भजनिया सीताराम के करऽ, एक दिन जाये के पड़ी । बस केहू के ना चली, पीछे पछताय के पड़ी ।। भजनिया.....!!
बाड़ऽ दू दिन के मेहमान, छोड़ दऽ झूठा अभिमान । अंत में धरती का बिछवना पर लोटाये के पड़ी ।। भजनिया.....।।
बल देहिया के घटी, केहू लगे नाहीं सटी । कहके माई माई तोहरा चिलाये के पड़ी ।। भजनिया.....।।
उलटा चले लागी साँस, छुटी जीवन के आस । कर पूरा बिसवास, जमदूत से पिटाये के पड़ी ।। भजनिया.....।।
लगिहें चार गो जवान, लेके चलिहे मशान । उहवाँ अगिया का धाह पर झुलसाये के पड़ी ।। भजनिया.....।।
करऽ नीमन नीमन काम, हरदम जपऽ सीताराम । ना तऽ बंदी बन के नरक में जाये के पड़ी ।। भजनिया.....।।
जब फुटी तकदीर, मिली बैल के शरीर । तब चोकर भूसा नदहा में खाये के पड़ी ।। भजनिया.......
मन मान लऽ तू कहल, नाहीं रही चहल पहल । 'भूषण' बैल बनके जुआ में जोताये के पड़ी ।। बस केहूके...।।