गुरु का चरनिया के लीक, मन चलऽ, पकड़ के ।
रहिया में भरल बाटे, काँदो कीचड़ पानी, चल तू बचाके नातऽ होई हलकानी । सुनेके मिली धिक-धिक, मन चल पकड़ के ।। गुरू का...।।
एने-ओने धावऽ मत चल एक ओर से, आगे-पीछे झाँक लऽ जब गुजरऽ नया मोर से । आँख मूँद चल मत होके निरभीक, मन चल पकड़ के ।। गुरू का...।।
काटे जब राह तोहर बीच में बिलइया, रोक के तू बोल दीहऽ, जय हो दुर्गा मइया । तनियो-सा होइहऽ जनि लीक से बेलीक, मन चल पकड़ के ।। गुरू का...।।
'भूषण' थकि जइह जब, मन आ शरीर से, कहिहऽ आपन दुख-दरद, गुरु महावीर से । संकट में होइहें उहे, तोहरा शरीक, मन चल पकड़ के ।। गुरू का...।।