रघुनंदन हो तनिए-सा दया दरसावऽ ।। रघुनंदन हो...।।
दिन रात दउरिले दुनिया का दउर में, तिल-तिल पाकऽतानी वासना का भउर में। किरपा के अपना तू धार बरसावऽ, ।। रघुनंदन हो...।।
तोहरा से बिछुड़ल कय जुग बीतल, बिना तोहरा किरपा के होई नाहीं सीतल । एक बेर आपन तू कहके अपनावऽ, ।। रघुनंदन हो...।।
सरन में जाला ओके खुदे अपनावेलऽ, ओकर कवनो भूल-चूक मन में ना लावेलऽ । एक बेर फेर आपन बिरद देखावऽ, ।। रघुनंदन हो...।।
'भूषण' के राख लऽ तू अपना दरबार में, सै गो में एक नाहीं बानीं हम हजार में। आपन बनाके एक बेर अजमावऽ, ।। रघुनंदन हो...।।