पाप बहुत बढ़ल बाटे, भल लोग डरल बाटे, धरिके अनेक रूप दुर्गा जी आईं।
मारके अधरमी के, राख लिहीं धरमी के, धरम के धाजा रउआ खुद फहराई।
अब जनि रहीं चूप, धरीं विकराल रूप, कोरोना के धरि-धरि चट करि जाईं ।
'भूषण' के हरि दुख, दुनिया में बाँटी सुख, भटकल लोगवा के रहिया पर लाई ।