नामवाँ रतनवाँ के खान हो, मन जप के तू देखऽ ।
अगुन-सगुन बीच नाम दुभषिया, कहतारे तुलसी जी नाम के रसिया । दूनों के कराइ देला ज्ञान हो, मन जप के तू देखऽ ।।
जपला से आरत के होला दुख दूर, सब सुख जिनगी में आवे भरपूर । सुखवा के होखेला विहान हो, मन जप के तू देखऽ ।।
नामवे से ज्ञात होला गुप्त सब बात, जपे जिज्ञासु लोग दिन अरू रात । होई जाला आतम ज्ञान हो, मन जप के तू देखऽ ।।
साधक के साधना में मिल जाला सिद्धि, जपेला जे लय से तऽ मिलेला प्रसिद्धि । अणिमा महिमादि के मिल जाला खान हो, मन जप के तू देखऽ ।।
माया से मुक्त होके जपे ब्रह्मज्ञानी, पावेले ब्रह्मसुख सब सुख खानी । होई जाला ब्रह्म से मिलान हो, मन जप के तू देखऽ ।।
'भूषण' के बात ना हऽ कहऽताटे मानस, झूठ हऽ कि साँच सब भोला बाबा जानस । हम बानीं बिल्कुल अनजान हो, मन जप के तू देख ।।