हम केकरा पर करीं सिंगार? सावन बीतल, भादो बीतल बीति गइल संउसे बरसात टुटही मड़ई में ठिठुरत बीतल जाड़ा के लमहर रात बहे फगुनवा के बयार तबहूं ना अइलें पिया हमार अब तकले इहो ना जनली होला कइसन चढ़ल जवानी ढरकि गइल बरसाते में अखियन के गगरिन्ह के सभ पानी सगरे उड़त अबीर, धुआं अस जिनिगी अब त उड़त हमार कउआ, कोइलि, काग सभन के खोरा में हम खीर खिअवनीं आदमी के के कहो, बदरिअन के रोजे परदेस पठवनीं पथरइलीसऽ आंखि, बाट जोहत हो गइल सांझि भिनुसार हम केकरा पर करीं सिंगार?