चलऽ चलऽ चलऽ मन रामजी का देश में । देश में तू रहऽ चाहे रह परदेश में ।। चलऽ चलऽ...।।
उहवाँ ना भेदभाव उहवाँ ना झगड़ा, केहू का ना होला उहाँ केहू से रगड़ा । केहू के ना मन रहे जहँवा कलेश में ।। चलऽ चलऽ...।।
होला ना अन्हार कबो होला ना अँजोरिया, जगमग उजाला उहाँ रहे हर घड़िया । एक बेर जइबऽ नाहीं अइबऽ एही देश में ।। चलऽ चलऽ...।।
उहवाँ जे चल जाला, फेर नाहीं आवेला, माया के खेल ओकरा तनि नाहीं भावेला । लीन कर देवेला उ खुद के परेश में ।। चलऽ चलऽ...।।
'भूषण' अगुतइलऽ काहे चेत करऽ उठऽ, मतलबी दुनिया हऽ एकरा से रूठऽ । लीन करऽ अपना तू मन के भवेश में ।। चलऽ चलऽ...।।