देस लहकत वा आंवा के माफिक
आगि तोहरे लगावल हऽ रानी, खून जतना इहाँ तू बहवलू
ऊ कहत बा जुलुम के कहानी।
चोर गुंडन के राजा बनवलू
घूसखोरन के आंचर ओढ़वलू जे खटत घाम में रात दिन बा,
ना मिले ओकरा पीये के पानी ।
जे निकालत बा माटी से सोना ओकरा खातिर ना बा कवनो कोना,
जे दलाली के फन में बा माहिर
इहंवा फफसल बा ओकरे जवानी।
जे चलावत बा कल कारखाना ओकरा खाये के ना बा ठेकाना, जे डोलावत चंवर तोहरा आगा,
ओकरा खातिर सजल रजधानी।
ज्ञान-विज्ञान के बा जे साधक तोहरा खातिर उहे बहुए बाधक,
चापलूसी के गंगा बहवलू,
तोहरा पंजा के सगरे निसानी। न्याय पइसा प इहंवा बिकाता,
हक आवाज के मुंह जबाता, रूस अमरीका फेंकत बा पासा,
दाव पर देस के बा जवानी। कतना आसाम इहंवा बनइबू?
कतना पंजाब के भूजि खइबू ?
कतना लोगन के जेहल पठइबू?
देखऽ खउलत बा गंगा के पानी।
बान्ह से बाढ़ ना रूकि सकेला
ना मुखौटा बहुत दिन चलेला।
लोग लेके लुकाठी चलल बा,
ना चली राज अब खानदानी।
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