मन भजन करऽ तू रघुराई के, मन चित लाई के ना । हउवन दुखिया के हित, जे करेला इनसे प्रीत, ओके राखेलन सरन अपनाइके, मनचित लाई के ना ।
इनका लउकेला ना दोस, कबहूँ करेले ना रोष, जे एक बेर बोलेला दोहाई के, मन चित लाई के ना ।
पाके हनुमत के संग, दुखवा सुग्रीव के भइल भंग, प्रभु राख लेनी मितवा बनाइके, मनचित लाई के ना ।
अइले लंका छोड़ विभीषण, प्रभुजी देखनी ना दूषण, भाई लेखा रखनी दुश्मन का भाई के, मनचित लाई के ना ।
'भूषण' कबहूँ ना घबरइहऽ, सीधे राम सरण में जइहऽ, सुनइहऽ सुन्दर-सुन्दर कविता बनाइके, मनचित लाई के ना ।