राम राम रटऽ मन दुख होई दूर । धीरे-धीरे हो जइबऽ माया से दूर ।।
राम का चरनिया से होखे लागी प्रीत, धीरे-धीरे मीटि जाई सब भवभीत । भूल से ना होई कबो कवनो कसूर ।। राम राम रट...।।
सहजे में सीख जइबऽ साधु के सुभाव, जिनगी में रही नाहीं कवनो अभाव । धीरे-धीरे हो जइबऽ चाहना से दूर ।। राम राम रट...।।
धीरे-धीरे सूख जाई वासना के कूप, हियरा में आवे लागी राम जी के रूप । कविता रचेके तब आवे लागी लूर ।। राम राम रट...।।
'भूषण' के मन करऽ पूरा बिसवास, राम का भगत के ना होला कबो नास । जिनगी में होइबऽ ना कबो मजबूर ।। राम राम रट...।।