हे हनुमान खोलीं भगिया के ताला । कुछ ना असम्भव रउरा जग में बुझाला ।।
बल अतुलित रउरा बुधिया के धाम हई । हमरा बुझाला रउरा दीनबन्धु राम हई ।।
रख लीले शरण में जे रउरा जाला । हे हनुमान खोलीं भगिया के ताला ।।
जीव सुग्रीव के रउरा बचवनीं । लखन बैरागी के मूर्छा छोरवनीं ।।
सीया भगति के देनीं प्राण के नेवाला । हे हनुमान खोलीं भगिया के ताला ।।
प्रेम निधि भरत के राख लेनी प्राण । बन के पहुँच गइनीं राम के विमान ।।
छुटे लागल अवध में रंग हे हनुमान खोलीं भगिया के मसाला । ताला ।।
'भूषण' के खोल दिहीं उलझल गाँठ । पूरा अब होखे जाता उमिर मोर साठ ।।
दिन अब जायेके रोज नियराला । हे हनुमान खोलीं भगिया के ताला ।।