,
ए भइया, तुरे के बा अपने जंजीरवा, अजदिया तबहीं मिली हो।